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Purvanchal Ghazipur Bhitari pillar inscription of Skandagupta

बर्बर हूणों के आतंक का प्रतीक है पूर्वांचल में यह खूंखार जानवर

पूर्वांचल के जिलों विशेषकर- गाजीपुर, बलिया, चंदौली और बनारस की महिलाएं रात के अन्धेरे में अपने छोटे बच्चों को सुलाने के लिए स्थानीय भाषा में कहती हैं- “बचवा सुत जा नाहीं त हूणार आ जाई”। इसका हिन्दी अर्थ है- बेटा सो जाओ नहीं तो ‘हूणार’ आ जाएगा। जानकारी के लिए बता दें कि पूर्वांचल के तकरीबन सभी जिलों में खूंखार जानवर भेड़िए को लोग ‘हूणार’ कहते हैं। यह सच है कि भेड़िए तेज़, बुद्धिमान और सामाजिक शिकारी होते हैं, जो परिस्थितियों के आधार पर शिकार चुनते हैं। भेड़िए अक्सर किशोर, छोटे बच्चों, घायल अथवा कमजोर इन्सान को अपना निशाना बनाते हैं।

अब आपका सोचना बिल्कुल लाजिमी है कि आखिर में पूर्वांचल में खूंखार जानवर भेड़िए को लोग ‘हूणार’ क्यों कहते हैं? जी हां, दोस्तों ‘हूणार’ नाम के पीछे बर्बर हूणों के आतंक का रोचक इतिहास छुपा है, जिसका गवाह है गाजीपुर जिले का सैदपुर-भितरी क्षेत्र। ऐसे में बर्बर हूणों के आतंक व उनके समूल नाश से जुड़ी जानकारी के लिए यह रोचक स्टोरी जरूर पढ़ें।

बर्बर हूणों का आतंक

मध्य एशिया में निवास करने वाली बर्बर जाति के हूण जनसंख्या वृद्धि एवं विस्तार की आकांक्षा से अपना मूल निवास छोड़कर नए प्रदेशों की खोज में निकल पड़े। हूणों की पश्चिमी शाखा ने रोम पहुंचकर विध्वंस मचाया जिससे रोमन साम्राज्य को गहरा धक्का लगा। जबकि पूर्वी शाखा के हूण आक्रमणकारी आगे बढ़कर आक्सस नदी घाटी में बस गए।

पूर्वी शाखा के घुड़सवार हूण आक्रमणकारियों ने फारस (ईरान) को रौंदते हुए भारत पर अनेकों आक्रमण किए। हूणों का पहला आक्रमण सम्राट स्कन्दगुप्त के समय में हुआ। इतिहासकार बी.पी. सिन्हा लिखते हैं कि “बर्बर जाति के हूण आक्रमणकारी स्कन्दगुप्त की प्रारम्भिक कठिनाईयों का लाभ उठाकर गंगा नदी के उत्तरी किनारे तक आ पहुंचे थे।”

हूणों के समूल नाश का गवाह है भितरी स्तम्भ-लेख

सम्राट कुमारगुप्त प्रथम की मृत्यु के पश्चात गुप्त साम्राज्य की बागडोर उसके सुयोग्य पुत्र स्कन्दगुप्त के हाथों में आई। स्कन्दगुप्त ने 455 ईस्वी से 467 ईस्वी अर्थात कुल 12 वर्षों तक शासन किया। स्कन्दगुप्त एक महान विजेता एवं कुशल प्रशासक था। प्रशासनिक सुविधा के लिए उसने अपनी राजधानी को अयोध्या स्थानांतरित कर दिया था।

 स्कन्दगुप्त के सिंहासन पर बैठते ही हूणों का आक्रमण हुआ। किन्तु स्कन्दगुप्त ने बर्बर हूणों के आतंक का नाश कर उन्हें देश से बाहर खदेड़ दिया। यदि स्कन्दगुप्त नहीं रहा होता हो तो निश्चितरूप से बर्बर हूण इस देश को छिन्न-भिन्न कर देते।

पूर्वांचल के गाजीपुर जिले में सैदपुर रेलवे स्टेशन से पांच मील उत्तर-पूर्व में भितरी नामक स्थान पर गुप्त सम्राट स्कन्दगुप्त का स्तम्भ लेख मौजूद है। यह स्तम्भ-लेख बलुए पत्थर का बना है, इसके शीर्षभाग पर विष्णु की प्रतिमा थी, जो अब नहीं है। सम्राट स्कन्दगुप्त के द्वारा इच्छा व्यक्त की गई थी कि यह विष्णु मूर्ति सूर्य और चन्द्र के समान स्थायी रहे। इस मूर्ति के निमित्त स्कन्दगुप्त ने एक गांव दान में दिया था। यह स्तम्भ लेख तिथि रहित है, चूंकि इसमें स्कन्दगुप्त के प्रारम्भिक अशान्तमय परिस्थितियों का चित्रण है, जिससे यह ज्ञात होता है कि इसे 455 ईस्वी के आसपास उत्कीर्ण करवाया गया होगा।

भितरी स्तम्भ-लेख से स्कन्दगुप्त के शासनकाल की कई महत्वपूर्ण घटनाओं की जानकारी मिलती हैं। इस स्तम्भ लेख में स्कन्दगुप्त एवं हूणों के मध्य हुए भीषण का युद्ध का भी वर्णन है। भितरी स्तम्भ लेख के अनुसार, “हूणों के साथ युद्ध क्षेत्र में उतरते ही स्कन्दगुप्त की भुजाओं के प्रताप से पृथ्वी कांप उठी तथा भीषण बवण्डर उठ खड़ा हुआ।” हांलाकि इस स्तम्भ में युद्ध का विस्तृत वर्णन नहीं है, परन्तु इतना स्पष्ट है कि स्कन्दगुप्त ने हूणों को करारी शिकस्त दी तथा उन्हें देश से ​बाहर खदेड़ दिया।

युद्ध स्थल

इतिहासकार बी.पी. सिन्हा लिखते हैं कि “बर्बर जाति के हूण आक्रमणकारी स्कन्दगुप्त की प्रारम्भिक कठिनाईयों का लाभ उठाकर गंगा नदी के उत्तरी किनारे तक आ पहुंचे थे। बर्बर हूण आक्रमणकारी निर्दोष बच्चों तथा युवतियों तक की हत्या में तनिक भी संकोच नहीं करते थे। कुछ विदेशी यात्रियों के यात्रा वृत्तांत में यह भी मिलता है कि बर्बर हूण जीवित प्राणियों को मार कर उनका मांस खा जाते थे। हूण आक्रान्ताओं के इस वीभत्स स्वरूप को देखकर स्कन्दगुप्त के क्रोध का पारावार नहीं था।

इस बारे में भितरी स्तम्भ लेख पर यह पंक्ति उत्कीर्ण है- ‘हुणैर्यस्य समागतस्य समरे दोभ्र्यां धरा कम्पिता भीमावर्त करस्य’… अर्थात युद्धभूमि में स्कन्दगुप्त का रौद्र रूप देखकर बर्बर हूणों की बर्बरता तक कांप उठी। जाहिर है, युद्ध भूमि में स्कन्दगुप्त ने इस कदर संहार किया कि हूण आक्रमणकारी 484 ईस्वी के बाद ही भारत की ओर उन्मुख हो सके।

भितरी स्तम्भ लेख में यह वर्णित है - ‘श्रोत्रेषु गांगध्वनि’ अर्थात “जिस स्थान पर स्कन्दगुप्त एवं हूणों के मध्य हुआ था, वहां से दोनों कानों में गंगा की ध्वनि सुनाई पड़ती थी।” यद्यपि युद्ध स्थल को लेकर इतिहासकारों में मतभेद है, बावजूद इसके इतना तो तय है कि स्कन्दगुप्त एवं हूणों का आमना-सामना गंगा तट के समीप ही कहीं हुआ था।

स्थानीय विद्वानों के अनुसार, गंगा के किनारे बसा वह छोटा सा गांव औड़िहार है जो बर्बर हूणों के समूल विनाश का साक्षी है। ऐसा माना जाता है कि औड़िहार में स्कन्दगुप्त एवं उसकी शक्तिशाली सेना ने हूणों को धूल चटाई थी। यही वजह है कि इस जगह का नाम ही ‘हूणिहार’ पड़ा, कालान्तर में अपभ्रंश के चलते हूणिहार नाम औड़िहार में परिवर्तित हो गया। 

सैदपुर-भितरी के पास मौजूद जिस जगह स्कन्दगुप्त एवं उसके वीर सैनिकों ने संहार कर बर्बर हूणों के नरमुंडों का ढेर लगा दिया था, आज उस जगह को लोग ‘मुड़ियार’ गांव के नाम से जानते हैं। वहीं, जिस जगह हूण आक्रान्ताओं की लाशें बिछ गई थी, उस जगह का नाम ‘हौणहीं’ गांव पड़ा।

कुल मिलाकर, बर्बर हूणों के आंतक एवं उनके विनाश से जुड़े इस इतिहास को बीते तकरीबन 2000 साल हो चुके हैं, किन्तु आज भी यहां की महिलाएं रात के अन्धेरे में अपने बच्चों को सुलाने के लिए उन्हें यही कहकर डराती हैं कि ‘बचवा सुत जा नाहीं त हूणार आ जाई अर्थात् बेटा सो जाओ नहीं तो हूणार आ जाएगा। यहां हूणार शब्द से तात्पर्य ‘हूण’ ​आक्रमणकारियों से है।

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