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Narendra Modi had become a sanyasi, What did that Himalayan sage say to him?

संन्यासी बन चुके थे नरेन्द्र मोदी, हिमालय के उस साधु ने क्या कहा था?

दोस्तों, नरेन्द्र मोदी उस शख्स का नाम है जिसे विश्व के सबसे ताकतवर और पॉपुलर नेताओं में से एक माना जाता है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अगुवाई में ही भारत ने जापान जैसी महाशक्ति को पछाड़कर अमेरिका, चीन और ब्रिटेन के बाद चौथी आर्थिक महाशक्ति बनने का गौरव प्राप्त किया है। देश के आर्थिक विशेषज्ञों के मुताबिक, साल 2030 तक 7.3 ट्रिलियन डॉलर के अनुमानित जीडीपी के साथ दुनिया की तीसरी बड़ी आर्थिक महाशक्ति बनने की राह पर अग्रसर है।

आज की तारीख नरेन्द्र मोदी का नाम सुनते ही पाकिस्तान और चीन जैसे देशों की बोलती बन्द हो जाती है। परन्तु क्या आपको यह बात पता है कि हमारे देश के यशस्वी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 18 वर्ष की युवावस्था में संन्यास धारण कर चुके थे, इस दौरान युवा नरेन्द्र हिमालय की कन्दराओं में दो वर्षों तक कठोर साधना करते रहे।

हिमालय भ्रमण के दौरान एक तपस्वी साधु ने संन्यासी बन चुके नरेन्द्र मोदी को ऐसी राह दिखाई जिससे उनका पूरा जीवन- दर्शन ही बदल गया। अब आपका यह सोचना बिल्कुल लाजिमी है कि आखिर में नरेन्द्र मोदी ने संन्यास क्यों ग्रहण कर लिया था? और फिर हिमालय के उस साधु ने युवा संन्यासी नरेन्द्र मोदी से कौन सी बात कही? इन गूढ़ बातों को जानने के लिए यह रोचक स्टोरी जरूर पढ़ें।

बचपन से ही साधु-संन्यासियों के प्रति आकर्षण

साल 1950 में 17 सितम्बर को गुजरात के महेसाणा जिला स्थित वडनगर में जन्मे नरेन्द्र दामोदास मोदी के पिता का नाम दामोदार दास मूलचंद मोदी तथा माता का नाम हीराबेन था। वडनगर के भगवताचार्य नारायणाचार्य स्कूल में पढ़ाई करने वाले नरेन्द्र मोदी को बचपन से ही साधु-संतों से बेहद लगाव था। बालक नरेन्द्र साधु-संतों को देखते ही उनके पीछे-पीछे चलने लग जाते थे।

वृश्चिक राशि के नरेन्द्र मोदी जब 12 वर्ष के थे, तभी उनकी मां हीराबेन ने वडनगर आए एक ज्योतिषी को उनकी जन्मकुंडली दिखाई। बालक नरेन्द्र की जन्म कुंडली देखकर उस ज्योतिषी ने कहा कि तुम्हारा बेटा या तो राजा बनेगा या फिर शंकराचार्य जैसा कोई सिद्ध संत। ऐसे में नरेन्द्र मोदी की मां हीरा बेन को लगा कि उनका बेटा कहीं साधु-संन्यासी न बन जाए इसलिए उन्होंने कम उम्र में ही नरेन्द्र मोदी की शादी करने का निर्णय ले लिया।

विवाह से पूर्व संन्यास का निर्णय

संन्यास के प्रति रूझान के चलते ही 17वर्षीय नरेंद्र मोदी 1967 ई. में कोलकाता के वेल्लूर मठ भी गए थे। उन दिनों नरेन्द्र भाई मोदी की मुलाकात स्वामी माधवानन्द से हुई थी। वेल्लूर मठ के ही स्वामी आत्मस्थानंद जी ने नरेन्द्र मोदी से कहा था कि तुम्हारी जिम्मेदारी केवल खुद तक सीमित नहीं है, बल्कि तुम्हारा जीवन समाज की भलाई के लिए है। तुम सेवा के लिए बने हो। इस प्रकार नरेन्द्र मोदी घर वापस लौट आए।

तत्पश्चात साल 1968 में नरेन्द्र दामोदर दास मोदी के माता-पिता ने बिना उनसे पूछे ही 16 वर्षीय जशोदाबेन नामक एक लड़की से उनकी शादी करा दी। हांलाकि विवाह के तुरन्त बाद ही नरेन्द्र मोदी ने घर छोड़ दिया और तकरीबन दो वर्षों तक अपने परिजनों से दूर रहने के बाद अचानक वडनगर लौट आए।

जसोदाबेन अपनी मां के आग्रह पर अपने पति के घर आईं परन्तु नरेन्द्र मोदी ने उनसे कहा- “मैं पूरे देश में यात्रा करूंगा और जहां चाहूंगा वहां जाऊंगा, मेरे पीछे रहकर तुम क्या करोगी? तुम इतनी छोटी उम्र में अपने ससुराल क्यों आई? तुम्हें अपनी पढ़ाई पर ध्यान देना चाहिए।इस प्रकार शादी के कुछ दिनों बाद ही जसोदा बेन और नरेन्द्र मोदी अलग हो गए। विकिपीडिया पर उपलब्ध जानकारी के अनुसार, जशोदाबेन का कहना है कि नरेन्द्र मोदी से अंतिम अलगाव से पूर्व तीन साल की अवधि के दौरान उन्होंने अपने पति के साथ कुल मिलाकर तकरीबन तीन महीने बिताए थे।

लेखिका कालिंदी रांदेरी की किताब नरेंद्र मोदी: द आर्किटेक्ट ऑफ़ मॉडर्न स्टेट के मुताबिक, नरेन्द्र मोदी पारिवारिक समस्याओं से परेशान थे, यही वजह है कि उन्होंने जीवन की सच्चाई तलाशने के लिए हिमालय की यात्रा पर जाने का निर्णय लिया। रांदेरी अपनी किताब में लिखती हैं कि वह एक अंधेरी रात में अपना घर छोड़कर गायब हो गए।

हिमालय की कन्दराओं में भटकते रहे नरेन्द्र मोदी

नरेन्द्र मोदी ने एक साक्षात्कार में स्वयं कहा कि जब मैंने घर छोड़ा था तब मेरी उम्र तकरीबन 17-18 साल थी। मैं आध्यात्मिक दुनिया देखना चाहता था, इसके लिए मैं हिमालय में प्रकृति के बीच रहा। यह एक अद्भुत अनुभव था।

युवा नरेन्द्र मोदी संन्यासी बनकर आध्यात्म की खोज में हिमालय की कन्दराओं सहित बर्फ और ऊँची चोटियों से घिरी प्राकृतिक दुनिया में तकरीबन 2 वर्षों तक घूमते रहे। इस दौरान ब्रह्म मुहूर्त में जागना, ठंडे पानी से स्नान करना, ध्यान-साधना का अभ्यास करना तथा लोगों की भक्ति भाव से सेवा करना, ये सभी प्रक्रियाएं उनके जीवन का अभिन्न हिस्सा बन चुकी थीं।

एक पॉडकास्ट में प्रधानमंत्री मोदी ने स्वयं यह बताया कि हिमालय में रहने के दौरान एक प्राकृतिक आपदा आई थी। उस कठिन समय में उन्होंने ग्रामीणों की मदद के लिए स्वयं को समर्पित कर दिया। वे वहां न केवल साधना कर रहे थे, बल्कि समाज सेवा भी उनके जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा थी।

हिमालय में तप-साधना के दौरान नरेन्द्र मोदी की मुलाकात कई तपस्वी साधु-संतों से हुई, जो सांसारिक दुनिया के बिल्कुल अलग होकर आ​ध्यात्मिक जीवन जी रहे थे। हालांकि, उस समय नरेन्द्र मोदी के मन में कई प्रश्न उमड़-घुमड़ रहे थे, और वे लगातार ज्ञान की खोज में थे। उन्होंने कहा, "पहाड़ों, बर्फ और ऊँची चोटियों से घिरी उस दुनिया ने मेरे व्यक्तित्व को आकार देने में अहम भूमिका निभाई।

हिमालय भ्रमण के दौरान एक तपस्वी साधु ने युवा नरेन्द्र मोदी से हिमालय की गोद में आकर ध्यान-साधना करने का कारण पूछा। तब नरेन्द्र मोदी ने उस साधु से कहा कि मैं ईश्वर की खोज में यहां आया हूं। तत्पश्चात उस साधु ने मोदी से कहा कि तुम्हारी उम्र अभी हिमालय के गुफाओं में भटकने की नहीं है।

उस साधु ने कहा कि समाज की सच्ची सेवा करके भी ईश्वर को प्राप्त कर सकते हो।मोदी ने उस पॉडकास्ट में ही कहा था कि "हिमालय में रहने के बाद मुझे जो शक्ति मिली, वह अभी भी मेरे भीतर है। मैं ऐसे लोगों से मिला जो न्यूनतम जीवन जीने और अपने पदचिह्न नहीं छोड़ने विश्वास रखते थे। हिमालय से लौटने के बाद नरेन्द्र मोदी ने अपना संन्यासी जीवन त्यागने का निर्णय लिया। इसके बाद घर छोड़कर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रचारक बन गए और फिर उनके राजनीतिक जीवन से तो पूरी दुनिया परिचित है।

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