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Narendra Modi had defeated Pakistan even in the Kargil war by US Tour

कारगिल युद्ध में भी नरेन्द्र मोदी ने पाकिस्तान को चटाई थी धूल

दोस्तों, यह बात पूरी दुनिया जानती है कि इंडियन आर्मी साल 1948, 1965, 1971 तथा 1999 की जंग में पाकिस्तानी सेना को करारी शिकस्त दे चुकी है। अभी कुछ ही दिनों पहले कश्मीर के पहलगाम में पाकिस्तानी आतंकियों द्वारा किए गए नरसंहार के बाद भारत और पाकिस्तान एक बार फिर से भीषण जंग के मुहाने पर खड़े हैं।

भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सार्वजनिक मंच यह बयान दिया है कि आतंकियों तथा उनके आकाओं को उनकी कल्पना से भी बड़ा सजा मिलेगी। इसके लिए पीएम मोदी ने भारतीय सेना को खुली छूट भी दे दी है। जाहिर है, भारतीय सेना अपनी तरफ से कठोर जवाबी कार्रवाई जरूर करेगी, इसके लिए समय और तारीख क्या होगी? यह पूरे देश की जनता को खुद--खुद पता चल जाएगा।

आपको यह बात जानकर हैरानी होगी कि साल 1999 में कारगिल युद्ध के दौरान नरेन्द्र मोदी न तो मुख्यमंत्री थे और न ही प्रधानमंत्री फिर भी उन्होंने एक ऐसी सक्रिय भूमिका अदा की थी जिससे पाकिस्तान के पसीने छूट गए थे। अब आप सोच रहे होंगे कि हमारे देश के यशस्वी प्रधानमंत्री नरेन्द्र भाई मोदी ने ऐसा क्या किया था, जिससे कारगिल युद्ध में पाकिस्तान को मात खानी पड़ी। इसका उत्तर जानने के लिए यह रोचक स्टोरी जरूर पढ़ें।

कारगिल युद्ध के समय बीजेपी के महासचिव थे नरेन्द्र मोदी

आज की तारीख में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की पहचान एक ग्लोबल लीडर की है। यही वजह है कि वर्तमान समय में जब भारत और पाकिस्तान एक भीषण जंग के मुहाने पर खड़े हैं, तब भारत को अमेरिका, रूस और इजरायल जैसे शक्तिशाली देशों का खुला समर्थन प्राप्त है।

परन्तु यह बात जानकार आप हैरत में पड़ जाएंगे कि साल 1999 में कारगिल युद्ध के दौरान भी नरेन्द्र भाई मोदी ने पाकिस्तान को धूल चटाने में सक्रिय भूमिका निभाई थी। जबकि उन दिनों नरेन्द्र मोदी न ही मुख्यमंत्री थे और न ही प्रधानमंत्री। बता दें कि ​कारगिल युद्ध के दौरान नरेन्द्र भाई मोदी आरएसएस के प्रचारक और बीजेपी के महासचिव थे।

नरेन्द्र मोदी पहुंचे थे वाशिंगटन

यूएसए की कई ए​जेंसियों के पास इस बात के पर्याप्त सबूत हैं कि साल 1999 के कारगिल युद्ध में नरेन्द्र मोदी ने गुप्त भूमिका निभाई थी। साक्ष्यों के मुताबिक, बतौर आरएसएस प्रचारक नरेन्द्र मोदी एक जुलाई 1999 ई. को अमेरिका के न्यूजर्सी पहुंचे थे। सबसे खास बात यह है कि नरेन्द्र मोदी के अमेरिका पहुंचने के ठीक पांच दिन बाद ही पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ भी वाशिंगटन पहुंचे थे।

नरेन्द्र मोदी क्यों गए थे अमेरिका

जानकारी के लिए बता दें कि कारगिल युद्ध 60 दिनों तक चला था। इस युद्ध में भारतीय सेना के 600 से ज्यादा जवान शहीद हुए थे जबकि कारगिल सेक्टर में हजारों पाकिस्तानी सैनिकों की लाशें बिछ गई थीं। स्थिति यह हो गई थी कि युद्धोपरान्त पाकिस्तान ने अपने सैनिकों का शव तक लेने से इनकार कर दिया था। 26 जुलाई 1999 को कारगिल विजय के पश्चात तत्कालीन भारत सरकार ने विजय दिवस का ऐलान किया।

संयोग यह देखिए कि अभी पिछले साल ही 26 जुलाई को लद्दाख के द्रास में आयोजित कारगिल विजय दिवस समारोह में शिरकत करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने स्पीच कहा था- “मैं आतंकवाद के सरपरस्तों से कहना चाहता हूं कि उनके नापाक मंसूबे कभी कामयाब नहीं होंगे। हमारे जांबाज सैनिक आतंकवाद को पूरी ताकत से कुचलेंगे। दुश्मन को मुंहतोड़ जवाब मिलेगा।

यदि हम कारगिल युद्ध (1999 ई.) की बात करें तो उस समय अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन का अप्रत्यक्ष रूप से पाकिस्तान को समर्थन प्राप्त था। ऐसे में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी नहीं चाहते थे कि कारगिल युद्ध लम्बा खींचे, इसके लिए उन्होंने एक राजनी​तिक योजना तैयार की जिसके तहत अमेरिका, पाकिस्तान पर दबाव बनाए ताकि कारगिल युद्ध को रोका जा सके।

इस महत्वपूर्ण काम के लिए राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रचारक व बीजेपी महासचिव नरेन्द्र भाई मोदी को अमेरिकी सरकार पर दबाव बनाने के लिए अमेरिका भेजा गया। अटल बिहारी वाजपेयी की सलाह पर नरेन्द्र भाई मोदी अमेरिका पहुंचे तथा वहां उन्होंने ओवरसीज फ्रेंड्स ऑफ द बीजेपीकी मदद से कई अमेरिकन सांसदों के साथ मीटिंग की। जिसका सार्थक परिणाम यह निकला कि ज्यादातर अमेरिकन सांसदों ने अमेरिकी सरकार पर यह दबाव बनाया कि पाकिस्तान को कारगिल युद्ध खत्म करने का आदेश दिया जाए।

नरेन्द्र मोदी की यह मीटिंग कितनी प्रभावी थी, इस बात का अन्दाजा आसानी से लगाया जा सकता है। दरअसल नरेन्द्र मोदी के अमेरिका पहुंचने के ठीक पांच दिन बाद ही पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ भी वाशिंगटन पहुंचे थे।

कारगिल के युद्ध मैदान में भी गए थे नरेन्द्र मोदी

स्वयं पीएम मोदी के शब्दों में, “मैं सौभाग्यशाली हूं कि साल 1999 के ​कारगिल युद्ध के दौरान मुझे कारगिल जाने तथा अपने देश के वीर जवाने के साथ एकजुटता दिखाने का सुनहरा मौका मिला। यह उन दिनों की बात है जब मैं जम्मू-कश्मीर तथा हिमाचल प्रदेश में अपनी पार्टी के लिए काम रहा था। कारगिल यात्रा और सैनिकों के साथ बातचीत के अनुभव को मैं कभी भुला नहीं पाऊंगा।

​कारगिल युद्ध का हिस्सा रहे ब्रिगेडियर खुशाल ठाकुर (सेवानिवृत्त) कहते हैं कि,  उन दिनों नरेन्द्र मोदी न तो मुख्यमंत्री थे और न ही किसी अन्य महत्वपूर्ण पद पर कार्यरत थे, बावजूद इसके वह एक आम नागरिक की भांति युद्ध के दौरान जबरदस्त फायरिंग के बीच सैनिकों का हौसला अफजाई करने के लिए कारगिल आए थे। यही नहीं, नरेन्द्र मोदी ने अस्पताल जाकर युद्ध में घायल सैनिकों से मुलाकात भी की।

प्रेम कुमार धूमल (पूर्व मुख्यमंत्री हिमाचल प्रदेश) के शब्दों में

साल 1999 में युद्ध के दौरान हिमाचल प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल भी बीजेपी महासचिव नरेन्द्र मोदी के साथ ​कारगिल गए थे। नरेन्द्र मोदी के साथ कारगिल यात्रा की यादें साझा करते हुए प्रेम कुमार धूमल एक इंटरव्यू में कुछ इस तरह बयां करते हैं- “3 जुलाई, 1999 ई. को हम शिमला थे, तभी पता चला कि पीएम अटल बिहारी वाजपेयी ​कारगिल सैनिकों का हौसला आफजाई करने लिए बॉर्डर पर जा रहे हैं। ऐसे में नरेन्द्र मोदी ने यह सुझाव दिया कि हमें भी कारगिल जाना चाहिए। इसके बाद 4 जुलाई को हमारी टीम सैनिकों के लिए जरूरी सामान लेकर हेलिकॉप्टर से कारगिल के लिए रवाना हुई।” 

प्रेम कुमार धूमल उन मार्मिक पलों को याद करते हुए कहते हैं कि नरेन्द्र मोदी ने उन साहसी जवानों से बातचीत की जिन्होंने टाइगर हिल को जीतने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। नरेन्द्र मोदी के साथ प्रेम कुमार धूमल की ​कारगिल यात्रा एक यादगार बन चुकी है।

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