तुर्क आक्रमणकारियों में महमूद गजनवी एक ऐसा नाम है, जिसने भारत की अकूत धन-सम्पदा लूटने के लिए 17 बार आक्रमण किए। महमूद गजनवी ने अपने आक्रमणों के दौरान भारत के उन समृद्ध हिन्दू मंदिरों को अपना निशाना अवश्य बनाया जिनमें अकूत खजाना रखा हुआ था।
महमूद गजनवी ने साल 1025 में गुजरात के काठियावाड़ में समुद्र तट पर बने भारत के सबसे सम्मानित सोमनाथ मंदिर को जमकर लूटा। सोमनाथ मंदिर की लूट में महमूद गजनवी को 200 मन की सोने की जंजीर, हीरे-जवाहरातों से जड़ित शिवलिंग का छत्र, स्वर्ण-चांदी निर्मित मूर्तियों के अतिरिक्त किवाड़ों, चौखटों और छतों में जड़ित चांदी प्राप्त हुई थी।
अब आपका सोचना बिल्कुल लाजिमी है कि आखिर में इस लूट के दौरान महमूद गजनवी ने सोमनाथ मंदिर के गर्भगृह में ऐसा क्या देखा जिसे देखकर वह आश्चर्यचकित रह गया था? इस तथ्य को जानने के लिए यह रोचक स्टोरी जरूर पढ़ें।
महमूद गजनवी ने भारत पर किए 17 आक्रमण
यामिनी वंश के संस्थापक अलप्तगीन ने अफगानिस्तान के एक छोटे से नगर ‘गजनी’ को अपनी राजधानी बनाया। अलप्तगीन का पुत्र सुबुक्तगीन पहला तुर्की शासक था, जिसने हिन्दू शाही शासक जयपाल को पराजित किया। हिंदू शाही राजवंश के शासक जयपाल का साम्राज्य पश्चिम में अफगानिस्तान के लघमन प्रान्त से लेकर पूर्व में कश्मीर और सरहिंद से मुल्तान तक फैला हुआ था।

997 ई. में सुबुक्तगीन की मौत हो गई तत्पश्चात 998 ई. में 27 वर्ष की उम्र में महमूद गजनवी अपने पिता के राज्य का मालिक बना। सुबुक्तगीन की विजयों से उत्साहित होकर उसके पुत्र महमूद गजनवी ने 1009 ई. से लेकर 1027 ई. तक भारत पर 17 बार आक्रमण किए।
इतिहासकार सर हेनरी इलियट के अनुसार, “महमूद गजनवी ने अपने 32 वर्ष के शासनकाल में भारत पर 17 बार हमले किए।” हांलाकि महमूद गजनवी के सभी आक्रमणों के सम्बन्ध में सर्वस्वीकृत प्रमाण प्राप्त नहीं होते हैं, फिर भी सभी इतिहासकार यह अवश्य मानते हैं कि उसने भारत पर कम से कम 12 आक्रमण जरूर किए।
महमूद गजनवी के इन आक्रामक आक्रमणों से इस बात का अन्दाजा आसानी से लगा सकते हैं, जैसे कि उसने प्रतिवर्ष भारत पर आक्रमण करने का प्रण ले लिया था। महमूद गजनवी ने अपने प्रत्येक आक्रमण में भारत के किसी न किसी मंदिर को निशाना जरूर बनाया जिनमें अकूत धन-सम्पदा रखी हुई थी।
इस सम्बन्ध में लेखक इब्राहम इराली अपनी किताब 'द एज ऑफ़ रॉथ' में लिखते हैं कि, “महमूद गजनवी के भारत पर हमलों का उद्देश्य इस्लाम का प्रसार करना कभी नहीं था। उसे भारत के हिन्दू मंदिरों से अपार दौलत मिलती थी, साथ ही मंदिरों के विध्वंस से उसके धार्मिक जोश की पूर्ति होती थी।”
महमूद गजनवी का सोमनाथ मंदिर पर हमला
खजाने से भरे हिन्दू मंदिरों को लूटने के क्रम में महमूद गजनवी का सबसे बड़ा और अंतिम अभियान सोमनाथ मंदिर का था। सोमनाथ मंदिर पर हमले के उद्देश्य से महमूद गजनवी अपने तीस हजार घुड़सवारों के साथ अक्टूबर, 1024 ई. में गजनी से प्रस्थान किया।
महमूद गजनवी मुल्तान होते हुए राजस्थान के रेगिस्तान को पारकर गुजरात पहुंचा था। महमूद गजनवी के लाव-लश्कर के साथ सैकड़ों ऊँट भी थे, जिन पर कुछ दिनों के लिए रसद तथा सैन्य हथियार रखे हुए थे। आखिरकार साल 1025 के जनवरी महीने में महमूद गजनवी अपनी सेना के साथ सोमनाथ पहुंच गया।
सोमनाथ मंदिर की भव्यता
गुजरात के सौराष्ट्र (काठियावाड़) स्थित सोमनाथ मंदिर के बारे में इतिहासकार फरिश्ता लिखता है कि, “सोमनाथ मंदिर में 2000 ब्राह्मणों के अलावा असंख्य पुजारी कार्यरत थे, मंदिर में 500 नर्तक महिलाएं तथा 300 संगीतकार भी थे, इसके अतिरिक्त 300 नाई भी थे, जो गर्भगृह में प्रवेश करने से पहले भक्तों की हजामत बनाते थे।”
इतिहासकार एल.पी. शर्मा के अनुसार, “सोमनाथ मंदिर भारत में सबसे अधिक सम्मानित मंदिर था। लाखों व्यक्तियों की प्रतिदिन की भेंट के अतिरिक्त 10,000 गांवों की आय उसे प्राप्त होती थी। 350 स्त्री- पुरुष शिवलिंग के सम्मुख सर्वदा नाचने के लिए रखे गए थे। तकरीबन एक हजार पुजारी देवता की पूजा में संलग्न रहते थे।”

गर्भगृह की मुख्य मूर्ति देखकर आश्चर्यचकित था महमूद गजनवी
लकड़ी के 56 खंभों पर टिका सोमनाथ मंदिर स्थापत्य कला की दृष्टि से बेजोड़ था। सबसे बड़ी बात यह है कि सोमनाथ मंदिर में शताब्दियों से अपार खजाना संचित करके रखा गया था। सोमनाथ मंदिर के शिवलिंग को प्रतिदिन गंगाजल से स्नान कराया जाता था, जिसे सोमनाथ से तकरीबन 1200 किलोमीटर दूर से पवित्र गंगा नदी से मंगवाया जाता था।
हजारों प्रकार के हीरे-जवाहरातों से शिवलिंग का छत्र बना हुआ था। मशहूर इतिहासकार ज़करिया अल काज़विनी के अनुसार, “स्वयं शिवलिंग बीच अधर में बिना किसी सहारे के हवा में लटका हुआ था, जिसे देखकर महमूद गजनवी आश्चर्यचकित रह गया था।”
200 मन की सोने की जंजीर से उसका एक घंटा बजाया जाता था। इतिहासकार अलबरूनी लिखता है कि “गर्भगृह में स्थित मुख्य शिवलिंग के बगल में स्वर्ण एवं चांदी से निर्मित कुछ अन्य मूर्तियां भी थीं।”
हैरानी की बात यह है कि सोमनाथ मंदिर में एक दीपक के अलावा रोशनी की कोई व्यवस्था नहीं थी, क्योंकि मंदिर का आंतरिक भाग मूर्तियों एवं दीवारों पर जड़े हुए रत्नों से इतना भरा था कि हीरे-जवाहरातों पर लटकते दीपक का प्रतिबिम्ब सम्पूर्ण आंतरिक भाग को प्रकाशित कर देता था।

महमूद गजनवी ने सोमनाथ मंदिर से क्या-क्या लूटा
महमूद गजनवी अपने 30 हजार तीव्र घुड़सवारों तथा अन्य लुटेरों के साथ जनवरी 1025 ई. में काठियावाड़ की राजधानी अन्हिलवाड़ पहुंच गया। अहिन्लवाड़ पहुंचते ही वहां का शासक राजा भीमदेव भाग खड़ा हुआ। फिर क्या था, महमूद गजनवी ने बिना किसी विरोध के पहले उसकी राजधानी को लूटा तत्पश्चात सोमनाथ मंदिर के निकट पहुंचा।
इससे पूर्व सोमनाथ मंदिर में हजारों हिन्दू भक्त और अनुयायी पूर्ण विश्वास के साथ महमूद गजनवी से युद्ध के लिए तत्पर थे। महमूद गजनवी के आक्रमण का पहला दिन असफल रहा, किन्तु दूसरे दिन वह मंदिर की प्राचीर पार कर गया। इस युद्ध में तकरीबन 50 हजार लोग मारे गए।
इतिहासकार एल.पी. शर्मा लिखते हैं कि, “महमूद गजनवी मंदिर को विध्वंस करता हुआ गर्भगृह तक पहुंचा, इसके बाद उसने छत में लग हुए चकमक पत्थर को हटा दिया जिसके कारण शिवलिंग हवा में लटका हुआ था। शिवलिंग जैसे ही भूमि पर गिरा महमूद गजनवी ने उसे तोड़ दिया। इसके बाद सोमनाथ मंदिर को खोद-खोदकर लूटा गया।”
सोमनाथ लूट के दौरान महमूद गजनवी को 200 मन की सोने की जंजीर, हीरे-जवाहरातों से जड़ित शिवलिंग का छत्र, स्वर्ण-चांदी निर्मित मूर्तियों के अतिरिक्त किवाड़ों, चौखटों और छतों में जड़ित चांदी प्राप्त हुई। बीबीसी के एक लेख मुताबिक, सोमनाथ से महमूद गजनवी को तकरीबन छह टन सोने के बराबर लूट हाथ लगी थी।
गजनी लौटते समय महमूद पर सिन्ध के जाटों का हमला
सोमनाथ में पंद्रह दिन रहने के पश्चात महमूद गजनवी अतुल धन-सम्पदा लेकर सिन्ध के रेगिस्तान से गजनी के लिए रवाना हुआ। दरअसल एक भारतीय मार्गदर्शक ने उसे सही मार्ग से भटका कर बहुत हानि पहुंचाई। जिस समय महमूद गजनवी सोमनाथ को लूटकर वापस जा रहा था, तब रास्ते में सिन्ध के जाटों ने उसे लूटने की कोशिश की। हांलाकि महमूद गजनी अपने लूटे हुए खजाने के साथ सुरक्षित गजनी पहुंचने में सफल हो गया।
बावजूद इसके महमूद गजनवी जाटों के उस हमले को भूला नहीं था, लिहाजा जाटों को दण्ड देने के लिए 1027 ई. में महमूद गजनवी अंतिम बार भारत आया। महमूद गजनवी ने इस दौरान जाटों को कठोरता से समाप्त किया। जाटों की सम्पत्ति लूट ली, उनके बच्चों तथा स्त्रियों को दास बनाकर गजनी ले गया।
यह महमूद गजनवी का भारत पर अंतिम आक्रमण था। भारत पर किए अंतिम आक्रमण के ठीक तीन साल बाद यानि 1030 ई. में 59 वर्ष की उम्र में महमूद गजनवी का निधन हो गया। ईरानी इतिहासकार ख़ोनदामीर के अनुसार, “महमूद गजनवी की मौत हार्ट अटैक से हुई थी।”
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