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Jaigarh Fort, jaipur /Jaivana Cannon is India's largest cannon which was fired only once

भारत की सबसे बड़ी तोप जो सिर्फ एक बार दागी गई, फिर कभी नहीं

राजस्थान की राजधानी जयपुर से तकरीबन 8 किमी. दूर उत्तर दिशा में आमेर फोर्ट के नजदीक बने जयगढ़ दुर्ग को विजय किला भी कहा जाता है। चिल्ह का टीला नाम से विख्यात इस दुर्ग का निर्माण 16वीं शताब्दी में राजा मानसिंह प्रथम ने करवाया था। इसके बाद साल 1726 ई. में इस किले के वर्तमान स्वरूप का निर्माण सवाई जयसिंह द्वितीय द्वारा करवाया गया।

जयगढ़ का किला भारत एकमात्र दुर्ग है जहां तोप ढालने का एशिया का सबसे बड़ा कारखाना था। आपको यह जानकार हैरानी होगी कि जयगढ़ किले में एशिया ही नहीं अपितु दुनिया की सबसे बड़ी तोप रखी हुई है। जी हां, उस तोप का नामजयबाण तोप है, यह तोप सिर्फ एक बार दागी गई थी। जयबाण तोप को फिर कभी नहीं चलाया गया, ऐसा क्यों हुआ? इस रोचक प्रश्न का उत्तर जानने के लिए यह ऐतिहासिक स्टोरी जरूर पढ़ें।

जयगढ़ फोर्ट में मौजूद है जयबाण तोप

कछवाहा राजवंश की राजधानी आमेर में अरावली पर्वतमाला की एक ऊंची पहाड़ी पर विश्व प्रसिद्ध आमेर फोर्ट मौजूद है। आमेर किले से तकरीबन 1.5 किमी. की दूरी पर एवं 400 मीटर ऊपर जयगढ़ फोर्ट बना हुआ है। जयगढ़ किले और आमेर किले के मध्य एक सुरंग भी है, जिसका इस्तेमाल युद्ध अथवा ​संकटकाल में राजपरिवार को सुरक्षित निकालने के लिए किया जाता था। ​यह सुरंग सैलानियों के बीच कई दशकों तक एक रहस्य बनी हुई थी, किन्तु अब इसे खोज लिया गया है।

मध्यकालीन भारतीय इतिहास में जयगढ़ दुर्ग को विजय किला’, ‘चिल्ह का टीला (बाजों की पहाड़ी) आदि नाम से जाना जाता है। जयगढ़ किले से पूरा आमेर फोर्ट तथा मावठा झील का मनमोहक नजारा देखते ही बनता है। जयगढ़ दुर्ग का निर्माण सर्वप्रथम 16वीं शताब्दी में राजा मानसिंह प्रथम ने करवाया था। इसके बाद साल 1726 ई. में इस किले के वर्तमान स्वरूप का निर्माण सवाई जयसिंह द्वितीय द्वारा करवाया गया।

तकरीबन 3 किमी. लम्बा तथा 1 किमी. चौड़ा जयगढ़ दुर्ग कभी तोप ढालने का एशिया का सबसे बड़ा कारखाना हुआ करता था। जयगढ़ किले में अपने समय की पहियों पर चलने वाली एशिया नहीं अपितु दुनिया की सबसे बड़ी तोप रखी हुई है, जिसका नाम जयबाण तोप है। जयबाण का शाब्दिक अर्थ है-‘विजय का अस्त्र। यह तोप किला घूमने वाले सैलानियों के बीच वर्षभर आकर्षण का केन्द्र बनी रहती है।

दुनिया की सबसे बड़ी तोप है जयबाण तोप

जयगढ़ किले में मौजूद दुनिया की सबसे बड़ी तोप जयबाण तोप का निर्माण साल 1720 में आमेर के महाराजा सवाई जय सिंह द्वितीय ने करवाया था। उन दिनों दिल्ली पर मुगल बादशाह मुहम्मद शाह का शासन था। जयबाण तोप को बनाने के लिए जयगढ़ किले में ही कारखाना बनाया गया था, जिसके साक्ष्य आज भी मौजूद भी है।

इस किले में कई अन्य तोपें बनाई गईं। दरअसल जयगढ़ का किला शाहजहां के शासनकाल से ही तोपखाने के निर्माण का केन्द्र था। प्रत्येक वर्ष दशहरा के दिन जयबाण तोप की विशेष रूप से पूजा की जाती है। 

जयबाण तोप की नली से लेकर अंतिम छोर की लंबाई 31 फीट 3 इंच है। जयबाण तोप का वजन तकरीबन 50 टन है। जयबाण तोप की बैरल 20.19 फीट लंबी और 11 इंच व्यास की है। जयबाण तोप की खासियत है कि यह 360 डिग्री तक घूम सकती है। ऐतिहासिक दस्तावेजों के मुताबिक, जयबाण तोप को खींचने के लिए चार हाथियों की मदद ली गई थी।

दुनिया की सबसे बड़ी जयबाण तोप को जयगढ़ किले के डूंगर दरवाजे पर रखा गया है। जयबाण तोप पर राजा का नाम, शाही एवं धार्मिक निशान, कुछ पौराणिक जानवरों की आकृतियां उत्कीर्ण की गई है, साथ ही कुछ विशेष फूल-पत्तियों की भी नक्काशी की गई है। बतौर उदाहरण- जयबाण तोप के बैरल में पुष्प आकृति के अतिरिक्त केंद्र में मोर की एक जोड़ी तथा बैरल के पीछे बतख की एक जोड़ी उत्कीर्ण की गई है। जयबाण तोप को मौसम की मार से सुरक्षित रखने के लिए इसे एक टिन शेड से कवर किया गया है। विशेषकर जयबाण तोप को देखने के लिए सैलानी वर्षभर जयगढ़ फोर्ट में आते रहते हैं।

सिर्फ एक बार चली थी जयबाण तोप

आप इस तथ्य को जानकर हैरान रह जाएंगे कि अपने समय में पहियों पर चलने वाली दुनिया की सबसे बड़ी तोप जयबाण तोप का इस्तेमाल युद्ध में कभी भी नहीं किया गया। इसके पीछे बेहद रोचक इतिहास छुपा है।

जयबाण तोप में तकरीबन 100 किलो गन पाउडर के गोले का इस्तेमाल किया गया था। जयबाण तोप की मारक क्षमता 35 किमी. (22 मील) थी। ज्यादा वजनी होने के चलते जयबाण तोप को कभी जयगढ़ फोर्ट से बाहर नहीं ले जाया गया।

ऐसे में, जयबाण तोप का सिर्फ एक बार परीक्षण किया गया था, इस दौरान जयबाण तोप का गोला जयपुर शहर से दक्षिण की तरफ तकरीबन 35 किमी. दूर चाकसू नामक कस्बे में गिरा था। जयबाण तोप का गोला जहां गिरा, वहां तालाब बन गया था।

वर्तमान में वह तालाब स्थानीय लोगों के लिए पानी का स्रोत बना हुआ है। जयबाण तोप की गर्जना से महिलाओं के गर्भपात तक हो गए थे। जयबाण तोप से जुड़ी एक किंवदन्ती यह भी है कि गोला दागते समय तोप के भयंकर शॉक वेव्स से एक तोपची, आठ अन्य सैनिक तथा एक हाथी भी मारा गया था।

यही नहीं, विस्फोट की आवाज से कई लोगों के कान के पर्दे फट गए थे। इसके अलावा आसपास के कई कई छोटे घर भी ढह गए। स्थानीय इतिहासकारों का मानना है कि चूंकि जयबाण तोप के संचालन में अत्यधिक धन एवं संसाधनों की जरूर थी, ऐसे में इसे केवल प्रतीकात्मक हथियार के रूप में जयगढ़ किले में रखा गया।

कैसे पहुंचे जयगढ़ फोर्ट

जयपुर शहर के मध्य से तकरीबन 8 किमी. की दूरी पर उत्तर दिशा में अरावली की पहाड़ियों में आमेर फोर्ट स्थित है। आमेर फोर्ट पहुंचने के लिए कार, टेम्पो आदि की मदद ले सकते हैं, ऐसे में आप तकरीबन 20 से 30 मिनट में आराम से इस भव्य किले तक पहुंच सकते हैं।

जानकारी के लिए बता दें कि आमेर फोर्ट से तकरीबन 1.5 किमी. की दूरी पर ही जयगढ़ फोर्ट बना हुआ है, जहां आप आसानी से पहुंच सकते हैं। ध्यान रहें, जयगढ़ फोर्ट घूमने के लिए जनवरी-फरवरी का महीना बेहद शानदार रहता है, क्योंकि न तो ज्यादा गर्मी पड़ती है और न ही सर्दी। ऐसे में आप राजस्थानी भोजन आदि का भी लुत्फ उठा सकते हैं। जयगढ़ फोर्ट के खुलने और बन्द होने का समय सुबह 9 बजे से लेकर शाम साढ़े छह बजे तक है।

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