
उत्तर भारत के बुद्धिजीवियों के बीच गोस्वामी तुलसीदास और मुगल बादशाह अकबर के बीच हुई मुलाकात की चर्चा पिछले 450 वर्षों से जारी है। देश के ज्यादातर इतिहासकारों का यह मानना है कि चूंकि किसी भी तत्कालीन इतिहासकार ने इस घटना का जिक्र नहीं किया है, इसलिए इसकी प्रामाणिकता संदिग्ध है।
ऐसे में मुगल बादशाह अकबर से गोस्वामी तुलसीदास की मुलाकात मध्यकालीन इतिहास की एक ऐसी कड़ी है, जिस पर आजतक प्रश्नचिह्न उठाए जाते हैं। परन्तु कुछ ऐसे भी महत्वपूर्ण साक्ष्य हैं जिससे यह साबित होता है कि मुगल बादशाह अकबर और गोस्वामी तुलसीदास की मुलाकात अवश्य हुई थी।
यह भी कहते हैं कि सनातनी जनमानस में गोस्वामी तुलसीदास की लोकप्रियता से प्रभावित होकर अकबर ने उन्हें मनसबदार बनाने की पेशकश की थी, परन्तु गोस्वामी तुलसीदास ने इस बड़े प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया। इस बात के भी साक्ष्य मिलते हैं कि अकबर ने तुलसीदास को यमुना नदी के किनारे 96 बीघा जमीन दान में दी थी, परन्तु तुलसीदास ने यह जमीन लेने से मना कर दिया, फिर यह जमीन उनके शिष्य गणपत राय के नाम कर दी गई।
इसके अतिरिक्त यह कथन भी बेहद चर्चित है कि अकबर ने गोस्वामी तुलसीदास को कारागार में 40 दिनों तक कैदकर रखा था, इस दौरान तुलसीदास ने जेल में ही हनुमान चालीसा लिखी थी। इन तथ्यों में कितनी सच्चाई है, यह जानने के लिए इस रोचक स्टोरी को जरूर पढ़ें।
अकबर से गोस्वामी तुलसीदास की मुलाकात से जुड़े साक्ष्य
गोस्वामी तुलसीदास ने 1575 ई. में ‘रामचरितमानस’ लिखने की शुरूआत की और अयोध्या, काशी व चित्रकूट में रहते हुए 2 वर्ष सात माह के अथक परिश्रम के पश्चात इस महान ग्रन्थ को पूरा किया। इस दौरान भारत पर मुगल बादशाह अकबर (1556 से 1605 ई.) का शासन था। इतना तो स्पष्ट है कि गोस्वामी तुलसीदास अकबर के समकालीन थे। अत: बादशाह अकबर से गोस्वामी तुलसीदास की मुलाकात से जुड़े जो साक्ष्य उपलब्ध प्रतीत होते हैं, उस सम्बन्ध में हम आपको बताने जा रहे हैं।
1- लोकप्रिय ग्रन्थ ‘भक्तमाल’ और ‘मूल गोसाई चरित’
गोस्वामी तुलसीदास के समकालीन कवि नाभादास को भक्तिकाल के कवियों में विशिष्ट स्थान प्राप्त है। ब्रजभाषा में रचित उनकी प्रसिद्ध कृति ‘भक्तमाल’ में तकरीबन दो सौ भक्तों का चरित्रगान है, इनमें से एक नाम गोस्वामी तुलसीदास का भी है। नाभादास ने अपनी कृति ‘भक्तमाल’ में गोस्वामी तुलसीदास को अकबर से 10 वर्ष बड़ा बताया है। देश के ज्यादातर विद्वान भी गोस्वामी तुलसीदास का जन्म 1532 ई. के आसपास हुआ मानते हैं जबकि मुगल बादशाह अकबर की जन्मतिथि 1542 ई. है, ऐसे में कवि नाभादास का यह आंकलन बिल्कुल सटीक प्रतीत होता है।
वहीं गोस्वामी तुलसीदास के समकालीन वेणीमाधव ने ‘मूल गोसाई चरित’ लिखी है, जिसमें उन्होंने गोस्वामी तुलसीदास का जीवनचरित्र लिखा है। स्वामी भगवदाचार्य के अनुसार, वेणी माधव गोस्वामी तुलसीदास के शिष्य थे। कवि वेणीमाधव ने अपनी कृति ‘गोसाई चरित’ में तुलसीदास को अकबर से 45 साल बड़ा बताया है।
जानकारी के लिए बता दें कि नाभादास और वेणीमाधव, इन दोनों ही महान कवियों ने मुगल बादशाह अकबर से गोस्वामी तुलसीदास की मुलाकात का जिक्र किया है। हांलाकि इन दोनों कवियों ने अकबर की जगह ‘दिल्ली का बादशाह’ लिखा है। ‘भक्तमाल’ और ‘गोसाई चरित’ नामक कृतियों से यह पता चलता है कि गोस्वामी तुलसीदास बादशाह अकबर और जहांगीर दोनों के समय में ही जीवित थे। इतना ही नहीं, अकबर ने तुलसीदास को मनसबदार बनाने का प्रस्ताव भेजा था लेकिन उन्होंने इस मुगलिया पद को लेने से इनकार कर दिया।
गोस्वामी तुलसीदास ने एक चौपाई के जरिए मुगल बादशाह अकबर से यह कहा था कि- “हम चाकर रघुवीर के पटौ लिखौ दरबार। अब तुलसी का होईहैं नर के मनसबदार।।” अर्थात- हम तो भगवान श्रीराम के सेवक हैं, किसी मनुष्य की नौकरी कैसे कर सकते हैं।
इस बात के भी साक्ष्य मिलते हैं कि अकबर ने तुलसीदास को यमुना नदी के किनारे 96 बीघा जमीन दान में दी थी, परन्तु तुलसीदास ने यह जमीन लेने से मना कर दिया। इसके बाद यह जमीन उनके शिष्य गणपत राय के नाम कर दी गई। जब अंग्रेजों का शासन हुआ तो उन्होंने इस जमीन को अपने कब्जे में लेकर 684 रुपए सालाना देना शुरू किया। आजादी के बाद 1972 ई. तक जिला कलेक्टर से भी इस जमीन के 684 रुपए मिलते रहे, बाद में वो भी मिलने बंद हो गए।
2- राजा टोडरमल और अब्दुल रहीम खानखाना से नजदीकी सम्बन्ध
मुगल बादशाह अकबर के नवरत्नों में से एक राजा टोडरमल और अब्दुल रहीम खानखाना से गोस्वामी तुलसीदास के बेहद नजदीकी सम्बन्ध थे। यदि हम अकबर के वित्त मंत्री राजा टोडरमल की बात करें तो उसने गोस्वामी तुलसीदास को बनारस के अस्सी घाट पर एक भवन प्रदान किया था। यहां तक कि टोडरमल के निधन के बाद उसके बेटों ने सम्पत्ति के बंटवारे में गोस्वामी तुलसीदास को अपना पंच बनाया था।
इसके अतिरिक्त अकबर का बेहद नजदीकी दरबारी व कवि अब्दुल रहीम खानखाना भी गोस्वामी तुलसीदास के बहुत निकट था। गोस्वामी तुलसीदास कवि अब्दुल रहीम खानखाना को पुत्र की तरह मानते थे। अब्दुल रहीम खानखाना ने अपने निम्नलिखित दोहे में गोस्वामी तुलसीदास के रामचरितमानस को वेदतुल्य माना है और भगवान राम में अपनी आस्था व्यक्त की है- “रामचरित मानस विमल, संतन जीवन प्रान। हिन्दू जन को वेद सम, जनमहि प्रकट पुरान।।”
कहते हैं, एक गरीब ब्राह्मण अपनी बेटी की शादी करने के लिए कुछ आर्थिक मदद की आस में गोस्वामी तुलसीदास के पास पहुंचा। परन्तु गोस्वामी तुलसीदास तो स्वयं धन-सम्पत्ति से कोसों दूर थे, ऐसे में वे गरीब ब्राह्मण की कैसे मदद कर सकते थे। फिर भी उन्होंने एक कागज पर एक पंक्ति लिखकर दिया और उसे अब्दुल रहीम खानखाना के पास भेज दिया और बोले कि वही तुम्हारी सहायता करेंगे। तुलसीदास ने उस कागज पर लिखा था- ‘सुरतिय, नरतिय, नागतिय- सबके मन अस होय’। जिसका अर्थ- चाहे देवपत्नी हो, नरपत्नी हो या नागवंशी पत्नी हो इन सभी को धन-सम्पत्ति, आभूषण की आवश्यकता होती है।
उस गरीब ब्राह्मण की आर्थिक मदद करने के बाद अब्दुल रहीम खानखाना ने भी उस पर्ची पर आगे की पंक्ति लिखकर उसे गोस्वामी तुलसीदास को देने को कहा। अब्दुल रहीम खानखाना ने लिखा था-“सुरतिय नरतिय नागतिय सबके मन अस होय। गोद लिए हुलसी फिरें, तुलसी सो सुत होय ।।” इसका यह अर्थ है कि किसी भी महिला के लिए धन-सम्पत्ति प्रिय हो सकती है लेकिन धन्य है वह मां जिसका तुलसीदास जैसा बेटा हो।
3- ‘हनुमान चालीसा’ से जुड़ी जनश्रुति
गोस्वामी तुलसीदास द्वारा अवधी में लिखी गई ‘हनुमान चालीसा’ स्वयं में एक स्वतंत्र कृति है। गोस्वामी तुलसीदास ने ‘हनुमान चालीसा’ में हनुमान जी के पराक्रम, गुणों एवं उनके निर्मल चरित्र के साथ ही प्रभु श्रीराम के व्यक्तित्व को भी बेहद सरल शब्दों में उकेरा है। कहते हैं कि गोस्वामी तुलसीदास जी ने हनुमान जी और श्रीरामजी के साक्षात दर्शन किए थे। इसीलिए उन्होंने अपनी कृति हनुमान चालीसा में बजरंगबली के स्वरूप का विधिवत वर्णन किया है। प्रत्येक सनातनी को इस मान्यता पर अटूट विश्वास है कि मंगलवार एवं शनिवार के दिन हनुमान चालीसा का पाठ करने से बजरंगबली अपने भक्तों को संकट से मुक्त करते हैं तथा उसकी हर मनोकामना पूर्ण करते हैं।
तकरीबन प्रत्येक सनातनी को हनुमान चालीसा कंठस्थ है, इसके अतिरिक्त हनुमान चालीसा की रचना से जुड़ी जनश्रुति भी कुछ इस प्रकार विख्यात है- मान्यता है कि मुगल बादशाह अकबर ने गोस्वामी तुलसीदास को फतेहपुर सीकरी स्थित अपने दरबार में बुलाया और उनसे भगवान श्रीराम से मिलवाने अन्यथा अपनी तारीफ में एक ग्रन्थ लिखने को कहा। जब गोस्वामी तुलसीदास ने ऐसा करने से इनकार कर दिया तब अकबर ने उन्हें कारगार में डाल दिया।
40 दिनों तक अकबर की कैद में रहने के दौरान गोस्वामी तुलसीदास ने हनुमान चालीसा की रचना और उसका पाठ किया। इसके बाद बन्दरों के एक झुंड ने अकबर के महल पर धावा बोला दिया और बहुत नुकसान किया। यहां तक कि मुगल सैनिक भी उन बन्दरों का आंतक रोकने में असफल रहे। आखिरकार मंत्रियों की सलाह पर अकबर ने गोस्वामी तुलसीदास को मुक्त कर दिया। गोस्वामी तुलसीदास को जैसे ही कारगार से मुक्त किया गया, सभी बन्दर वह क्षेत्र छोड़कर चल गए। इस घटना से गोस्वामी तुलसीदास की ख्याति चहुंओर फैल गई।
उपरोक्त तथ्यों से यह प्रतीत होता है कि अकबर से गोस्वामी तुलसीदास की मुलाकात अवश्य हुई थी परन्तु एक यक्ष प्रश्न यह भी है कि गोस्वामी तुलसीदास को मनसबदार बनाने की पेशकश करने तथा 96 वाले बीघा जमीन दान करने बादशाह अकबर ने गोस्वामी तुलसीदास को आखिर में बन्दी क्यों बनाया?
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