
विजयनगर साम्राज्य का सबसे महान शासक कृष्णदेवराय एक महान योद्धा होने के साथ-साथ महान विद्वान एवं विद्या प्रेमी भी था, इसीलिए उसे ‘अभिनव भोज’ अथवा ‘आन्ध्रभोज’ भी कहा जाता था। कृष्णदेवराय ने जाम्बवती कल्याणम, उषा परिणय, सकल कथासार- संग्रहम, मदारसा चरित्र तथा सत्यवधु-परिणय नामक ग्रन्थों की रचना भी की। कृष्णदेवराय के दरबार में तेलुगू के आठ महान विद्वान एवं कवि रहते थे, जिन्हें ‘अष्टदिग्गज’ कहा जाता था।
तकरीबन सभी युद्धों में अपराजेय रहने वाले कृष्णदेवराय को मुगल बादशाह बाबर ने भी अपनी आत्मकथा ‘तुजुक-ए-बाबरी’ में भारत का सबसे शक्तिशाली शासक बताया है। कृष्णदेवराय के शासनकाल में पुर्तगाली यात्री डेमिंगो पायस, डुआर्टे बारबोसा व फर्नाओ नुनिज़ विजयनगर आए। इसके अतिरिक्त फारसी यात्री अब्दुल रज्जाक ने भी विजयनगर की यात्रा की। इन विदेशी यात्रियों ने कृष्णदेवराय के हाथी प्रेम के बारे में जो लिखा है, उसे जानकर आप हैरान रह जाएंगे।
कृष्णदेवराय का हाथी प्रेम
कृष्णदेव राय एक महान योद्धा ही नहीं वरन विजयनगर के इतिहास में महानतम सेनानायक भी था। कृष्णदेव राय ने 1520 ई. तक अपने समस्त शत्रुओं को परास्त कर विजयनगर साम्राज्य को अजेय शक्ति बना दिया था। हांलाकि फारस की खाड़ी के महत्वपूर्ण बन्दरगाह पर पुर्तगालियों के अधिकार हो जाने के बाद अरबी-फारसी घोड़ों का व्यापार अब पूरी तरह से पुर्तगालियों के हाथों में आ गया था।
ऐसे में कृष्णदेव राय को पुर्तगालियों के प्रति उदार दृष्टिकोण अपनाना पड़ा। कृष्णदेव राय ने पुर्तगालियों से सन्धि कर ली क्योंकि वे उत्तम नस्ल के घोड़ों की आपूर्ति करते थे। पुर्तगालियों से अच्छे सम्बन्धों के कारण कई पुर्तगालियों व्यापारियों तथा यात्रियों ने विजयनगर की यात्रा की जिनमें डेमिंगो पायस, डुआर्टे बारबोसा व फर्नाओ नुनिज़ का नाम प्रमुख है। उपरोक्त तथ्यों से यह साबित होता है कि कृष्णदेव राय की सेना में उत्तम नस्ल के अरबी-फारसी घोड़े शामिल थे परन्तु यह बात जानकर आप हैरान रह जाएंगे कि कृष्णदेवराय हाथियों से भी बेहद प्रेम करता था।
कृष्णदेवराय निर्मित विट्ठल मंदिर की दीवारों पर उत्कीर्ण हाथियों से जुड़े विभिन्न चित्र तथा हम्पी में शाही हाथियों के निवास के लिए निर्मित विशाल मंदिरनुमा हाथी अस्तबल के अतिरिक्त विदेशी यात्रियों में डेमिंगो पायस, डुआर्टे बारबोसा, फर्नाओ नुनिज़ व अब्दुल रज्जाक ने हाथियों के समबन्ध में जो लिखा है, उससे राजा कृष्णदेवराय के हाथियों के प्रति दीवानगी साबित होती है।
हम्पी के विट्ठल मंदिर पर उत्कीर्ण हाथियों के चित्र
हम्पी के प्रसिद्ध विट्ठल मंदिर को राजा देवराय द्वितीय ने बनवाया था किन्तु महाप्रतापी राजा कृष्णदेवराय ने इस मंदिर के कई हिस्सों का विस्तार करते हुए इसे भव्य स्वरूप प्रदान किया। भगवान विष्णु के अवतार भगवान विट्ठल को समर्पित इस मंदिर की नक्काशी देखते ही बनती है।
विट्ठल मंदिर के आधार को योद्धाओं, घोड़ों, हंसों के साथ-साथ कई अन्य तरह की नक्काशी से अलंकृत किया गया है। परन्तु सबसे ज्यादा ध्यान देने योग्य बात यह है कि सम्पूर्ण विट्ठल बाजार घोड़ों को समर्पित था बावजूद इसके इस मंदिर की नक्काशी में हाथियों का प्रभुत्व है। विट्ठल मंदिर की दीवारों पर जो चित्र उत्कीर्ण किए गए हैं उनमें हाथियों की बिक्री करते हुए, हाथियों के समूह को मार्च करते हुए तथा पालतू हाथियों को दिखाया गया है। इससे यह साबित होता है कि राजा कृष्णदेवराय ने अपने साम्राज्य में हाथियों को बहुत ज्यादा महत्ता प्रदान की थी।
हम्पी का महलनुमा हाथी अस्तबल
हाथियों के प्रति प्रेम के लिए के मशहूर राजा कृष्णदेवराय ने हम्पी में एक विशाल हाथी अस्तबल का निर्माण करवाया था। वर्तमान में यह हाथी अस्तबल हम्पी के सबसे लोकप्रिय पर्यटक आकर्षणों में से एक है। कृष्णदेवराय ने शाही हाथियों के निवास के लिए जिस महलनुमा हाथी अस्तबल का निर्माण करवाया उसकी वास्तुकला को देखकर आप आश्चर्यचकित हो सकते हैं।
विजयनगर की शाही हाथियों को आरामदायक और सुरक्षित वातावरण प्रदान करने के लिए कृष्णदेवराय ने 11 गुम्बदाकार कक्षों वाले एक लम्बी और आयताकार सरंचना का निर्माण करवाया। इंडो-सल्तनत वास्तुकला में निर्मित इस हाथी अस्तबल के प्रत्येक कक्ष में दो हाथियों को रखा जाता था। हाथियों को बांधने के लिए गुम्बद की छत में विशेष धातु के हुक बने हुए देखे जा सकते हैं। इतना ही नहीं प्रत्येक हाल के पीछे महावतों के लिए मैनहोल (अब ईंटों से बंद कर दिया गया है) बने हुए हैं ताकि वे हाथियों के हौदों पर चढ़ सकें।
हाथी अस्तबल के केन्द्रीय कक्ष की नक्काशी देखते ही बनती है, शायद इस कक्ष का इस्तेमाल संगीतकार अथवा वाद्यक मंडली हाथी जुलूस से जुड़े समारोहों के दौरान करते थे। हाथी अस्तबल के मेहराबों पर जटिल नक्काशी की गई है। हाथी अस्तबल का गुम्बददार छत इस्लामिक स्थापत्य कला का बेहतरीन उदाहरण है। पत्थरों से बनी यह पूरी संरचना विजयनगर साम्राज्य की स्थापत्य कला का बेजोड़ नमूना है।
विदेशी यात्रियों का विवरण
राजा कृष्णदेव राय के शासनकाल में कई प्रख्यात विदेशी यात्रियों ने विजयनगर साम्राज्य की यात्रा की। इन यात्रियों के यात्रा संस्मरण से कृष्णदेव राय की हाथियों के प्रति दीवानगी जाहिर होती है।
1. फारसी यात्री अब्दुल रज्जाक
मध्य एशियाई विजेता तैमूर (तैमूर लंग) के बेटे शाहरुख ने साल 1405 से 1447 ई. के मध्य फारस और ट्रांसऑक्सियाना के अधिकांश हिस्सों पर शासन किया। ऐसे में शाहरुख के एक दूत अब्दुल रज्जाक ने 1443 ई. में विजयनगर की यात्रा की। अब्दुल रज्जाक अपने यात्रा संस्मरण में लिखता है कि “शाही परिवार के पास असंख्य हाथी थे जो अत्यन्त विशालकाय थे। इनमें से एक सफेद हाथी था जिसे प्रत्येक सुबह राजा कृष्णदेव राय के समक्ष लाया जाता था। इस सफेद हाथी के दर्शन करना एक शुभ संकेत माना जाता था।”
अब्दुल रज्जाक आगे लिखता है कि “शाही हाथियों को दिन में दो बार मक्खन से भरपूर खिचड़ी खिलाई जाती थी। इतना ही नहीं, कृष्णदेवराय छोटी-छोटी गलतियों के लिए भी महावतों को सजा देते थे। फारसी यात्री अब्दुल रज्जाक के यात्रा विवरण से हम्पी के हाथी अस्तबल की भी गूढ़ जानकारी मिलती है।
वह लिखता है कि “हम्पी का हाथी अस्तबल शाही हाथियों के लिए विशेष रूप से आरक्षित है। प्रत्येक हाथी के लिए अलग कक्ष बने हुए हैं। हाथी अस्तबल की दीवारें बेहद मजबूत एवं ऊँची हैं, जहां हाथियों को बांधने के लिए जंजीरें ऊपर की बीम से मजबूती से जुड़ी हुई हैं। अब्दुल रज्जाक यह भी लिखता है कि किस प्रकार से हाथियों को पकड़कर शाही सेना में भर्ती करने के प्रशिक्षित किया जाता था।
2. पुर्तगाली यात्री डेमिंगो पायस
कृष्णदेव राय के दरबार में आए पुर्तगाली यात्री डेमिंगो पायस ने हम्पी के महानवी उत्सव पर शाही हाथियों की सजावट का उल्लेख किया है। वह लिखता है कि “हाथियों की एक टुकड़ी को मखमल के कपड़ों तथा स्वर्ण आभूषणों से सजाया गया है, जिनके किनारों पर रंग-बिरंगे बेहतरीन कपड़ों से गूथीं घंटियां लगी हुई हैं ताकि उनके चलने से धरती गूंजे।
हाथियों के सिर पर दैत्यों सहित अनेक बड़े जानवरों के चेहरे चित्रित है। प्रत्येक हाथी की पीठ पर अंगरखा पहने, ढाल-भालों से लैश तीन-चार आदमी बैठे हुए हैं।” उपरोक्त वर्णन से यह जानकारी मिलती है कि महानवी उत्सव पर राजा कृष्णदेव राय हाथियों का भव्य प्रदर्शन करता था।
3. पुर्तगाली यात्री डुआर्टे बारबोसा
पुर्तगाली यात्री डुआर्टे बारबोसा ने साल 1501 में हम्पी की यात्रा की। वह लिखता है कि “राजा कृष्णदेव राय के पास 900 से ज्यादा हाथी थे। ये सभी हाथी बेहद सुन्दर और विशालकाय थे जो युद्ध और शाही सेवा, दोनों के लिए इस्तेमाल किए जाते थे।”
4. पुर्तगाली यात्री फर्नाओ नुनिज़
पुर्तगाली यात्री फर्नाओ नुनिज़ ने विजयनगर साम्राज्य के युद्ध हाथियों का बड़ा ही रोचक वर्णन किया है। नुनिज लिखता है कि “युद्ध हाथियों के दांतों पर पैने चाकू लगे हुए थे। आगे वह लिखता है कि राजा की जब इच्छा होती थी वह हाथियों के समक्ष जिस आदमी को फेंकने का आदेश देता था, तब वे हाथियां उस शख्स को टुकड़े-टुकड़े कर देती थीं।”
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