
वरिष्ठ पत्रकार रशीद किदवई की किताब ‘हाउस ऑफ़ सिन्धियाज : अ सागा ऑफ पावर, पॉलिटिक्स एण्ड एंट्रीग’ और प्रख्यात ब्रिटिश इतिहासकार डोमिनिक लापियर और लैरी कॉलिन्स की किताब ‘फ्रीडम एट मिडनाइट’ को लोग आज भी केवल इसलिए याद करते हैं क्योंकि इसमें सिन्धिया राजपरिवार विशेषकर ग्वालियर के महाराजा जयाजीराव सिन्धिया से जुड़ी रोचक जानकारियों का उल्लेख किया गया है।
दरअसल महाराजा जयाजीराव सिन्धिया को ग्वालियर रियासत को आधुनिक बनाने का श्रेय दिया जाता है। रियासत में ‘कर’ संग्रह का नया तरीका, न्यायालय की स्थापना तथा आगरा से लेकर ग्वालियर तक रेलवे लाइन का निर्माण आदि जयाजीराव सिन्धिया की कुछ यादगार उपलब्धियां हैं।
बता दें कि आगरा-ग्वालियर रेलवे लाइन निर्माण के लिए साल 1872 में जयाजीराव सिन्धिया ने 75 लाख रुपए दिए थे, उस जमाने में यह बहुत बड़ी रकम थी। यहां तक कि जब रेलवे लाइन बनकर तैयार हो गई तब जयाजीराव सिन्धिया तकरीबन 18 किलोमीटर तक स्टीम इंजन खुद चलाकर ले गए थे।
इससे इतर महाराजा जयाजीराव सिन्धिया द्वारा ‘जयविलास पैलेस’ का निर्माण जो शायद बकिंघम पैलेस (ब्रिटेन के राजमहल) से भी बड़ा है, ग्वालियर रियासत की शक्ति एवं समृद्धि का प्रतीक है। इटली के मार्बल से तैयार जयविलास पैलेस को दुनिया के मशहूर आर्किटेक्ट ‘कर्नल सर माइकल फेलोस’ ने डिजाइन किया था। महाराजा जयाजीराव सिन्धिया ने महल की मजबूती जांचने के लिए जयविलास महल के ऊपर हाथी चढ़ा दिए थे।
इस स्टोरी में हम रशीद किदवई की चर्चित किताब ‘हाउस ऑफ़ सिन्धियाज : अ सागा ऑफ पावर, पॉलिटिक्स एण्ड एंट्रीग’ के उस हिस्से का उल्लेख करेंगे जिसमें महाराजा जयाजीराव सिन्धिया के उस अकूत खजाने के बारे में लिखा गया है, जो आज भी ग्वालियर किले के तहखानों में दफन है।
ग्वालियर किले के अकूत खजाने तक पहुंचने का सीक्रेट कोड ‘बीजक’ था, जो सिर्फ जयाजीराव सिन्धिया को ही पता था। हांलाकि माधवराव सिन्धिया ने उस खजाने को ढूंढ़ने की कई बार कोशिश की परन्तु खजाने का कुछ हिस्सा ही हाथ लगा। इस प्रकार जयाजीराव सिन्धिया ने ग्वालियर के तहखानों में जो अकूत खजाना छुपाया था, उसका रहस्य जानने के लिए यह रोचक स्टोरी जरूर पढ़ें।
जयाजीराव सिन्धिया के पास थी अकूत दौलत
महाराजा जयाजीराव सिन्धिया को अपने पूर्वजों से अकूत सम्पत्ति विरासत में मिली थी। यही वजह है कि ग्वालियर के महाराजा जयाजी राव की गिनती देश के सबसे अमीर महाराजाओं में होती थी। साल 1857-1858 में अंग्रेज ग्वालियर किले का उपयोग सैनिक छावनी के रूप में कर रहे थे। अत: महाक्रांति के दौरान जयाजीराव सिन्धिया ने अपने अकूत खजाने को अंग्रेजों तथा विद्रोहियों से सुरक्षित रखने के लिए ग्वालियर किले के अलग-अलग तहखानों में छुपाकर रख दिया।
जयाजीराव सिन्धिया के अकूत खजाने का रहस्य
महाराजा जयाजीराव सिन्धिया ने ग्वालियर किले के अलग-अलग तहखानों में खजाने को छुपा कर रख दिया था। इन तहखानों को ‘गंगाजली’ नाम दिया गया था। रशीद किदवई अपनी किताब ‘हाउस ऑफ़ सिन्धियाज : अ सागा ऑफ पावर, पॉलिटिक्स एण्ड एंट्रीग’ में लिखते हैं कि ‘गंगाजली’ तहखाने एक खास कोड वर्ड से ही खुलते थे, जिसका नाम ‘बीजक’ था। ऐसा कहा जाता है कि ‘बीजक’ की जानकारी सिर्फ महाराजा जयाजीराव सिन्धिया को ही थी।
माधो राव सिन्धिया को ऐसे मिला था खजाने का कुछ हिस्सा
खजाना नं. 01— खजाने तक पहुंचने का सीक्रेट कोड ‘बीजक’ का रहस्य सिर्फ जयाजीराव सिन्धिया ही जानते थे। जयाजीराव सिंधिया अपने वारिस माधो राव सिंधिया को सीक्रेट कोड ‘बीजक’ का रहस्य बताते इससे पूर्व ही उनकी मृत्यु हो गई। बता दें कि जब जयाजीराव का निधन हुआ, तब माधो राव सिन्धिया की उम्र महज 10 साल थी। इस तरह माधो राव अपने पिता जयाजीराव सिन्धिया के उस अकूत खजाने से दूर हो गए।
सिन्धिया रियासत की गद्दी पर बैठने के बाद माधो राव एक दिन ग्वालियर किले के एक तहखाने से गुजर रहे थे, तभी अचानक उनका पैर फिसला। खुद को सुरक्षित रखने के लिए माधो राव ने जैस ही एक खम्भे को जोर से पकड़ा तभी एक तहखाने का दरवाजा खुल गया। इस तहखाने से माधो राव को 2 करोड़ चांदी के सिक्के तथा बहुमूल्य रत्न प्राप्त हुए।
खजाना नं. 02— साल 1886 में महाराजा माधो राव सिन्धिया ने अंग्रेज अफसर कर्नल बैनरमैन से खजाना ढूंढने के लिए सहायता मांगी। काफी प्रयास के बाद कर्नल बैनरमैन सोने के कुछ सिक्के खोजने में कामयाब हुए, इन स्वर्ण सिक्कों की कीमत 6 करोड़ 20 लाख के आसपास थी। अंग्रेज कर्नल बैनरमैन ने इन गंगाजली तहखानों को देखने के बाद अपनी डायरी में इसे ‘अलादीन का खजाना’ लिखा था।
सिंधिया रियासत के तत्कालीन गजट विवरणों में कर्नल बैनरमेन के इन खोजी अभियानों का उल्लेख मिलता है। हांलाकि इतिहासकारों का ऐसा मानना है कि कर्नल बैनरमैन द्वारा खोजे गए यह सोने सिक्के तहखानों में छुपाए गए अकूत खजाने का चिल्लरमात्र था। बावजूद इसके महाराजा माधो राव सिन्धिया ने किले के तहखानों में छुपाए गए उस अकूत खजाने को खोजने की कई नाकाम कोशिश की।
आयकर विभाग द्वारा सीक्रेट कोड ‘बीजक’ ढूंढने का प्रयास
साल 1975 में आयकर विभाग की टीम तथाकथित चोरी की जांच करने के लिए जयविलास पैलेस पहुंची थी। हांलाकि सियासी गलियारों में इस बात की चर्चा थी कि आयकर विभाग की टीम दरअसल सीक्रेट कोड ‘बीजक’ को ढूंढने के लिए गई थी ताकि जयाजीराव सिन्धिया द्वारा तहखानों में छुपाए गए उस अकूत खजाने तक पहुंचा जा सके। हांलाकि आयकर विभाग की कोशिश भी नाकाम रही। कुलमिलाकर महाराजा जयाजीराव सिन्धिया का अकूत खजाना आज भी किले के उन तहखानों में दफन है, जिसे आज तक कोई भी नहीं खोज पाया।
इसे भी पढ़ें : दुनिया का सबसे अमीर मंदिर है पद्मनाभ स्वामी मंदिर, खजाने का रहस्य उड़ा देंगे होश
इसे भी पढ़ें : जयपुर के जलमहल में लगती थी भूतों की कचहरी, आखिर क्या है यह रहस्य?