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India's crows and peacocks were sold in Babylon, you will be stunned to know the price

बेबीलोन में बिकते थे भारत के कौवे-मोर, कीमत जानकर दंग रह जाएंगे आप

भारत को कभी सोने की चिड़िया यूं ही नहीं कहा जाता था। दरअसल व्यापार और वाणिज्य यहां के निवासियों की समृद्धि का मुख्य आधार था। भारत के बन्दरगाहों से विभिन्न देशों के व्यापारी माल भरकर लाते तथा ले जाते थे। सबसे खास बात यह थी कि वस्तुओं के क्रय-विक्रय के बदले भारतीय व्यापारियों को भरभरकर सोने-चांदी के सिक्कों के अतिरिक्त आभूषण भी प्राप्त होते थे।

भारत के ऊनी वस्त्र, सूती कपड़े, मलमल, हाथी दांत, सुगन्धित द्रव्य, गरम मसालों के अतिरिक्त बेहतरीन घोड़े तथा शक्तिशाली रथ दुनिया के अन्य देशों में बेचे जाते थे। इसी क्रम में आपको यह बात जानकर हैरानी होगी कि भारत के व्यापारी बेबीलोन में कौवे और मोर भी बेचते थे। इन कौवों और मोरों के बदले में व्यापारियों को जो स्वर्ण मुद्राएं प्राप्त होती थीं, उसकी कीमत जानकर आप दंग रह जाएंगे।

बेबीलोन शहर में बिकते थे भारतीय कौवे और मोर

बावेरु जातक से पता से चलता है कि भारत और बावेरु के बीच व्यापारिक सम्बन्ध थे। भारतीय व्यापारी बावेरु की यात्रा जलमार्ग से करते थे। बावेरु की पहचान प्राचीन बेबीलोन से की जाती है। अब सवाल यह उठता है कि वर्तमान में बेबीलोन कहां स्थित है। जानकारी के लिए बता दें कि 320 ईसा पूर्व में बेबीलोन दुनिया का सबसे बड़ा शहर था, जिसकी आबादी तकरीबन 2 लाख से अधिक थी।

बेबीलोन एक इतिहास प्रसिद्ध स्थान है जहां विश्व विजेता सिकन्दर की मृत्यु हुई थी। बेबीलोन में अपार सम्पदा थी, यह अतिप्राचीन शहर आधुनिक बगदाद से तकरीबन 85 किमी. दक्षिण में फरात नदी किनारे स्थित था। इतिहासकार जयशंकर मिश्र अपनी किताब प्राचीन भारत का सामाजिक इतिहास में लिखते हैं कि बावेरु जातक में भारतीय व्यापारियों द्वारा कौवों और मोरों को बेबीलोन ले जाकर बेचने का वर्णन मिलता है। भारतीय व्यापारी इन पक्षियों को 500 से 1000 कर्षापण (स्वर्ण- रजत मुद्राएं) में बेचते थे।

गामणीचण्डजातक के मुताबिक, भारत में एक जोड़ी बैल की कीमत 24 कर्षापण थी तथा एक गधा प्राय: 8 कर्षापण में बिकता था। इस प्रकार बेबीलोन में एक कौवे अथवा एक मोर की कीमत तकरीबन 41 जोड़ी बैलों की कीमत के बराबर थी। ऐसे में आप अन्दाजा लगा सकते हैं कि भारतीय व्यापा​री केवल कौवे और मोर बेचकर कितना मुनाफा कमाते थे।

कौवे और मोर देखकर दंग रह गए थे बेबीलोन शहरवासी

कुछ विद्वानों का कहना है कि जातक कथाएं स्वयं गौतम बुद्ध द्वारा कही गई हैं, जबकि अन्य विद्वानों का यह मानना है कि कुछ जातक कथाएं गौतमबुद्ध के निर्वाण के बाद उनके शिष्यों द्वारा कही गई हैं। इसी क्रम में उल्लेखित बावेरु जातक से एक बहुत रोचक जानकारी प्राप्त होती है।

बावेरु जातक कथा में यह वर्णित है कि वाराणसी (बनारस) के कुछ व्यापारी एक बार बावेरु द्वीप (बेबीलोन) पहुंचे और अपने साथ एक कौवा भी ले गए। कथा के अनुसार, बेबीलोन के लोगों ने कभी कौवा नहीं देखा था। इसलिए बेबीलोन शहरवासियों ने मुंहमांगे दाम देकर उस कौवे को खरीद लिया।

उस कौवे को सोने के पिंजरे में रखा गया। कौवे की खूब आवभगत हुई, उसे नाना प्रकार के फल व मांस खिलाया गया। बेबीलोन शहरवासी उस कौवे को देख कहते- “वाह! इस पक्षी की आंखें कितनी सुन्दर हैं, क्या सुन्दर रंग हैइ​त्यादि

वाराणसी के व्यापारी जब दूसरी बार बवेरू द्वीप गए तो अपने साथ एक मोर लेते गए। बेबीलोन के लोगों ने जब उस मोर को देखा तो उसकी कीमत लगाई। इसके बाद वाराणसी के व्यापारियों ने उसे 1000 स्वर्ण मुद्राओं में बेचा। बेबीलोन शहर के लोगों ने उस मोर को रत्नजड़ित पिंजरे में रखा और बढ़-चढ़ कर उसकी खूब आवभगत की। उपरोक्त जातक कथा से यह स्पष्ट होता है कि भारतीय व्यापारी बावेरू द्वीप यानि बेबीलोन के साथ पशु-पक्षियों का भी व्यापार करते थे।

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