
19वीं शताब्दी के मुस्लिम सुधारकों में सर सैयद अहमद खान का नाम विशेष महत्व रखता है। उन्होंने मुसलमानों के दृष्टिकोण को आधुनिक बनाने का प्रयत्न किया। सर सैयद अहमद खान का जन्म 17 अक्टूबर 1817 को दिल्ली के एक समृद्ध मुस्लिम घराने में हुआ था, जिसका सम्बन्ध मुगल दरबार से रहा था।
सर सैयद अहमद खान दिल्ली के नाममात्र के मुगल दरबार से भी सम्बद्ध रहे, लिहाजा विरासत में उन्हें मुगलकालीन दिल्ली की सर्वश्रेष्ठ परम्पराएं मिली थीं। उन्हें अपने समय के योग्यतम विद्वानों से शिक्षा ग्रहण करने का मौका मिला। सैयद अहमद ने 1839 में ईस्ट इंडिया कम्पनी की नौकरी में प्रवेश किया था और 1857 की महाक्रांति के दौरान वह अंग्रेजों की न्यायिक सेवा में कार्यरत थे।
साल 1862 से 1864 तक सर सैयद अहमद खान गाजीपुर में जिला जज के रूप में कार्यरत रहे। उन्होंने बालिका शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए साल 1862 में ‘विक्टोरिया हाई स्कूल’ की स्थापना की तथा भारतीयों में वैज्ञानिक सोच विकसित करने के लिए साल 1863 में ‘साइंटिफिक सोसाइटी’ की स्थापना की।
तत्पश्चात सर सैयद अहमद खान का ट्रांसफर गाजीपुर से अलीगढ़ हो गया। फिर क्या था, उन्होंने साल 1875 में अलीगढ़ में ‘मुस्लिम एंग्लो ओरिएन्टल स्कूल’ की स्थापना की जिसमें पाश्चात्य विषयों विशेषकर विज्ञान-अंग्रेजी के साथ ही मुस्लिम धर्म भी पढ़ाए जाते थे। सर सैयद अहमद खान के नेतृत्व में शीघ्र ही अलीगढ़ शहर मुस्लिम सम्प्रदाय के धार्मिक एवं सांस्कृतिक पुनर्जागरण का केन्द्र बन गया। यही शैक्षणिक संस्थान साल 1920 में ‘अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय’ के रूप में सामने आया।
चिन्ता विषय यह है कि जिस वैज्ञानिक सोच एवं शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए सर सैयद अहमद खान ने गाजीपुर में पुरजोर प्रयास किया था, आज की तारीख में उन दोनों संस्थाओं (विक्टोरिया स्कूल व सांइटिफिक सोसाइटी) का वजूद खत्म हो चुका है। यहां तक कि गाजीपुर शहर में सर सैयद अहमद खान को याद करने के नाम पर कोई बड़ा आयोजन भी नहीं होता है।
धार्मिक सहिष्णुता के पक्षधर सर सैयद अहमद खान ने साल 1883 में लिखा था : “तत्काल हम दोनों (हिन्दू और मुसलमान) भारत की हवा पर जिन्दा हैं। हम गंगा और यमुना का जल पीते हैं। हम दोनों भारतीय भूमि की पैदावार खाकर जीवित हैं। हम दोनों एक ही देश के हैं, हम एक राष्ट्र के हैं और देश की प्रगति तथा भलाई हमारी एकता, पारस्परिक सहानुभूति और प्रेम पर निर्भर है, जबकि हमारी पारस्परिक असहमति, जिद और विरोध तथा दुर्भावना हमारा विनाश निश्चित रूप से कर देगी।”
सच कहें तो, सांस्कृतिक-धार्मिक और सामाजिक सुधार के अगुवा रहे सर सैयद अहमद खान को गाजीपुर शहर भूल चुका है। अब आपका सोचना लाजिमी है कि आखिर में सर सैयद अहमद खान द्वारा स्थापित संस्थाओं का वजूद क्यों समाप्त हो गया? और फिर जनपदवासी उन्हें याद करना भी भूल गए, आखिर में ऐसा क्यों हुआ? इन सभी संवदेनशील प्रश्नों का जवाब जानने के लिए यह रोचक स्टोरी जरूर पढ़ें।
गाजीपुर में बतौर न्यायाधीश सर सैयद अहमद खान
आधुनिक भारतीय इतिहास में ‘अलीगढ़ आन्दोलन’ के अगुवा एवं ‘अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय’ के संस्थापक सर सैयद अहमद खान 1857 की महाक्रांति के समय ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी की न्यायिक सेवा में कार्यरत थे। गाजीपुर आने से पूर्व सर सैयद अहमद खान मुरादाबाद में नियुक्त थे, उन्होंने मुरादाबाद में ही 1857 की महाक्रांति पर आधारित ‘असबाब-ए-बगावत-ए-हिन्द’ नामक किताब लिखी तथा यहीं पर उन्होंने पहला ‘फारसी मदरसा’ स्थापित किया।
सर सैयद अहमद खान का स्थानान्तरण साल 1862 में 26 मई को मुरादाबाद से गाजीपुर हो गया। सर सैयद अहमद खान गाज़ीपुर की दीवानी अदालत में सब जज (उप न्यायाधीश) थे। सर सैयद अहमद खान की पत्नी का देहान्त पहले ही हो चुका था, लिहाजा सैयद अहमद खान के साथ उनके दोनों बेटे सैयद अहमद, सैयद महमूद और एक भतीजा भी था।
‘विक्टोरिया हाई स्कूल’ एवं ‘इंडियन सांइटिफिक सोसाइटी’ की स्थापना
आधुनिक शिक्षा तथा वैज्ञानिक सोच के हिमायती सर सैयद अहमद खान ने गाजीपुर में अपने कार्यकाल के दौरान मुस्लिम समाज में बालिका शिक्षा को बढ़ावा देने हेतु साल 1862 में एक मदरसे की स्थापना की, जो ‘विक्टोरिया हाई स्कूल’ के नाम से जाना गया। विक्टोरिया हाई स्कूल में अंग्रेजी, विज्ञान, हिंदी, संस्कृत के साथ-साथ फारसी तथा उर्दू आदि की पढ़ाई होती थी।
सर सैयद अहमद खान का मानना था कि पाश्चात्य शिक्षा भारतीयों की चतुर्दिक प्रगति में सहायक है। भारतीय समाज में वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा देने के लिए सर सैयद अहमद खान ने साल 1863 में गाजीपुर जिले में देश की पहली ‘इंडियन साइंटिफिक सोसायटी’ की स्थापना की। उन्होंने 9 जनवरी, 1864 को गाजीपुर में साइंटिफिक सोसाइटी की पहली बैठक बुलाई।
साइंटिफिक सोसायटी की स्थापना के दो लक्ष्य थे : 1- विज्ञान एवं कला की प्रमाणिक किताबें ज्यादातर अंग्रेजी भाषा में थीं, जो आमजन के समझ से बाहर थीं। ऐसे में इन पाश्चात्य किताबों का हिन्दी तथा अन्य भाषाओं में अनुवाद करना। 2- भारत की दुर्लभ एवं प्राचीन कृतियों की खोज कर उनका प्रकाशन करना। इंडियन साइंटिफिक सोसाइटी के जरिए उन्होंने वैज्ञानिक किताबों का हिंदी, उर्दू एवं अंग्रेजी तीनों भाषाओं में प्रकाशन शुरू करवाया।
इतना ही नहीं, सर सैयद अहमद खान ने अरबी, फारसी की किताबों का अंग्रेजी में अनुवाद भी करवाया था। इसके अतिरिक्त अपने गाजीपुर प्रवास के दौरान उन्होंने न केवल एक ‘प्रेस भवन’ स्थापित किया अपितु बाइबिल की शिक्षाओं पर आधारित 'तबिन अल-अल-कलाम' नामक ग्रन्थ भी लिखा, जिसका प्रकाशन तीन भागों में हुआ। इस ग्रन्थ के जरिए उन्होंने बाइबिल को इस्लाम से जोड़ने का प्रयास किया।
सर सैयद अहमद को क्यों भूल गए गाजीपुरवासी
साल 1864 में सर सैयद अहमद खान का ट्रांसफर अलीगढ़ हो गया, तत्पश्चात उन्होंने साइंटिफिक सोसाइटी का स्थानान्तरण भी अलीगढ़ कर दिया। गाजीपुर जिले के महुआबाग स्थित राजकीय बालिका इंटर कॉलेज परिसर में स्थित साइंटिफिक सोसायटी की बिल्डिंग अब खंडहर में तब्दील हो चुकी है। वहीं विक्टोरिया हाई स्कूल का वजूद भी समाप्त हो चुका है। यहां तक कि सर सैयद के द्वारा स्थापित ‘प्रेस भवन’ भी जीर्ण-शीर्ण अवस्था में पहुंच चुका है।
इस बारे में प्रगतिशील लेखक संघ के पूर्व अध्यक्ष एवं ‘समकालीन सोच पत्रिका’ के सम्पादक डॉ.पी.एन. सिंह (निधन हो चुका है) के अनुसार, “अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के संस्थापक सर सैयद अहमद खान ने जिस सामाजिक परिवर्तन के लिए यहां काम किया, उसे गाजीपुर शहर याद नहीं रख पाया। उनसे जुड़े धरोहरों को महफूज रखा जाना चाहिए था, किन्तु ऐसा नहीं हुआ। जिला मुख्यालय पर उनके नाम किसी बड़े आयोजन का नहीं होना खलता है।”
जनसामान्य में अक्सर चर्चा होती है कि सर सैयद अहमद खान अलीगढ़ की तर्ज पर गाजीपुर में भी एक विश्वविद्यालय खोलना चाहते थे। इस बारे में स्थानीय इतिहासकार उबैदुर्रहमान सिद्दीकी अपनी किताब 'गाजीपुर सर सैयद अहमद खान के पसमंजर में' लिखते हैं कि “विक्टोरिया हाई स्कूल की इमारत के लिए रजिस्टर पर तकरीबन 80 हज़ार रुपए चंदे के हस्ताक्षर हुए थे किन्तु मात्र 17 हज़ार रुपए ही इकट्ठा हो पाए। इस पर सर सैयद अहमद खान ने अपने सम्बोधन में निराशा व्यक्त की थी।”
बकौल उबैदुर्रहमान सिद्दीकी स्थानीय लोगों ने यह झूठा भ्रम फैलाया कि सर सैयद अहमद खान तो गाजीपुर में यूनिवर्सिटी बनाना चाहते थे। जहां के लोग चंदे के लिए नाम लिखवाकर पैसे नहीं दिए हो, वहां भला यूनिवर्सिटी बनाने का ख्वाब सर सैयद अहमद खान क्या ही देखते।
इसी सच्चाई को देखते हुए सर सैयद अहमद खान ने रामनगर के राजा देव नारायण सिंह को विक्टोरिया स्कूल का संरक्षक, लाला शिव बालक सिंह को सेक्रेटरी तथा बाबू लक्ष्मण दास को कमेटी का खजांची बनाया। ताकि उनके तबादले के बाद भी विक्टोरिया हाई स्कूल का संचालन अच्छे तरीके से होता रहे, किन्तु ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। सर सैयद अहमद खान के जाते ही कुछ समय पश्चात विक्टोरिया हाई स्कूल का वजूद ही समाप्त हो गया। यह गाजीपुर का दुर्भाग्य है कि शिक्षाविद सर सैयद अहमद खान द्वारा स्थापित संस्थाओं को सहेजने में शहरवासी नाकाम रहे।
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