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Muhammad bin Tughlaq had given advance salary to 4 lakh soldiers for one year

दिल्ली का सबसे बुद्धिमान-मूर्ख सुल्तान, 4 लाख सैनिकों को दी थी एडवांस सैलरी और डूब गया सारा पैसा

दोस्तों, मध्ययुगीन इतिहास में दिल्ली सल्तनत का एक ऐसा सुल्तान जो अपने चरित्र तथा कार्यों की वजह से अन्य सभी सुल्तानों की तुलना में सर्वाधिक विवादित रहा। दरअसल उसके चरित्र की क्रूरता तथा उसकी सभी विफल योजनाओं ने उसे विवादस्पद बना दिया। परम विद्वान तथा अत्यंत दूरदर्शी होने के बावजूद सल्तनकालीन इतिहास का वह एकमात्र सुल्तान है जिसे ज्यादातर इतिहासकारों ने बुद्धिमान-मूर्ख शासक होने की संज्ञा दी। आप का सोचना बिल्कुल लाजिमी है, मैं दिल्ली के सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक की ही बात कर रहा हूं।

मुहम्मद बिन तुगलक ने अपनी सभी पूर्ववर्ती विफल योजनाओं के चलते अपना राजकोष रिक्त कर लिया था। इसी बीच अपनी साम्राज्यवादी महत्वाकांक्षा को पूर्ण करने के लिए उसने 3 लाख 70 हजार (तकरीबन 4 लाख) सैनिकों को एक वर्ष की एडवांस सैलरी भी दे दी, परन्तु उसका यह पैसा भी डूब गया। अब सवाल यह उठता है कि मुहम्मद बिन तुगलक ने 4 लाख सैनिकों को एक वर्ष की एडवांस सैलरी क्यों दी थी? यह जानने के लिए इस रोचक स्टोरी को जरूर पढ़ें।

बुद्धिमान-मूर्ख सुल्तान था मुहम्मद बिन तुगलक (1325 से 1351 ई.) - ज्यादातर इतिहासकारों ने दिल्ली सल्तनत के सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक को बुद्धिमान-मूर्ख शासक कहा है। इसके साथ ही उसका नाम रक्त का प्यासा तथा परोपकारी सुल्तानआदि कई संज्ञाओं से जोड़ा गया।

ऐसा माना जाता है कि दिल्ली के सभी सुल्तानों की तुलना में वह सबसे विद्वान ​तथा दूरदर्शी था। उसे अरबी, फारसी, गणित, नक्षत्र विज्ञान, भौतिक शास्त्र, ​तर्कशास्त्र, दर्शन तथा चिकित्साशास्त्र आदि का अच्छा ज्ञान था। वह एक अच्छा कवि, लेखक तथा वार्तालाप की कला में भी निपुण था। उसे विभिन्न ललित कलाओं तथा संगीत से प्रेम था। उसकी बुद्धि कुशाग्र थी तथा स्मरण शक्ति भी अच्छी थी।

दरअसल उसके दोहरे व्यक्तित्व ने उसे विवादास्पद बना दिया। वह प्रसन्न रहने पर गरीबों की सहायता किया करता था परन्तु क्रोधित होते ही लोगों का खून बहाना उसका शौक था। बतौर उदाहरण- मुहम्मद बिन तुगलक के शाही भोजनालय में प्राय: चालीस हजार व्यक्ति प्रतिदिन भोजन करते थे। वहीं दूसरी तरफ अनेक अवसरों पर वह साधारण अपराधों के लिए भी मृत्युदण्ड देता अथवा बेहद क्रूरतापूर्वक व्यवहार करता था। इस बारे में जिया-उद्दीन बरनी लिखता है कि सुल्तान ने निरपराध मुसलमानों का रक्त इतनी क्रूरता से बहाया कि सर्वदा उसके महल के दरवाजे से बहता हुआ रक्त का दरिया देखा जा सकता था।

मुहम्मद बिन तुगलक के रक्त पिपासु च​रित्र के बारे में इतिहासकार याहिया बिन अहमद सरहिन्दी ने लिखा है कि सुल्तान ने लोगों की हत्या कराने की इस सीमा तक व्यवस्था की थी कि चार मुफ्तियों को महल में घर दे दिए थे। हत्या के विषय में वह इन मुफ्तियों से वाद-विवाद किया करता था। मुफ्ति किसी भी आरोपी को निर्दोष साबित करने में कोई कमी नहीं करते थे परन्तु अपराधी सिद्ध होते ही उन्हें तत्काल मौत के घाट ​उतार दिया जाता था।

इसी वजह से विदेशी इतिहासकार एलफिन्सटन लिखता है कि मुहम्मद बिन तुगलक में पागलपन का अंश विद्यमान था। हैवेल, एडवर्ड थामस तथा स्मिथ जैसे इतिहासकारों ने भी एलफिन्सटन के इस मत का समर्थन किया है। प्रख्यात इतिहासकार डॉ. ए.एल. श्रीवास्तव का भी कहना है कि, “मुहम्मद बिन तुगलक में विरोधी तत्वों का मिश्रण था।

उसकी सभी महत्वपूर्ण योजनाएं विफल रहीं

मुहम्मद बिन तुगलक के 26 वर्ष के शासनकाल में उसके द्वारा लागू की गई सभी विफल योजनाओं से राज्य को भारी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ा तथा प्रजा को असहनीय कष्ट एवं असंतोष का सामना करना पड़ा। वह जीवन के किसी भी क्षेत्र में सफल नहीं हुआ। जब वह अपनी प्रजा और अधिकारियों का सहयोग प्राप्त करने में असफल होता था तब क्रोधित होकर सभी को नीच और बेईमान मान लेता था। जबकि अपनी असफलता का मूल कारण वह स्वयं ही था।

राजधानी परिवर्तन - मुहम्मद बिन तुलगक 1327 ई. में अपनी राजधानी दिल्ली से दौलताबाद ले गया। उसने देवगिरि का नाम दौलताबाद रखा। राजधानी परिवर्तन के दौरान उसने सम्पूर्ण दिल्लीवासियों को दौलताबाद चलने को कहा। बरनी लिखता है कि इस दौरान दिल्ली इतनी पूरी तरह से उजड़ गई कि नगर की इमारतों, महलों और आसपास के इलाकों में एक बिल्ली या कुत्ता तक नहीं बचा।

दौलताबाद में कुछ दिन रहने के पश्चात सुल्तान ने दोबारा सभी लोगों को दिल्ली जाने का आदेश दे दिया। इसमें कोई सन्देह नहीं है कि राजधानी दिल्ली से दौलताबाद तक 40 दिनों की 700 मील लम्बी यात्रा के दौरान​ लाखों नागरिकों को असहनीय कष्टों का सामना करना पड़ा होगा।

सांकेतिक मुद्रा का चलन - साल 1329-1330 में मुहम्मद बिन तुगलक ने सांकेतिक मुद्रा के रूप में तांबे एवं पीतल के सिक्के चलवाए। तांबे अथवा पीतल के यह सिक्के मूल्य में चांदी के टंके के बराबर थे। शाही प्रमाणिकता के अभाव में इन सिक्कों की नकल करना बेहद आसान था। अत: दिल्ली सल्तनत की जनता ने इस अवसर का लाभ उठाकर अपने-अपने घरों में ही तांबे के सिक्के बनाने शुरू कर दिए।

ऐसे में व्यापारियों ने तांबे के इन नवीन सिक्कों को लेने से इनकार कर दिया। जाहिर सी बात है अपनी इस योजना को असफल होते देख सुल्तान ने तांबे अथवा पीतल के सिक्कों को वापस लेने तथा उसके बदले चांदी के टंके देने के आदेश पारित किए। फिर क्या था, जनता ने अपने घरों में ही तांबे ​के सिक्के बनाकर चांदी के टंके ले लिए जिससे दिल्ली सल्तनत का राजकोष रिक्त हो गया।

दोआब में कर वृद्धि - मुहम्मद बिन तुलगक ने रिक्त राजकोष की भरपाई के लिए दोआब (वर्तमान उत्तर प्रदेश) में कर वृद्धि योजना लागू की। उसने दोआब में भूमिकर के अलावा मकानों तथा चरागाहों आदि पर भी कर लगाया। परन्तु ठीक इसी समय दोआब में अकाल पड़ गया बावजूद इसके सुल्तान के अधिकारियों ने दोआब की जनता से कठोरतापूर्वक कर वसूले जिससे अनेक जगहों पर विद्रोह हो गए। अत: सुल्तान ने बड़ी कठोरता से इन विद्रोहों को कुचलवाया।

इतिहासकार बरनी लिखता है कि हजारों व्यक्ति मारे गए, सुल्तान के अधिकारियों ने विद्रोही लोगों को जंगली जानवरों की भांति अपना शिकार बनाया। इतिहासकार सतीशचन्द्र अपनी किताब मध्यकालीन भारतमें लिखते हैं कि भयंकर अकाल के चलते सिर्फ दिल्ली में ही इतने लोग मरे कि हवा भी महामारक हो उठी।

ऐसे में मुहम्मद बिन तुगलक दिल्ली से 100 मील दूर कन्नौज के पास गंगा किनारे स्वर्गद्वारी नामक शिविर में तकरीबन ढाई वर्ष तक रहा। इस प्रकार सुल्तान की इस नीति से उसकी आय में कोई वृद्धि नहीं हुई बल्कि वह अपनी प्रजा में अत्यधिक बदनाम हो गया।

तकरीबन 4 लाख सैनिकों को दी थी एडवांस सैलरी

मंगोलों की वापसी के पश्चात सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक ने पेशावर तथा कलनूर को दिल्ली साम्राज्य में मिला लिया। इसके बाद मुहम्मद बिन तुगलक ने 1338-1339 ई. में खुरासान तथा इराक को जीतने की योजना बनाई। इतिहासकारों का ऐसा मानना है कि खुरासान तथा इराक विजय की यह योजना मुहम्मद बिन तुगलक, तरमाशरीन तथा मिस्र के सुल्तान के त्रिमैत्री संगठन का परिणाम थी।” 

खुरासान तथा इराक विजय के लिए मुहम्मद बिन तुगलक ने 3 लाख 70 हजार (तकरीबन 4 लाख) सैनिकों की एक विशाल सेना एकत्र की तथा सभी सैनिकों को एक वर्ष की एडवांस सैलरी (अग्रिम वेतन) भी दे दी। परन्तु मध्य एशिया की परिस्थितयों में परिवर्तन होने से वह अपनी विशाल सेना का व्यय बहुत लम्बे समय तक उठाने में असमर्थ था, अत: उसने अपनी सेना को भंग कर दिया। इस प्रकार मुहम्मद बिन तुगलक का सारा पैसा डूब गया और उसकी आर्थिक स्थिति अत्यधिक दुर्बल हो गई।

वहीं दूसरी तरफ सेना से निकाले गए सैनिकों में असन्तोष का वातावरण व्याप्त हो गया। इतिहासकारों का मानना है कि यह योजना ही दोषपूर्ण थी क्योंकि खुरासान और इराक जैसे दूरस्थ प्रदेशों को जीतना सम्भव नहीं था। सुल्तान यदि खुरासान और इराक को जीत भी लेता तो इन्हें अधिकार में रखना बेहद कठिन था।

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