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Interesting history of the 12 names of Banaras

बनारस के 12 नामों का रोचक इतिहास जानते हैं आप !

बनारस जिसे हम सभी प्राय: काशी अथवा वाराणसी के नाम से जानते हैं। उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल क्षेत्र में गंगा नदी के तट स्थित यह नगर हिन्दुओं की पवित्र सप्तपुरियों में से एक है। पौराणिक मान्यता है कि काशी नगरी भगवान शंकर के त्रिशूल पर बसी है, इसके पीछे वैज्ञानिक कारण यह है कि यह नगर जमीन से 33 फीट ऊपर है।

दुनिया की सबसे प्राचीन नगरी काशी का उल्लेख भारतीय इतिहास के प्रत्येक कालखण्ड में मिलता है। वैदिक काल, उत्तर वैदिक काल, रामायण, महाभारत युग के साथ-साथ बौद्ध काल के तकरीबन प्रत्येक महत्वपूर्ण ग्रन्थों में काशी का वर्णन अवश्य किया गया है। यहां तक कि भारत आने वाले प्रत्येक विदे​शी यात्रियों ने भी काशी की चर्चा एकबारगी अवश्य की है।

पाली भाषा में वाराणसी को बनारसी कहा जाता था, जो कालान्तर में बनारस हो गया। यह कहा जाता है कि बनार राजा के नाम पर इस शहर का नाम बनारस पड़ा जो मोहम्मद गोरी के हमले में मारे गए थे। ऐसा भी कहा जाता है कि इस शहर की रंग-बिरंगी जीवनशैली को देखकर मुगलों ने इसका नाम बनारस रख दिया। तब से लेकर आज तक लोगों के जेहन में बनारस नाम ही रचा बसा हुआ है।

भारतीय विद्वानों के मुताबिक, बनारस यानि काशी नगरी तकरीबन तीन हजार पांच सौ वर्ष पुरानी है। जाहिर है वाराणसी संसार के अति प्राचीन शहरों में से एक है, ऐसे में इस शहर का इतिहास भी अतिप्राचीन और बेहद विस्तृत है। इस स्टोरी में हम आपको बनारस के 12 नामों के रोचक इतिहास की जानकारी प्रदान करने जा रहे हैं।

बनारस के बारह नाम

अमूमनतौर पर आमजन बनारस को काशी अथवा वाराणसी के नाम से जानते हैं, परन्तु विभिन्न पौराणिक ग्रन्थों में बनारस के प्रख्यात बारह नाम बताए गए हैं। इस पुरी के 12 प्रसिद्ध नाम कुछ इस प्रकार हैं

1- काशी 2- वाराणसी 3- आनन्दकानन 4- अविमुक्त क्षेत्र 5- रूद्रावास 6-महाश्मशान 7-काशिका 8- तप:स्थली 9-शिवपुरी 10- मुक्तभूमि 11- विश्वनाथनगरी 12-त्रिपुरारीनगरी।

बनारस के बारह नामों का रोचक इ​तिहास

1.काशी-  सनातन धर्म के सबसे प्राचीन ग्रन्थ ऋग्वेद में काशी का उल्लेख कुछ इस तरह मिलता है- “काशिरित्ते.. आप इवकाशिनासंगृभीता:। हरिवंश पुराण के विशेषज्ञों के मुताबिक, “भरतवंशी राजा काश ने काशी को बसाया था अत: राजा काश के नाम पर इसका नाम काशी पड़ा

पौराणिक ग्रन्थों में काशी को भगवान विष्णु का आदि स्थान बताया गया है। काशी पूर्व में भगवान विष्णु की नगरी थी। जहां श्रीहरि के आनन्द अश्रु गिरे थे वहां बिन्दु सरोवर बन गया और विश्व के पालनकर्ता भगवान विष्णु बिन्दुमाधव नाम से प्रतिष्ठित हुए।

एक पौराणिक कथा अनुसार, जब भगवान शिव ने क्रोधित होकर परमपिता ब्रह्माजी का पांचवा सिर काट दिया तो वह उनके करतल में चिपक गया। बारह वर्षों तक अनेक तीर्थस्थलों का भ्रमण करने के बाद भी वह सिर उनसे अलग नहीं हुआ। इसके बाद भगवान शिव ने जैसे ही काशी की सीमा में प्रवेश किया, वे ब्रह्महत्या से भी मुक्त हो गए और वह कपाल भी उनसे अलग हो गया। काशी के जिस परिक्षेत्र में यह घटना घटी, वह स्थान कपालमोचन तीर्थ नाम से प्रसिद्ध है। इसके काशी भगवान भोलेनाथ को इतना प्रिय लगी कि इस पावन नगरी को उन्होंने भगवान विष्णु से अपने नित्य आवास के लिए मांग लिया। कहते हैं, तब से काशी भगवान शिव की नगरी बन गई।

2. वाराणसी - वरुणा और असी नदियों के बीच बसे शहर का नाम वाराणसी पड़ा। ये दोनों नदियाँ गंगा नदी में क्रमशः उत्तर एवं दक्षिण से आकर मिलती हैं। सम्भवत: प्राचीन काल में वरुणा नदी को वरणासि कहा जाता होगा, जिससे इस शहर का नाम वाराणसी पड़ा। जबकि अस्सी नदी को पुराणों में असिसंभेद तीर्थ कहा गया है।

मत्स्यपुराण में भगवान शिव ने पार्वती से वाराणसी के बारे में कहा है- “वाराणस्यां नदी पु सिद्धगंधर्वसेविता। प्रविष्टा त्रिपथ गंगा तस्मिन्न क्षेत्रे मम प्रिये। अर्थात- हे प्रिये, सिद्ध -गंधर्व से सेवित वाराणसी में जहां पुण्य नदी त्रिपथा गंगा बहती हैं, वह स्थान मेरा प्रिय है।

महाभारत के वन पर्व में वाराणसी का उल्लेख है- “ततो वाराणसीं गत्वा अर्चयित्वा वषध्वजम। वहीं कीथ के मुताबिक, अथर्व वेद की एक ऋचा में वरुणा नदी का उल्लेख है-“वारिद वारयातै वरुणावत्यामधि। तत्रामृतस्यासिक्तं तेना ते वारये विषम् जातक कथाओं में भी वाराणसी का उल्लेख मिलता है।

3. आनन्दकानन -  स्कंदपुराण के मुताबिक, काशी को आनन्द कानन की संज्ञा सबसे पहले भोलेनाथ ने दी। यह पूरा क्षेत्र फूलों से अच्छादित वन था। यह भी कहा जाता है कि प्राचीन काल में काशी विश्वनाथ का दरबार क्षेत्र आनंद-कानन के रूप में जाना जाता था। यह पूरा क्षेत्र हरे-भरे वृक्षों तथा रंग- बिरंगे फूलों से सुसज्जित हुआ करता था, जब श्रद्धालु इस हरे-भरे क्षेत्र से होते मंदिर तक आते थे तब भोलेनाथ के दर्शन तथा जलाभिषेक करके तृप्त हो जाते थे।

4. अविमुक्त क्षेत्र - काशी नगरी को अविमुक्त इसलिए कहा गया क्योंकि भगवान शिव ने इसे कभी नहीं छोड़ा। मान्यता है कि यहां देह त्यागने मात्र से प्राणी मुक्त हो जाता है, इसलिए इसे अविमुक्त क्षेत्र कहा गया है। सनातनियों में ऐसी मान्यता है कि काशी में कहीं पर भी मृत्यु के समय भगवान विश्वेश्वर (विश्वनाथजी) प्राणियों के दाहिने कान में तारक मन्त्र का उपदेश देते हैं जिसे सुनकर जीव भव-बन्धन से मुक्त हो जाता है।

काशीखण्ड में लिखा है कि- “अन्यानिमुक्तिक्षेत्राणिकाशीप्राप्तिकराणिच। काशींप्राप्य विमुच्येतनान्यथातीर्थकोटिभि:।।अर्थात् केवल काशी ही सीधे मुक्ति देती है, जबकि अन्य तीर्थस्थान काशी की प्राप्ति कराके मोक्ष प्रदान करते हैं।

स्कन्दपुराण के अनुसार, भूतल पर होने के बाद काशी पृथ्वी से संबद्ध नहीं है। भगवान शंकर के त्रिशूल पर बसी है काशी, अत: प्रलय होने पर भी इसका नाश नहीं होता है।

5. रूद्रावास - भगवान शिव का एक नाम रूद्र भी है, चूंकि काशी को भगवान शिव का निवास स्थान माना गया है। इसलिए इसका एक नाम रूद्रावास भी है। काशी के प्रत्येक जीव में शिव का वास है, इसलिए भी इसे रूद्रावास कहा जाता है।

6. महाश्मशान -  काशी एक मात्र ऐसा नगर है, जहां लगातार हिन्दू अन्त्येष्टि होती रहती हैं व घाट पर चिता की अग्नि लगातार जलती ही रहती है, कभी भी बुझने नहीं पाती। इसी कारण इसको महाश्मशान नाम से भी जाना जाता है।

पौराणिक कथा अनुसार, एक बार देवी पार्वती ने अपने कान की मणिकर्णिका एक जगह छुपा दी, उसे भगवान शिव से ढूढ़ने को कहा। वह स्थल मणिकर्णिका घाट के नाम से जाना जाता है। कहते हैं भगवान शिव उस मणिकर्णिका को ढूंढ नहीं पाए और जिस प्राणी की अन्त्येष्टि उस घाट पर होती है, भोलेनाथ उससे पूछते हैं कि क्या उसने मणिकर्णिका देखी है? मणिकर्णिका घाट एक ऐसा महाश्मशान स्थल है जहां 24 घंटे चिताएं चलती रहती हैं।

7. काशिका - काशी का एक नाम काशिका भी है जिसका अर्थ है—‘चमकता हुआ। भगवान शिव की नगरी काशी सर्वदा दियों की रोशनी से जगमगाती रहती थी, इसलिए इसका नाम काशिका पड़ा।

काश्यां हि काशते काशी काशी सर्वप्रकाशिका। सा काशी विदिता येन तेन प्राप्ताहि काशिका।।

हिन्दी ​अ​र्थ- आत्मज्ञान के प्रकाश से जगमगाती काशी सब वस्तुओं को आलोकित करती है। जो इस सत्य को जान गया वह काशी में एकरूप हो जाता है। ऐसा भी कहा जाता है कि काशी में बोली जाने वाली भाषा काशिका के नाम पर इसका नाम काशिका पड़ा।

8. तप:स्थली -  हिन्दुस्तान का प्रत्येक तीर्थस्थल किसी न किसी ​ऋषि की तपोभूमि अवश्य रहा है, परन्तु काशी एक मात्र ऐसा परिक्षेत्र है जहां भगवान विष्णु, भगवान भोलेनाथ, परमपिता ब्रह्माजी, काल भैरव, हनुमानजी से लेकर प्राचीन एवं आधुनिक भारत के तकरीबन प्रत्येक महान संत-महात्माओं की तपोस्थलीस्थली रहा है। इसलिए इस नगर का एक नाम तप:स्थली भी है। काशी के एक लोकगीत में वर्णन है कि— “यही फले-फूले बुद्ध-शंकर, यह राज-ऋषियों की राजधानी। मधुर मनोहर अतीव सुन्दर, यह सर्व विद्या की राजधानी।

9. शिवपुरी भगवान शिव की निवास स्थली काशी का एक नाम शिवपुरी भी है। एक श्लोकानुसार, भगवान् शिव कहते हैं कि तीनों लोकों से समाहित एक शहर है, जिसमें स्थित मेरा निवास स्थान है काशी। पौराणिक कथाओं में यह वर्णित है कि काशी का निर्माण स्वयं भगवान शिव ने किया था। देवी पार्वती से विवाह के पश्चात सर्दियों में भगवान शिव काशी में रहने आते थे। कालान्तर में किसी कारणवश भगवान शिव और देवी पार्वती को काशी छोड़कर मन्दार पर्वत पर जाना पड़ा।

10. मुक्तभूमि -  ऐसी दृढ़ मान्यता है कि काशी जमीन पर नहीं है, वह भगवान शिव के त्रिशूल के ऊपर है!वैज्ञानिक कारणों से भी काशी जमीन से 33 फीट की ऊपर है। इसलिए इसे मुक्तभूमि कहा गया है। यदि हम आध्यात्म की बात करें तो मानव शरीर पांच तत्वों से बना है, शिव के योगी और भूतेश्वर होने से उनका विशेष अंक पांच है। इसलिए इस स्थान की परिधि पांच कोश है। मानव शरीर में 72,000 नाड़िया होती है, इसलिए काशी को भी मानव शरीर की तरह बनाया गया था और यहां 72 हजार मंदिरों का निर्माण किया गया।

11. विश्वनाथनगरी -  काशी में स्थापित भगवान भोलेनाथ का शिव द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से है जिसे विश्वनाथ अथवा विश्वेश्वर नाम से जाना जाता है। विश्वनाथ का अर्थ है- पूरे विश्व के शासक। इसीलिए काशी का एक नाम विश्वनाथ नगरी भी है।

12. त्रिपुरारीनगरी - बलशाली राक्षस त्रिपुरासुर का वध कर ऋषि-मुनियों को भयमुक्त करने वाले भगवान शंकर त्रिपुरारी कहलाए। कार्तिक पूर्णिमा के दिन भगवान शंकर ने त्रिपुरासुर नामक राक्षस का वध किया था। ऐसे में भगवान विष्णु ने भगवान शंकर को त्रिपुरारी नाम दिया। इसप्रकार काशी का एक नाम त्रिपुरारीनगरी भी पड़ गया।

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