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Dr. Ram Manohar Lohia love story who wrote love letters to Rama Mitra

रमा मित्रा के प्यार में पागल थे डॉ. राम मनोहर लोहिया

भारतीय राजनीति में सुभाष चन्द्र बोस और एमिली शेंकल, आचार्य जेबी कृपलानी तथा सुचेता मजूमदार, इंदिरा गांधी और फिरोज जहांगीर, अटल बिहारी वाजपेयी और राजकुमारी कौल, जार्ज फर्नांडिस और लैला ऐसे बड़े नाम हैं, जिनकी प्रेम कहानियां आज भी लोगों के जुबां पर रहती हैं। इन सबके बीच डॉ. राम मनोहर लोहिया और रमा मित्रा की प्रेम कहानी भी एक ऐसी मिसाल है, जिसकी चर्चा लोग अक्सर करते रहते हैं।

दिग्गज राजनेता व समाजवादी चिन्तक डॉ. राम मनोहर लोहिया और दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रख्यात कॉलेज मिरांडा हाउस की लेक्चरर रमा मित्रा की प्रेम कहानी यूरोप से शुरू हुई थी। बेहद आकर्षक महिला रमा मित्रा के प्यार में डॉ. लोहिया इस कदर पागल ​थे कि दिनभर में तीन-तीन प्रेम पत्र लिख डालते थे। ऐसे में, आजीवन अविवाहित रहे डॉ. राम मनोहर लोहिया और रमा मित्रा की रोमांचक लव स्टोरी जानने के लिए यह स्टोरी जरूर पढ़ें।

डॉ. लोहिया और रमा मित्रा की पहली मुलाकात

भारतीय राजनीति में जॉइंट किलर के नाम से मशहूर डॉ. राम मनोहर लोहिया को उनके साथी जीनियस कहते थे। स्कूल हो या ​कॉलेज, प्रत्येक क्लास में प्रथम श्रेणी से पास होने वाले डॉ. लोहिया उच्च शिक्षा के लिए जर्मनी गए। जर्मनी के हमबोल्ट विश्वविद्यालय से पीएचडी करने के दौरान डॉ. लोहिया ने अपना पूरा रिसर्च पेपर जर्मन भाषा में ही लिखा था।

हिन्दी, मराठी, बांग्ला, अंग्रेजी, फ्रेंच और जर्मन भाषाओं के जानकार डॉ. लोहिया का रमा मित्रा के साथ पहला परिचय यूरोप में ही हुआ था। रमा मित्रा उन दिनों फ्रांस में थी। यूरोप में ही डॉ. लोहिया और रमा मित्रा एक दूसरे को पत्र लिखा करते थे।

साल 1933 में डॉ. लोहिया जब यूरोप से लौटे तो गांधीजी के प्रभाव में आकर स्वतंत्रता आन्दोलन में कूद पड़े। आजादी की लड़ाई में रमा मित्रा भी डॉ. लोहिया का साथ देती थीं। इसी दौरान दोनों के बीच प्यार हुआ और फिर एक साथ रहने लगे। जानकारी के लिए बता दें कि साल 1942 में भारत छोड़ो आन्दोलन के समय जब डॉ. लोहिया की गिरफ्तारी हुई तब वह रमा मित्रा के साथ ही थे। 

कौन थीं रमा मित्रा

वैसे तो रमा मित्रा की पहचान विशेषकर डॉ. लोहिया की सबसे करीबी महिला मित्र एवं प्रेमिका के रूप में की जाती है। परन्तु इससे इतर बेहद आकर्षक रमा मित्रा दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रख्यात कॉलेज मिरांडा हाउस में लेक्चरर पद पर कार्यरत थीं। इतिहास विभाग से जुड़ी रमा मित्रा कॉलेज मिरांडा हाउस में साल 1949 से 1979 ई. तक पढ़ाती रहीं। कॉलेज छात्राओं के बीच लो​कप्रिय तथा अपने अकाट्य तर्कों के लिए जानी जाने वाली रमा मित्रा बंगाल के एक वामपंथी परिवार से ताल्लुक रखती थीं, उनके एक बड़े भाई बंगाल सरकार में मंत्री भी रहे।

1942 ई. के भारत छोड़ो आन्दोलन में शिरकत करने से पूर्व रमा मित्रा का नाम चिटगांव विद्रोह में भी आया था। बाद में रमा मित्रा ने सोशलिस्ट पार्टी ज्वाइन कर ली और लोकसभा चुनाव भी लड़ा किन्तु जीत नसीब नहीं हुई। साल 1983 में रमा मित्रा ने डॉ. लोहिया के पत्रों पर आधारित एक किताब भी प्रकाशित की, जिसका नाम है— 'लोहिया थ्रू लेटर्स'। इसके ठीक दो साल बाद 1985 ई. में रमा मित्रा का निधन हो गया।

डॉ. लोहिया के साथ रहती थीं रमा मित्रा

डॉ. लोहिया और रमा मित्रा, दोनों आजीवन अविवाहित रहे किन्तु यह भी सच है कि डॉ. लोहिया ने अपने महिला मित्र और सबसे करीबी सहयोगी रमा मित्रा से पागलों की तरह प्यार किया और पूरी जिन्दगी उन्हीं के साथ रहे। वैसे तो डॉ. लोहिया की कई महिला मित्र थीं लेकिन वे अपने सम्बन्धों को लेकर हमेशा ईमानदार रहे, यही वजह है कि उनके सार्वजनिक जीवन पर इसका कोई असर नहीं पड़ा।

ऐसे दौर में जब किसी महिला के साथ अविवाहित रहना बेहद आपत्तिजनक माना जाता था, डॉ. लोहिया ने रमा मित्रा के साथ रहकर एक क्रांतिकारी कदम उठाया। सांसद बनने के बाद डॉ. राम मनोहर लोहिया को गुरुद्वारा रकाबगंज स्थित सरकारी बंगला मिला था।

रमा मित्रा भी डॉ. लोहिया के साथ वहीं रहती थीं। अयूब सैयद अपनी किताब 'ट्वेंट ट्बुलेंट ईयर्सः इनसाइट्स इन टू इंडिय़न पॉलिटिक्स' में लिखते हैं कि जब वह 1967 के लोकसभा चुनाव में डॉ. लोहिया का इंटरव्यू लेने गए तब उन्होंने रमा मित्रा से कहा कि इस बात का ध्यान रखें कि उन्हें कोई डिस्टर्ब नहीं करे। डॉ. लोहिया और रमा मित्रा पति-पत्नी की तरह आजीवन एक साथ ही रहे, हांलाकि 1967 ई. में डॉ. लोहिया का निधन हो गया।

रमा मित्रा के नाम डॉ. लोहिया के प्रेम पत्र

राजनीतिक कार्यक्रमों में व्यस्त रहने के बावजूद डॉ. लोहिया आजीवन साथी रमा मित्रा से मिलने तथा प्रेम पत्र लिखने के लिए समय निकाल ही लेते थे। रमा मित्रा के प्यार में डॉ. लोहिया इस कदर पागल थे कि वह दिनभर में तीन-तीन पत्र लिख डालते थे।

डॉ. लोहिया अपने पत्रों में रमा मित्रा को सम्बोधन में कभी रमा, कभी इला, कभी इलू तो कभी इलू रानी लिखा करते थे। रमा मित्रा ने साल 1983 में डॉ. लोहिया के प्रेम पत्रों पर आधारित एक किताब 'लोहिया थ्रू लेटर्स' भी प्रकाशित की। रमा मित्रा के नाम डॉ. लोहिया द्वारा लिखे गए पत्रों की कुछ पंक्तियों से हम आपको रूबरू कराने जा रहे हैं, जो इस प्रकार हैं :

रमा मित्रा जब यूरोप में थीं तब उन्होंने डॉ. लोहिया को पत्र लिखा कि, क्या आपको मेरी याद आती है? जवाब में डॉ. लोहिया ने लिखा- “ आप महिलाओं वाली ट्रिक इस्तेमाल करना बंद करें। मैं आपको याद करता हूं या नहीं यह पूछना बंद करें।"

प्रिय इला, 10 और 11 अप्रैल को बनारस में कार्यक्रम है। सारनाथ होटल में रूकने की इच्छा है। 10 और 11 तारीख की शाम को कुछ नहीं करना है। 12 अप्रैल को तो कोई काम नहीं है। इस दौरान तुम आने की कोशिश करो।

प्रिय इल्लु रानी, 12 तारीख की रात मैंने आपको एक खत भेजा था। आपका खत मुझे 13 तारीख को मिला। गोरखपुर पहुंचने के तीन दिन बाद मुझे आपके बारे में जानकारी मिली। यह सही नहीं है, जो भी तय हुआ है, उसका पालन किया जाए। मैं किसी दुर्घटना की कल्पना करता रहा। अगर मैं आप पर भरोसा करना बंद कर दूं तो यह अच्छा नहीं होगा।

बतौर नेता डॉ. लोहिया अपनी राजनीतिक विफलता को लेकर उदासीन दिखते हैं। एक पत्र में वह रमा मित्रा को लिखते हैं कि मैं एक नेता, यहां तक कि लेखक भी नहीं बन सका।

एक अन्य पत्र में डॉ. लोहिया लिखते हैं कि मुझे आपके कई सारे प्रेमियों के होने की कहानी पसंद नहीं है। लेकिन यदि आप मुझे पूरी बात बताएंगी तो, मैं इसे एक महत्वपूर्ण बात की भांति स्वीकार कर सकता हूं।

उपरोक्त पंक्तियां तो महज उदाहरण हैं, एक पत्र में डॉ. लोहिया लिखते हैं कि जब आप किसी के साथ प्लान बनाती हैं, तो आपको उसी समय दूसरों के साथ प्लान बनाने का कोई अधिकार नहीं है। अब आप समझ गए होंगे कि डॉ. लोहिया अपनी महिला मित्र रमा मित्रा से कितना प्यार करते थे।

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