भारत का इतिहास

Qutubuddin Mubarak Shah and the fall of the Khilji dynasty

कुतुबुद्दीन मुबारक शाह और खिलजी वंश का पतन (1316-1320)

मलिक काफूर के बढ़ते प्रभाव को देखकर अलाउद्दीन खिलजी ने जीवन के आखिरी दिनों में अपने सबसे बड़े बेटे खिज्र खां को राज्याधिकार से वंचित करके अपने 5 वर्षीय पुत्र शिहाबुद्दीन उमर को खिलजी वंश का उत्तराधिकारी नियुक्त किया। ऐसे में अलाउद्दीन खिलजी की मृत्यु के बाद मलिक काफूर ने उस अल्पवयस्क बच्चे को दिल्ली की गद्दी पर बैठा दिया और स्वयं उसका संरक्षक बन गया। इसके बाद मलिक काफूर ने शिहाबुद्दीन उमर की मां देवल देवी से शादी कर ली जो देवगिरी के शासक रामचन्द्र की बेटी थी। हांलाकि मलिक काफूर ने अपनी नवविवाहित पत्नी से धन-सम्पत्ति छीनकर उसे कारागार में डलवा दिया। मलिक काफूर ने खिज्र खां और शादीखां को ग्वालियर के किले में कैद करके अन्धा करा दिया। अलाउद्दीन के अन्य पुत्र भी कारगार में डाल दिए गए। सम्भवत: मलिक काफूर अलाउद्दीन के सभी उत्तराधिकारियों को समाप्त कर सत्ता ह​​थियाना चाह रहा था।

मलिक काफूर अभी 35 दिन ही शासन कर पाया था तभी उसने खिलजी वंश को समाप्त करने के दृष्टिकोण से कुछ सैनिकों को अलाउद्दीन खिलजी के तीसरे पुत्र मुबारक शाह को अन्धा करने के लिए भेजा। मुबारक शाह ने उन सैनिकों को अपना हीरों का हार भेंट में दिया और उन्हें खिलजी वंश के प्रति वफादार रहने की याद दिलाई। धन के लालच और भावना से प्रेरित होकर वे पैदल सैनिक सीधे मलिक काफूर के पास पहुंचे और उसकी हत्या कर दी। 

अब मुबारक शाह को कारागार से छुड़ाकर उसे शिहाबुद्दीन उमर का संरक्षक बनाया गया। तकरीबन 2 माह में मुबारक शाह ने खिलजी सरदारों को अपने पक्ष में करके व शिहाबुद्दीन को अन्धा करके उसे ग्वालियर के किले में कैद करा दिया और 19 मार्च 1316 को कुतुबुद्दीन मुबारक शाह खिलजी के नाम से दिल्ली के सिंहासन पर बैठा। उसका एक नाम इख्तियार अल-दीन भी था।

विलासी मुबारक शाह खिलजी

मुबारक शाह ने स्वयं को खलीफा घोषित कर दिया और अल इमाम, उल इमाम (उल वासिक विल्लाह), खलीफतुल अल्लाह की उपाधि धारण की। ऐसा करने वाला वह पहला सुल्तान था।

मुबारक शाह जिस दिन सुल्तान की गद्दी पर बैठा, ठीक उसी दिन तकरीबन 17 से 18 हजार कैदी करागार से मुक्त कर दिए गए।

मुबारक शाह ने अलाउद्दीन खिलजी के समय के सभी कठोर कानून रद्द कर दिए तथा बाजार नियंत्रण व्यवस्था भी समाप्त कर दी गई। राजधानी से बाहर भेजे गए व्यक्तियों को वापस आने की आज्ञा मिल गई।

इसके साथ ही सभी सैनिकों को छह महीने का अग्रिम वेतन, सरदारों और विद्वानों के वेतन व जागीरों में वृद्धि तथा अनेक व्यक्तियों से छीनी गई जागीरें वापस कर दी गईं।

गुप्तचर विभाग का कठोर अनुशासन समाप्त कर दिया गया।

मुबारक शाह के दरबारियों तथा अमीरों ने अलाउद्दीन खिलजी के कठोर कानूनों से राहत की सांस ली लेकिन इसका दुष्परिणाम यह हुआ कि सभी वस्तुओं के मूल्य बढ़ गए

इ​तिहासकार बरनी लिखता है कि मुल्तान के व्यापारियों ने अलाउद्दीन की मृत्यु पर खुशी मनाई तथा जमकर मुनाफाखोरी का सहारा लिया

कामुक सुखों के शौकीन सुल्तान के राज्य में खूबसूरत दासियों, हिजड़ों तथा युवा लड़कों की कीमत 500 टंका से 2000 टंका तक थी।

नौकरों का सलाना वेतन 10-12 टंका से बढ़कर 100 टंका तक हो गया।

सैय्यदों और उलेमाओं को दिया जाने वाले अनुदान में भी बढ़ोतरी कर दी गई।

मुबारक शाह ने नशीले पदार्थों पर प्रतिबंध को जारी रखा लेकिन शहर में शराब बिक्री के प्रति नरमी बरती गई।

मुबारक शाह ने नासिरूद्दीन खुसरव शाह नामक एक धर्म परिवर्तित मुसलमान को अपना वजीर और नाईब नियुक्त किया।

मुबारक शाह ने निजामुद्दीन औलिया का अभिवादन स्वीकार करने से मना कर दिया था।

मुबारक शाह खिलजी के नाईब खुसराव शाह ने देवगिरी को पुन: जीत​कर दिल्ली सल्तनत में मिला लिया और देवगिरी के राजा हरपाल देव की हत्या कर दी।

खुसरव शाह ने वारंगल के कुछ हिस्सों को भी दिल्ली सल्तनत में मिला लिया। इस प्रकार दक्षिण के क्षेत्रों को दिल्ली सल्तनत में मिलाने की शुरूआत मुबारक शाह से हुई।

वारंगल के राजा को पराजित करने के बाद खुसरव शाह ने मसुल्लीपट्टम पर धावा बोल दिया और ख्वाजा तकी नामक व्यापारी को भी लूट लिया।

पर्याप्त सेना और लूट का माल मिलने से खुसरव शाह अपने स्वामी मुबारक शाह ​के विरूद्ध दुष्टतापूर्ण योजनाएं बनाने लगा परन्तु इसकी सूचना सुल्तान को मिल गई।

दिल्ली पहुंचते ही मुबारक शाह ने खुसरव शाह का आदर-सत्कार किया और शिकायत करने वाले दंडित किए गए जिसके चलते बहुत से अमीर खुसरव शाह के स​हयोगी बन गए।

इतिहासकार जियाउद्दीन बरनी के मुताबिक, मुबारक शाह खिलजी कभी- कभी दरबार में शराब पीकर नग्न अवस्था में दरबारियों के बीच दौड़ा करता था। कभी स्त्रियों के वस्त्र पहनकर भी दरबार में आता था

इतिहासकार फरिश्ता लिखता है कि मुबारक शाह अपने महल की छतों पर नग्न वेश्याओं को घुमाता था और अपने दरबारी रईसों पर उनसे पेशाब करवाता था

भोग विलास में लिप्त मुबारक शाह के दरबार में स्त्रियों, वेश्याओं तथा चाटुकारों का प्रभाव हो गया। इसके ​अलावा मुबारक शाह ने अपने भाई खिज्र खां की विधवा पत्नी देवलदेवी से विवाह कर लिया।

15 अप्रैल 1320 की रात्रि को खुसरव शाह के सैनिकों ने महल में अचानक प्रवेश कर मुबारक शाह के अंगरक्षकों का कत्ल कर दिया। अपनी जान बचाने के लिए सुल्तान जनानखाने की तरफ भागा लेकिन खुसरव शाह ने उसके बाल पकड़ लिए लेकिन सुल्तान उसे गिराकर उसकी छाती पर बैठ गया तभी खुसरव शाह के हत्यारे वहां पहुंच गए और उन्होंने सुल्तान मुबारक शाह खिलजी की हत्या कर दी।

मुबारक शाह खिलजी अपने योग्य पिता का अयोग्य पुत्र था जिसने अपनी मूर्खता और विलासिता के कारण अपने वंश के पतन के लिए उत्तरदायी बना।

नासिरूद्दीन ​खुसरव शाह (15 अप्रैल से 7 सितम्बर 1320 ई.)

गुजरात का हिन्दू  खुसरव शाह बचपन में ही धर्म परिवर्तन कर मुसलमान बन गया था और उसे हिन्दू सैनिकों का समर्थन प्राप्त था, यही उसकी सबसे बड़ी कमजोरी थी। हांलाकि दक्षिण अभियान के दौरान खुसरव शाह ने इस्लामी जोश का परिचय दिया था। उसने अपने नाम से खुतबा पढ़वाया तथा खुद को पैगम्बर का सेनापति की उपाधि ग्रहण की थी। बावजूद इसके खुसरव शाह के विरोधियों ने उसके खिलाफ इस्लाम का शत्रु और इस्लाम खतरे में है के नारे लगाए।

दिल्ली सल्तनत की गद्दी पर बैठने वाला खुसरव शाह प्रथम भारतीय मुसलमान था।

सुल्तान बनने के बाद खुसरव शाह ने खिलजी वंश के प्रति वफादार सभी सरदारों तथा अलाउद्दीन खिलजी के सभी पुत्रों का भी वध करवा दिया।

उसने खिज्र खां की विधवा देवल देवी से शादी कर ली और अन्य सभी सरदारों को पद और सम्मान देकर उन्हें पक्ष में भी कर लिया।

खुसरव शाह ने निजामुद्दीन औलिया जैसे धार्मिक व्यक्तियों से भी समर्थन प्राप्त कर लिया।

निजामुद्दीन औलिया ने भी खुसरव शाह द्वारा दी गई 5 लाख टंका की भेंट स्वीकार की। बाद में गयासुद्दीन तुगलक ने इस राशि को वापस लेना चाहा तो निजामुद्दीन औलिया ने मना कर दिया। इससे निजामुद्दीन औलिया और गयासुद्दीन तुगलक के रिश्ते तनावपूर्ण हो गए।

इन सबके बावजूद तुर्की सरदार अपनी जातीय श्रेष्ठता को कायम रखने के लिए एक भारतीय मुसलमान को बरदाश्त नहीं कर सके।

तुर्की सरदार गाजी मलिक तुगलक ने इसका फायदा उठाते हुए सभी तुर्की सरदारों के साथ-साथ छोटे अधिकारियों तथा प्रदेश की जनता को इस्लाम के नाम पर विद्रोह के लिए उकसाया।

दिल्ली में इन्द्रप्रस्थ के पास खुसरव शाह और गाजी मलिक तुगलक के बीच आमना-सामना हुआ और तिलपट के निकट खुसरव शाह को कैदकर उसकी हत्या कर दी गई।

इस प्रकार खुसरव की हत्या के साथ ही उसके छह महीने के शासन का अंत हुआ।

7 सितम्बर 1320 को गाजी मलिक तुगलक ने अलाउद्दीन के हजारी महल में प्रवेश किया चूंकि अब अलाउद्दीन खिलजी को कोई वंशज जीवित नहीं थे, इसलिए 8 सितम्बर 1320  को गाजी मलिक की अनिच्छा के बावजूद अमीरों ने उसे गयासुद्दीन तुगलक की उपाधि देकर सिंहासन पर बैठा दिया।

चूंकि जलालुद्दीन खिलजी और अलाउद्दीन खिलजी ने रक्तपात के दम पर सुल्तान बने थे, इसलिए रक्तपात के द्वारा ही उनके वंश का पतन हुआ।

अलाउद्दीन खिलजी के शासन का आधार शक्ति और उसके शासन की कठोरता थी, इसलिए उससे प्रजा संतुष्ट नहीं थी।

कुतुबुद्दीन मुबाकर खिलजी अपने पिता की तरह योग्य नहीं था, जो उसके शासन को चला सके।

निष्कर्षतया अलाउद्दीन का बेहद कठोर शासन और उसके पुत्र मुबारक शाह का अयोग्य, विलासी और मूर्ख होना भी खिलजी वंश के पतन का सबसे प्रमुख कारण था।

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