
मुगल सत्ता में किन्नरों की मजबूत भूमिका देखी गई है। मुगल हरम के प्रभारी किन्नरों को ‘ख्वाजासरा’ तथा ‘नजीर-ए-मशकुयाह’ कहा जाता था। बादशाह को खाना परोसने से लेकर मुगल हरम की सुरक्षा, वित्त, जासूसी जैसे कई अहम मसलों की जिम्मेदारी किन्नरों पर हुआ करती थी। बाबर और हुमायूं को छोड़कर अन्य सभी मुगल बादशाहों के दरबार में किन्नरों की एक खास जगह थी।
डच व्यापारी फ्रेन्सिस्को पेल्सर्ट अपने यात्रा वृत्तांत में लिखता है कि “मुगल दरबार से जुड़े किन्नरों के एक इशारे पर ऐशो-आराम की सभी चीजों के अतिरिक्त एक से बढ़कर एक कीमती कपड़े, ताकतवर घोड़े तथा सभी सुख-सुविधाएं उपलब्ध थीं।” बादशाह के करीबी किन्नरों को जैसी सुविधाएं प्राप्त थीं वैसी सुविधाएं मुगल वजीरों को भी नसीब नहीं होती थीं।
हरम में मौजूद बादशाह की प्रमुख रानियों तथा बेगमों की सुरक्षा की जिम्मेदारी कुछ खास किन्नरों पर थी जिन्हें घुड़सवारी से लेकर अस्त्र-शस्त्र में निपुणता हासिल थी। इस स्टोरी में हम आपको उन आठ नामचीन किन्नरों के बारे में बताने जा रहे हैं जो मुगल बादशाह के बेहद करीबी हुआ करते थे और जिनकी हनक मुगल दरबार तक देखी जा सकती थी।
किन्नर नियामत और इतिमाद खान
अबुल फजल कृत ‘अकबरनामा’ में नियामत नाम के एक किन्नर का उल्लेख मिलता है जिसने माहम अनगा के बेटे अधम खान को हरम में नहीं घुसने दिया था। दरअसल हरम में मुगल बादशाह के सिवाय किसी गैर मर्द को आने की इजाजत नहीं थी। एक किन्नर ख्वाजा हिलाली का भी नाम आता है जो अकबर के एक रईस को पसंद आ गया था।
मुगल बादशाह अकबर के सबसे करीबी किन्नर का नाम इतिमाद खान था जो बादशाह को सलाह-मशविरे दिया करता था। यही नहीं, इतिमाद खान पर हरम की सुरक्षा से लेकर वित्त जैसी अहम जिम्मेदारियां थीं । इतिहासकार शादाब बानो की किताब ‘Eunuchs in Mughal Households and court’ के अनुसार, किन्नर इतिमाद खान मुगल शासन के रोजमर्रा के कामों में भी दखल दिया करता था।
वह अकबर को उन तमाम साजिशों और महत्वपूर्ण बातों से अवगत कराता रहता था, जो बादशाह के विरूद्ध हुआ करती थीं। इतिमाद खान के कठोर रवैये से परेशान होकर एक आम सैनिक ने चाकू मारकर उसकी हत्या कर दी थी।
किन्नर इतिबार खान व जवाहिर खान
किन्नर इतिबार खान मुगल बादशाह जहांगीर के बेहद करीबी व विश्वासपात्र लोगों में से एक था। किन्नर इतिबार खान ने जहांगीर के शासनकाल में विद्रोही राजकुमार खुर्रम (शाहजहां) के विरूद्ध आगरा शहर का बचाव किया था।
मुगल बादशाह जहांगीर की आत्मकथा ‘तुजुक-ए-जहांगीरी’ में किन्नर जवाहिर खान का भी उल्लेख मिलता है जिसे हरम की देखरेख का काम सौंपा गया था। जवाहिर खान इतना अधिक प्रभावशाली हो गया कि उसे शाही दरबार की तरफ से 1000 का मनसबदार बनाया गया था।
किन्नरों की प्रभावशाली भूमिका का एक अन्य उदाहरण यह है कि बादशाह जहांगीर के एक अमीर अब्दुल्ला खान ने अपने करीबी किन्नर को गुजरात प्रांत पर शासन करने के लिए भेजा था।
किन्नर फिरोज खान
शाहजहां के शासनकाल में मुगल हरम का संरक्षक था किन्नर फिरोज खान। किन्नर फिरोज खान ने अपना मकबरा ‘ताल फिरोज खान’ का निर्माण करवाया था, जो आज भी आगरा में मौजूद है।
किन्नर ख्वाजा तालिब
मुगल बादशाह औरंगजेब के शासनकाल में किन्नर ख्वाजा तालिब भी काफी चर्चा में रहा। औरंगजेब का बेहद करीबी था ख्वाजा तालिब। बादशाह ने उसे हरम की सुरक्षा से लेकर जासूसी जैसे कई महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां दे रखी थीं। ऐसा उल्लेख मिलता है कि मुगल बादशाह शाहजहां के उत्तराधिकारी एवं औरंगजेब के बड़े भाई दारा शिकोह ने भी एक किन्नर को सिंधु नदी के किनारे अटक के किले का गवर्नर नियुक्त किया था। बता दें कि, औरंगजेब के भाई मुराद बख्श के एक करीबी हिजड़े ने उसके लिए अपनी जान तक दे दी।
किन्नर खवास खान
औरंगज़ेब का दूसरा पुत्र बहादुर शाह प्रथम 63 साल की उम्र में मुगल गद्दी पर बैठा। राजकीय कार्यों में लापरवाह होने के कारण लोग उसे ‘शाह- ए- बेख़बर’ कहने लगे थे। बहादुर शाह प्रथम के दरबार में सबसे शक्तिशाली व्यक्तियों में से एक था किन्नर खवास खान।
किन्नर जावेद
मुगल बादशाह मुहम्मदशाह रंगीला ने किन्नर जावेद को हरम का सहायक अधीक्षक नियुक्त किया था। बेहद शातिर दिमाग किन्नर जावेद अनपढ़ था लेकिन जासूसी करने में उसे महारथ हासिल थी। मुहम्मदशाह रंगीला की मौत के बाद अहमदशाह के शासनकाल में किन्नर जावेद की तूती बोलने लगी। दरअसल अवध के नवाब सफदरजंग ने अफगान आक्रमणकारी अब्दाली को करारी शिकस्त दी जिससे खुश होकर बादशाह ने सफदरजंग को मुग़ल साम्राज्य का वजीर बना दिया।
किन्नर जावेद को सफदरजंग को कब्जे में लेने का मौका तब मिला जब 70 हजार की घुड़सवार सेना होने के बावजूद वह पठानों के विरूद्ध एक युद्ध हार गया। मुगलों में यह नियम था हारे हुए वजीर को अपना पद छोड़ना पड़ता था अत: किन्नर जावेद ने सफदरजंग को वह नियम याद दिलाया। इतिहासकार माइकल एडवर्ड लिखता है कि “सफदरजंग वजीर का पद छोड़ना नहीं चाहता था इसलिए उसने किन्नर जावेद को 70 लाख रुपए बतौर रिश्वत दिए। सफदरजंग ने किन्नर जावेद से यह भी कहा कि वह इस बात को किसी साझा नहीं करे।”
किन्नर जावेद को मुगल बादशाह ने 6 हजार का मनसबदार बनाया था। इतना ही नहीं, गुप्तचर विभाग के प्रमुख होने के साथ-साथ किन्नर जावेद को ‘नवाब बहादुर’ की उपाधि से भी नवाजा गया था। मुगल इतिहास का वह इकलौता किन्नर था जिससे ‘नवाब किन्नर’ कहा जाता था।
किताब ‘फर्स्ट टु नवाब्स ऑफ अवध’ के अनुसार, बादशाह अहमदशाह की मां उधमबाई के साथ किन्नर जावेद के अंतरंग सम्बन्ध थे। किन्नर जावेद पर उधमबाई सबसे अधिक भरोसा करती थी। सभी नियमों से इतर किन्नर जावेद मुगल हरम में उधमबाई के साथ ज्यादातर समय बिताया करता था। राजमाता उधमबाई का बेहद करीबी जावेद अपने मनमुताबिक, मुगल सत्ता में हस्तक्षेप करने लगा था।
अंत में मुगल वजीर सफदरजंग ने षडयंत्र के तहत किन्नर जावेद की हत्या करवा दी। प्रख्यात इतिहासकार सर जदुनाथ सरकार अपनी किताब ‘फॉल ऑफ द मुग़ल एम्पायर’ में लिखते हैं कि “किन्नर जावेद की मौत से बादशाह अहमदशाह और उसकी मां उधमबाई को गहरा आघात लगा था। उधमबाई ने विधवा की तरह अपने गहने उतारकर सफेद कपड़े पहन लिए।”
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