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Khanzada Begum who surrendered herself to Shaybani Khan to save Babur's life

बाबर के बदले खुद को दुश्मन के हवाले करने वाली मुगल राजकुमारी

मुगल बादशाह बाबर ने हिन्दुस्तान में अपने प्रत्येक दुश्मन को करारी शिकस्त दी थी। किन्तु यह बात जानकर हैरान रह जाएंगे कि एक उज्बेक योद्धा जिसने बाबर को मक्खन की तरह उधेड़कर रख दिया था। इसी उज्बेक योद्धा चलते बाबर को विवश होकर फरगना और समरकन्द छोड़कर भारत की ओर रूख करना पड़ा था। 

जी हां, मैं उज्बेक योद्धा शायबानी खान की बात कर रहा हूं, जिसके बारे में इतिहास में बहुत ही कम ही पढ़ा-लिखा गया है। उज्बेक योद्धा शायबानी खान जब तक जीवित रहा, तब तक बाबर चाहकर भी उसे हरा नहीं पाया। एक बार तो स्थिति यह बन गई कि बाबर की बड़ी बहन जो बेहद खूबसूरत एवं ​बुद्धिमान थी, उसने खुद को शायबानी खान के हवाले कर दिया, तब जाकर बाबर की जान बच पाई। बाबर की उस खूबसूरत बहन का नाम खानजादा बेगम था।

अब आप सोच रहे होंगे कि आखिर में ऐसा क्या हुआ था, जिसके लिए साम्राज्य की सबसे खूबसूरत एवं शक्तिशाली महिला खानजादा बेगम ने खुद को बाबर के दुश्मन शायबानी खान के हवाले कर दिया? यह जानने के लिए इस रोचक स्टोरी को जरूर पढ़ें।

कौन था शायबानी खान

उज्बेक योद्धा शायबानी खान की गिनती मध्य एशिया के खूंखार योद्धाओं में की जाती है। शायबानी खान जब तक जीवित रहा, तब तक मुगल बाबर चाहकर भी उसे हरा नहीं पाया। शायबानी खान ने कई युद्धों में मुगल बाबर को मक्खन की तरह उधेड़कर रख दिया था। नौबत यह आ गई कि इसी उज्बेक योद्धा के चलते मुगल बाबर को फरगना और समरकन्द छोड़कर हिन्दुस्तान की तरफ रूख करना पड़ा। बाबर ने अपनी आत्मक​था तुजुक--बाबरी’ (बाबरनामा) में बतौर सैन्य कमांडर शायबानी खान की युद्ध क्षमता को एक सिरे से स्वीकार किया है।

खूंखार उज्बेक योद्धा मुहम्मद शायबानी खान का मूल नाम शिबाघ था। मुहम्मद शायबानी खान को मध्यकालीन इतिहास में अबुल फतह शायबानी खान, शायबाक खान तथा शाही बेग खान के नाम से भी जाना जाता है। शायबानी खान के पिता सुल्तान बुदाक उलूस के शासक थे, शायबानी के मां का नाम अक कुजी बेगम था।

यूनानी आक्रमणकारी सिकन्दर से प्रभावित शायबानी खान की इतिहास में विशेष रूचि थी। शायबानी खान खूंखार योद्धा होने के साथ-साथ एक शिक्षाविद् भी था जिसने अनेक फारसी रचनाओं का तुर्की भाषा में अनुवाद करवाया। शायबानी खान को इस्लामिक विद्वता के लिए भी याद किया जाता है।

शायबानी खान ने कुछ गद्य रचनाएं लिखी हैं, जो आज भी संरक्षित हैं। चगताई भाषा में लिखित शायबानी खान की एक कृति का नाम रिसाले-यि-मारिफ--शायबानी है, जो उसने अपने बेटे को समर्पित की। वहीं धर्म पर खुद के विचारों से जुड़ी उसकी एक दार्शनिक कृति का नाम बहर-उल-खुदो है। शायबानी खान के शासनकाल में बना चोर बक्र स्मारक परिसर स्थापत्य कला का बेहतरीन उदाहरण है।

मुगल शहजादी खानजादा बेगम

खानजादा बेगम फरगना के अमीर उमर शेख मिर्जा की सबसे बड़ी बेटी थी। साल 1478 में जन्मी खानजादा बेगम की मां का नाम कुतलुग निगार खानम था। खानजादा बेगम अपने भाई बाबर से पांच साल बड़ी थी। खानजादा बेगम खूबसूरत होने के साथ-साथ राजनीतिक जोड़तोड़ में भी माहिर थी। खानजादा बेगम का नाम मुगल वंश की सबसे खूबसूरत एवं ताकतवर महिलाओं में शामिल है।

भारत में मुगल साम्राज्य की स्थापना के बाद बाबर ने खानजादा बेगम को पादशाह बेगम की उपाधि से नवाजा था। खानजादा बेगम के त्याग और बलिदान की कद्र तकरीबन प्रत्येक मुगल बादशाह ने की। क्योंकि खानजादा बेगम ही वह नाम है जिसके चलते बाबर की जान बची और मुगल साम्राज्य का इतिहास स्वर्णिम अक्षरों में लिखा जा सका।

मुगल शहजादी खानज़ादा बेगम का ज़िक्र बादशाह बाबर ने अपनी आत्मकथा बाबरनामा’ (तुजुक--बाबरी) में कई बार किया है, वो भी स्नेह और सम्मान के साथ। बाबर की बेटी गुलबदन बेगम ने भी अपनी ऐतिहासिक कृति हुमायूंनामा में खानजादा बेगम का उल्लेख बार-बार किया है। गुलबदन बेगम अपनी बुआ खानजादा बेगम को प्यार से अक्का जानम कहती थी।

मुगल कृतियों बाबरनामा’ (तुजुक--बाबरी) और हुमायूंनामा से जानकारी मिलती है कि कई महत्वपूर्ण अवसरों तथा संकटों के दौर में खानजादा बेगम ने राजनीतिक हस्तक्षेप कर मुगल वंश का मार्ग प्रशस्त किया था।

सरायपुल का युद्ध : खानजादा बेगम ने बचाई बाबर की जान

यद्यपि कई युद्धों में उज्बेक योद्धा शायबानी खान ने बाबर को शिकस्त दी थी। किन्तु साल 1500-1501 ई. में बाबर और शायबानी खान के बीच एक ऐसी निर्णायक जंग हुई जिसे मध्यकालीन इतिहास में सरायपुल युद्ध के नाम से जाना जाता है। सरायपुल के युद्ध में शायबानी खान ने बाबर और उसकी सेना को मक्खन की तरह उधेड़कर रख दिया। इस जंग में बाबर की पूरी सेना नष्ट हो गई थी। शायबानी खान की सेना के समक्ष बाबर के कई बहादुर एवं अनुभवी सैन्य पदाधिकारी भी मारे गए थे।

सरायपुल युद्ध में शायबानी खान ने बाबर को समरकन्द में छह महीने तक घेरे रखा, स्थिति ऐसी थी कि बाबर का कोई रिश्तेदार भी उसकी मदद के लिए आगे नहीं आया। लिहाजा बाबर के सैनिक दो जून की रोटी के लिए भी तरस गए थे। इस दौरान शायबानी खान ने बाबर को भेजे गए संदेश में खानजादा बेगम के बदले सन्धि करने की शर्त रखी।

फिर क्या था, राजनीतिक जोड़तोड़ में माहिर एवं मुगल दुश्मनों को अपने दांव-पेंच में फंसाने वाली खानजादा बेगम ने अपने छोटे भाई बाबर की जान बचाने के लिए खुद को शायबानी खान के हवाले कर दिया।हुमायूंनामा में गुलबदन बेगम लिखती है कि अपनी बहन खानजादा बेगम को शायबानी खान के हाथों सौंपने के बाद निराश-हताश और निहत्थे बाबर ने काबुल की ओर रूख किया।इस प्रकार 23 वर्षीय खानजादा बेगम ने शायबानी खान से निकाह कर अपने भाई बाबर के प्राणों की रक्षा की।

शायबानी खान और खानजादा बेगम

अबुल फ़जल की कृति अकबरनामा के अंग्रेजी अनुवाद में ब्रिटिश इतिहासकार हेनरी बेवरिज लिखता है कि शायबानी-नामा के अनुसार, “खानजादा बेगम और शायबानी खान का विवाह एक प्रेम सम्बन्ध था।हेनरी बेवरिज आगे लिखता है कि बाबर ने पूरी परिस्थितियों का उल्लेख नहीं किया है। सम्भव है, शायबानी खान और बाबर के बीच हुए समझौते का हिस्सा बनी थी खानजादा बेगम।

शादी के बाद शायबानी खान और खानजादा बेगम से एक बेटा पैदा हुआ, जिसका नाम खुर्रम था। किन्तु शैशवास्था में ही उसकी मौत हो गई। खानजादा बेगम जब अपने भाई बाबर और तैमूरी खानदान की प्रशंसा करती तो शायबानी खान चिढ़ बैठता था। आखिरकार जुलाई 1500 में शायबानी खान ने खानजादा बेगम की मौसी निगार खानम को कैद कर, उससे जबरदस्ती निकाह कर लिया और फिर उसने खानजादा बेगम को तलाक दे दिया।

बाबर के पास लौटीं खानजादा बेगम

उज्बेक सुल्तान शायबानी खान ने खानजादा बेगम को तलाक तो ​दे दिया किन्तु उसने खानजादा की शादी अपने ही सैन्य अधिकारी सैयद हादा से करवा दी। साल 1510-11 में मार्व के युद्ध में शाह इस्माइल प्रथम ने शायबानी खान को ​करारी शिकस्त दी। इस युद्ध में शायबानी खान और सैयद हादा, दोनों ही मारे गए।

इसके बाद साल 1511 में शाह इस्माइल प्रथम ने 33 वर्षीय खानजादा बेगम को एक सैन्य दल के साथ कुंदुज में बाबर के पास वापस भिजवा दिया। इस प्रकार वह शायबानी खान के कब्जे से मुक्त हुईं। बदले में बाबर ने शाह इस्माइल प्रथम को उपहारों के साथ ही कुछ शर्तों पर सैन्य सहायता देने का वादा किया। 

खानजादा बेगम की मेंहदी ख्वाजा से शादी

तकरीबन 10 साल बाद खानजादा बेगम की अपने भाई बाबर के यहां वापसी हुई। तत्पश्चात मोहम्मद मेंहदी ख्वाजा से खानजादा बेगम का निकाह करवाया गया। खानजादा बेगम की यह तीसरी शादी थी। खानजादा बेगम और मेंहदी ख्वाजा बीच हुई शादी की सटीक तारीख का कोई प्रमाण उपलब्ध नहीं है। हांलाकि बाबर ने अपनी कृति में मेंहदी ख्वाजा का कई बार जिक्र किया है।

हांलाकि शायबानी खान से हुए बेटे के बाद खानजादा बेगम की कोई सन्तान नहीं हुई। खानजादा बेगम अपने शौहर मेंहदी ख्वाजा की 2 वर्षीय बहन सुल्तानम बेगम को अपनी बेटी की तरह प्यार करती थीं। वर्षोपरान्त साल 1537 में खानजादा बेगम ने सुल्तानम बेगम की शादी अपने भतीजे हिंन्दाल मिर्जा से करवा दी। इस शादी का पूरा प्रबन्ध खानजादा बेगम ने स्वयं किया था।

खानजादा बेगम का निधन

यह वह दौर था, जब हिन्दुस्तान में मुगल साम्राज्य की नींव रखने वाले बाबर की मौत हो चुकी थी। बाबर का बड़ा बेटा बादशाह हुमायूं भी शेरशाह सूरी से शिकस्त खाकर हिन्दुस्तान वापसी के लिए जद्दोजहद कर रहा था। सितम्बर 1545 में तीन दिन तक बुखार से पीड़ित रहने के पश्चात चौथे दिन खानजादा बेगम ने दम तोड़ दिया, चिकित्सकों का उपचार बेअसर रहा।

हांलाकि मौत के वक्त खानजादा बेगम अपने भतीजे हुमायूं के पास थीं। खानजादा बेगम को काबुल स्थित उसी कब्रगाह में दफनाया गया, जहां बाबर दफन था। काबुल में यह जगह बाग-ए-बाबरके नाम से मशहूर है।

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