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Kushan king Kanishka was killed by covering his face with a quilt and beating him with maces

रजाई से मुंह ढंककर मुग्दरों से पीटकर हुई थी हत्या, कौन था वह महान शासक?

कुषाण वंश का सबसे महान शासक कनिष्क एक युद्ध विजेता, साम्राज्य निर्माता तथा विद्या एवं कला-कौशल का उदार संरक्षक था। एक कुशल सेनानायक तथा सफल प्रशासक कनिष्क ने अपनी विजयों के द्वारा एशिया के महान राजाओं में अपना स्थान बना लिया।

लेखों में कनिष्क को महाराजाधिराजदेवपुत्र कहा गया है।देवपुत्र की उपाधि से यह सूचित होता है कि कनिष्क अपनी दैवीय उत्पत्ति में विश्वास करता था। बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार में सम्राट कनिष्क ने अपने साम्राज्य के साधनों को लगा दिया। उत्तरी बौद्ध अनुश्रुतियों में कनिष्क का वही स्थान है जो दक्षिणी बौद्ध अनुश्रुतियों में सम्राट अशोक का है। 

आपको यह बात जानकर हैरानी होगी कि अन्तरराष्ट्रीय साम्राज्य की स्थापना करने वाले सम्राट कनिष्क का अन्त बेहद दुखद तरीके से हुआ। कनिष्क के सैनिकों ने लिहाफ (रजाई) से उसका मुंह ढंककर फिर मुग्दरों से पीटकर उसे मार डाला था। कनिष्क की मृत्यु से जुड़ी इस रोचक जानकारी के लिए यह स्टोरी अवश्य पढ़ें।

कनिष्क की दो यादगार उपलब्धियां

भारतीय इतिहास में सम्राट कनिष्क को दो कारणों से ज्यादा ​याद किया जाता है, पहला-उसने 78 ई. में एक संवत् चलाया जो शक संवत् कहलाता है। यह संवत् आज भी भारत सरकार द्वारा प्रयोग में लाया जाता है। दूसरा-उसने बौद्ध धर्म का मुक्त हृदय से संरक्षण एवं सम्प्रेषण किया।

कनिष्क के समय में कश्मीर के कुण्डलवन में वसुमित्र की अध्यक्षता में चौथी बौद्ध संगीति हुई। इस संगीति में बौद्ध ग्रन्थों पर टीकाएं लिखीं जो विभाषशास्त्र कहलाती है। कनिष्क की प्रथम राजधानी पेशावर (अब पाकिस्तान में) तथा दूसरी राजधानी मथुरा थी। कनिष्क ने कश्मीर को जीतकर वहां कनिष्कपुर नामक नगर बसाया।

महान विद्वानों का आश्रयदाता था कनिष्क

कनिष्क विद्या का उदार संरक्षक था तथा उसकी राज्यसभा में कई महान विद्वान विद्यमान थे। इनमें पार्श्व, वसुमित्र और अश्वघोष प्रमुख थे। कनिष्क का राजकवि था अश्वघोष। अश्वघोष की तीन प्रमुख रचनाएं हैं - ‘बुद्धचरित’, ‘सौन्दरनन्द तथा शारिपुत्रप्रकरण। कवि एवं नाटककार होने के साथ-साथ अश्वघोष एक महान संगीतज्ञ, कथाकार, नीतिज्ञ तथा दार्शनिक भी था। विद्वानों ने अश्वघोष की तुलना मिल्टन, गेटे, कान्ट तथा वाल्टेयर आदि से की है।

वहीं नागार्जुन जैसे प्रकाण्ड पंडित और चरक जैसे महान चिकित्सक उसकी राज्यसभा के रत्न थे। माध्यमिक दर्शन के प्रसिद्ध आचार्य नागार्जुन ने प्रज्ञापारमितासूत्र की रचना की थी जिसमें शून्यवाद का प्रतिपादन है। कनिष्क के राज गुरू थे पार्श्व। पार्श्व की सलाह से ही कनिष्क ने कश्मीर के कुण्डलवन में चौथी बौद्ध संगीति का आयोजन किया।

कनिष्क के अन्य विद्वानों में वसुमित्र को ​चतुर्थ बौद्ध संगीति की अध्यक्षता, त्रिपिटकों का भाष्य तैयार करने तथा विभाषाशास्त्र की रचना का श्रेय दिया जाता है। बता दें कि आयुर्वेद के महान विद्वान चरक उसकी राज्यसभा में निवास करते थे। कनिष्क के राजवैद्य थे चरक जिन्होंने चरक संहिता की रचना की। चरक संहिता औषधिशास्त्र की सबसे प्राचीनतम रचना है जिसका अनुवाद अरबी, फारसी भाषाओं में बहुत पहले ही किया जा चुका है।

कनिष्क द्वारा अन्तरराष्ट्रीय साम्राज्य की स्थापना

कनिष्क ने 23 वर्षों तक राज्य किया। वह एक कुशल सेनानायक तथा सफल प्रशासक था। उसने अनेक विजयों के द्वारा एक विशाल साम्राज्य का निर्माण किया। कनिष्क का साम्राज्य उत्तर में कश्मीर से लेकर दक्षिण में विन्ध्यपर्वत तक तथा पश्चिम में उत्तरी अफगानिस्तान से लेकर पूर्व में पूर्वी उत्तर प्रदेश एवं बिहार तक फैला हुआ था।

कल्हण कृत राजतंरगिणी से जहां कश्मीर पर उसका अधिकार सूचित होता है। वहीं सुई विहार तथा सांची के लेख से सिन्ध, मालवा, गुजरात, राजस्थान के कुछ भाग तथा उत्तरी महाराष्ट्र पर कनिष्क के अधिकार होने की पुष्टि होती है। इसी प्रकार कौशाम्बी, श्रावस्ती, सारनाथ आदि के लेख पूर्वी उत्तर प्रदेश पर कनिष्क के आधिपत्य को सूचित करते हैं।

कनिष्क केवल उत्तरी भारत के विजय से ही सन्तुष्ट नहीं था उसका युद्ध चीन के विख्यात सेनापति पान-चाओ से हुआ परन्तु वह पराजित हुआ। हांलाकि बाद में कनिष्क ने पान-चाओ के उत्तराधिकारी को हराकर चीनी शासक से कश्गार, खोतान व यारकन्द प्रदेश (आधुनिक ज़िनजियांग) पर अपना आधिपत्य कायम कर लिया। इस प्रकार कनिष्क ने पहली बार अन्तरराष्ट्रीय साम्राज्य की स्थापना की।

कनिष्क का बेहद दु:खद अन्त

संस्कृत बौद्ध ग्रन्थों के चीनी अनुवाद में कनिष्क की मृत्यु से जुड़ी जो अनुश्रुति सुरक्षित है, उसके मुताबिक कनिष्क की अतिशय लोलुपता, निर्दयता तथा युद्ध विजय की महत्वाकांक्षाओं से प्रजा में भारी असंतोष फैल चुका था।

कनिष्क के निरन्तर युद्धों से उसके सैनिक तंग आ चुके थे अत: उसके विरूद्ध एक विद्रोह उठ खड़ा हुआ। एक बार कनिष्क जब उत्तरी ​अभियान पर जा रहा था, तभी मार्ग में बीमार पड़ा। उसी समय कनिष्क के सैनिकों ने लिहाफ (रजाई) से उसका मुंह ढंककर मुग्दरों से पीटकर उसे मार डाला। हांलाकि इस कथा का सटीक प्रमाण नहीं मिलता है परन्तु इससे ऐसा प्रतीत होता है कि महान शासक कनिष्क का अन्त अत्यन्त दुखद रहा।

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