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Did Aurangzeb hate Shia Muslims?

क्या शिया मुसलमानों से नफरत करता था औरंगजेब ?

मध्ययुगीन इतिहास में शक्तिशाली मुगल बादशाह औरंगजेब को जिन्दा पीर कहा गया है, क्योंकि वह इस्लामी कानूनों का अक्षरश: पालन करता था। नमाज का नियमित रूप से पालन करने तथा जीवनभर शराब न पीने के कारण वह शाही दरवेश के रूप में भी जाना जाता था।

औरंगजेब की धार्मिक नीतियों का एकमात्र उद्देश्य भारतीय उपमहाद्वीप को दार-उल-हर्ब’ (काफिरों का देश) के स्थान पर दार- उल-इस्लाम’ (इस्लाम का देश) में तब्दील करना था। ऐसा कहते हैं कि सिर्फ कुरान को कंठस्थ करने में औरंगजेब ने सात साल बिताए थे, वह खुद को इस्लाम धर्म के सच्चे अनुयायी के रूप में पेश करना चाहता था।

मुगल गद्दी पर बैठने के बाद उसनेअबुल मुजफ्फर मुहीउद्दीन मुजफ्फर औरंगजेब बहादुर आलमगीर बादशाह गाजीकी उपाधि धारण की तथा देश के प्रत्येक बड़े शहरों में मुहतसिबों की नियुक्ति की ताकि हर जगह इस्लामी कानून का पालन किया जाए। गैर मुसलमानों विशेषकर हिन्दुओं के प्रति औरंगजेब की भेदभावपूर्ण नीति से तो हम सभी वाकिफ हैं। जजिया कर के साथ ही औरंगजेब के आदेश पर बड़ी संख्या में देश के विख्यात हिन्दू मंदिरों (बनारस का विश्वनाथ मंदिर, मथुरा का केशवराय मंदिर, गुजरात का सोमनाथ मंदिर आदि) को नष्ट किया गया। इसके साथ ही हिन्दुओं को बलात मुसलमान बनाना भी उसकी धार्मिक नीति का ही हिस्सा था।

इनके सबके बावजूद ऐसा उल्लेख मिलता है कि बादशाह औरंगजेब केवल हिन्दू जनता ही नहीं अपितु शिया मुसलमानों के प्रति भी भेदभावपूर्ण नीति अपनाता था। अब सवाल यह उठता है कि क्या सच में शिया मुसलमानों से नफरत करता था औरंगजेब? इस तथ्य से रूबरू होने के लिए इस रोचक स्टोरी को जरूर पढ़ें।

शिया मुसलमानों के प्रति औरंगजेब का व्यवहार

प्रख्यात इतिहासकार एल.पी. शर्मा अपनी किताब मध्यकालीन भारत में लिखते हैं ​कि मुगल बादशाह औरंगजेब की धार्मिक असहिष्णुता केवल हिन्दुओं तक ही सीमित नहीं थी अपितु उसे शिया मुसलमानों से भी बेहद चिढ़ थी। बीजापुर तथा गोलकुण्डा के शिया राज्यों के अस्तित्व को समाप्त करने में उसका एक विशेष धार्मिक उद्देश्य था।

यदि हम औरंगजेब के पूर्ववर्ती बादशाहों अकबर, जहांगीर और शाहजहां की बात करें तो उनके समय में अनेक योग्य शिया विद्वानों तथा शासन प्रबन्धकों की सेवाएं प्राप्त होती रही थीं। इनमें से कुछ शिया मुसलमान शाही सेना में सैन्य जनरल बन गए और बड़ी ज़मीन के मालिक बनकर गंगा के मैदानों में बस गए। बतौर उदाहरण - बादशाह अकबर के नवरत्नों में शामिल अबुल फ़ज़ल और फ़ैज़ी (दोनों भाई थे) के बारे में कहा जाता है कि इन दोनों ने या तो शिया धर्म अपना लिया था या फिर वे शिया धर्म के बहुत करीब थे। 

जहाँगीर की प्रमुख बेगम नूरजहां भी एक शिया मुस्लिम थी। नूरजहां ने अपने पिता एतमादुद्दौला तथा आसफ खां सहित अनेक शिया मुसलमानों को विभिन्न मुगल पदों पर नियुक्त किया था। यहां तक कि शाहजहां की पादशाह बेगम मुमताज़ महल भी शिया थी। जाहिर है, शाहजहां के शासनकाल तक मुहर्रम मनाया जाना जारी रहा।  आलोचकों के मुताबिक, कट्टर सुन्नी मुसलमान औरंगजेब शिया मुसलमानों के खिलाफ था। औरंगजेब आलमगीर की नज़र में शिया काफिरों के समान ही थे अत: उसने राज्य की सेवाओं से शिया मुसलमानों को वंचित रखने का पूर्ण प्रयत्न किया।

शिया मुसलमानों के प्रति औरंगजेब की नी​ति

इतिहासकारों के अनुसार बादशाह औरंगजेब स्वयं एक कट्टर सुन्नी मुसलमान था,  उसकी नजरों में शिया मुसलमानों के लिए कोई स्थान नहीं था। मुगल शासक औरंगजेब की कई नीतियां हिंदुओं की तुलना में शिया मुसलमानों के प्रति कठोर थीं। उसने शिया मुसलमानों के विरूद्ध दमनकारी नीति का अनुसरण करते हुए उनके त्यौहारों जैसे- मुहर्रम आदि को प्रतिबन्धित करने के साथ ही कई शोक स्थलों को भी नष्ट कर दिया।

औरंगजेब जब गुजरात का गवर्नर था तब उसने शिया आध्यात्मिक नेता सैय्यद कुतुबुद्दीन और उनके 700 अनुयायियों की हत्या करवाकर शिया विरोधी अभियान की शुरूआत की थी। औरंगजेब के आदेश पर मुगल प्रशासन से कई शिया सरदारों को हटा दिया गया था। औरंगज़ेब के आदेश पर सूफी कवि सरमद काशानी का सिर कलम कर दिया गया था। पूरा कलिमा न पढ़ने के जुर्म में सरमद काशानी की साल 1660 में जामा मस्जिद की सीढ़ियों के नीचे चबूतरे पर हत्या कर दी गई थी।

दक्कन अभियान के दौरान बादशाह औरंगजेब ने दो प्रमुख शिया रियासतों- बीजापुर और गोलकुंडा के साथ उतनी ही क्रूरतापूर्वक व्यवहार किया जितना उसने हिंदुओं के साथ किया था। दक्कन अभियान के दौरान औरंगजेब ने साल 1686-1687 में बीजापुर और गोलकुंडा पर न केवल कब्जा किया अपिुत मुगल साम्राज्य में मिलाकर इनका स्वतंत्र अस्तित्व ही समाप्त कर दिया।

साल 1686 में बीजापुर के अंतिम आदिलशाही सुल्तान सिकन्दर आदिलशाह ने औरंगजेब के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया तत्पश्चात बीजापुर का मुगल साम्राज्य में विलय कर लिया गया। यदि गोलकुण्डा की बात करें तो इसका शासक अबुल हसन कुतुबशाह शिया धर्म को संरक्षण देता था तथा उसने उसने अपनी सत्ता में दो ब्राह्मण मंत्रियों अकन्ना और मदन्ना को नियुक्त कर रखा था।

औरंगजेब ने अबुल हसन कुतुबशाह को बन्दी बनाकर दौलताबाद के किले में भेज दिया तत्पश्चात गोलकुण्डा को मुगल साम्राज्य में मिला लिया। औरंगजेब के मुगल सैनिकों ने शिया रियासतों बीजापुर और गोलकुण्डा में लूटपाट, हत्या और बलात्कार की हदें पार कर दी थीं।

औरंगजेब द्वारा मुहर्रम पर प्रतिबन्ध

भारत में मुस्लिम आक्रमणकारियों के आगमन के पश्चात दिल्ली सल्तनत की स्थापना हुई। हांलाकि दिल्ली सल्तनत के तमाम शासक सुन्नी मुसलमान थे। जबकि शिया मुसलमानों की संख्या नाममात्र की थी। दिल्ली सल्तनत में शियाओं के त्यौहार मुहर्रम का उल्लेख तकरीबन नहीं मिलता है। वहीं ​सुल्तान फिरोजशाह तुगलक अपनी आत्मकथा फुतुहात-ए-फिरोजशाहीमें लिखता है कि शिया सही रास्ते से भटक गए हैं, इसलिए मैं उन्हें सख्त सजा देता हूं।फिरोजशाह तुग़लक़ ने अपनी ​आत्मकथा में शियाओं की किताबों को जलाने का भी जिक्र किया है।

हांलाकि मुगलकाल में हुमायूं, अकबर, जहांगीर ने शिया विद्वानों, प्रशासकों तथा सैन्य जनरलों को राजकीय सेवाओं में नियुक्त किया था। चूंकि जहांगीर की बेगम नूरजहां तथा शाहजहां की बेगम मुमताज महल शिया थी अत: बादशाह शाहजहां के शासनकाल तक शियाओं का त्यौहार मुहर्रम मनाया जाना जारी रहा। किन्तु औरंगजेब ने साल 1669 में मुहर्रम के जुलूस पर बैन लगा दिया था। इसके पीछे कई इतिहासकारों का यह कहना है कि औरंगजेब के दौर में मुहर्रम के जुलूस में कई जगहों पर शिया-सुन्नी मुसलमानों के बीच दंगे हो गए थे, इसी वजह से उसने मुहर्रम पर निकलने वाले ताजिया जुलूसों पर प्रतिबंध लगा दिया।

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