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Aurangzeb was impressed by the beauty of Princess Charumati, know what happened next?

राजकुमारी चारुमती की खूबसूरती पर फिदा था औरंगजेब, जानिए फिर क्या हुआ?

मारवाड़ के राठौड़ों की छोटी शाखा किशनगढ़ रियासत की राजकुमारी चारुमती बेहद खूबसूरत थी। ऐसे में राजकुमारी चारुमती का रूप-सौन्दर्य ही उसके लिए परेशानी का सबब बन गया। दरअसल राजकुमारी चारुमती की खूबसूरती के चर्चे सुनकर बादशाह औरंगजेब ने उससे विवाह करने का निर्णय लिया और मुगल सेना के साथ शादी का डोला किशनगढ़ भिजवाया। राजकुमारी चारुमती के भाई मानसिंह ने विवश होकर यह सम्बन्ध स्वीकार कर लिया। इसके बाद राजकुमारी चारुमती ने बादशाह औरंगजेब से अपनी लाज कैसे बचाई अर्थात् उसकी रक्षा राजपूताना के किस योद्धा ने की? यह जानने के लिए इस रोचक स्टोरी को अवश्य पढ़ें।

किशनगढ़ की राजकुमारी चारुमती

औरंगजेब के उत्तराधिकार युद्ध के दौरान दाराशिकोह का प्रमुख सेनापति व किशनगढ़ रियासत का राजा रूप सिंह सामूगढ़ की निर्णायक लड़ाई (साल 1658) में वीरगति को प्राप्त हो चुका था। दरअसल हाथी पर सवार औरंगजेब की गर्दन काटने के प्रयास में रूपसिंह की मौत हुई थी, अत: बादशाह बनने के बाद औरंगजेब किशनगढ़ रियासत को कठोर दण्ड देना चाहता था।

इसका अवसर भी बादशाह औरंगजेब को जल्द ही मिल गया। मारवाड़ के राठौड़ों की छोटी शाखा किशनगढ़ के स्वर्गीय राजा रूप सिहं की पुत्री राजकुमारी चारुमती की खूबसूरती और रूप-सौन्दर्य के चर्चे हर तरफ व्याप्त थे, इसलिए मुगल बादशाह औरंगजेब ने साल 1660 में राजकुमारी चारुमती से विवाह करने का निश्चय कर सगाई का डोला किशनगढ़ भिजवाया।

आपको जानकारी के लिए बता दें कि मुगलिया हुकूमत में यह सुपरिचित परम्परा थी कि बादशाह किसी राजकुमारी से विवाह करने के लिए अपनी सेना के साथ डोला भिजवाते थे। इसके बाद वह सेना उस राजकुमारी को डोले में बैठाकर मुगल राजधानी में ले आती थी तत्पश्चात बादशाह इच्छानुसार उससे निकाह करता था अथवा हरम में डाल देता था।

चूंकि किशनगढ़ एक छोटी रियासत थी अत: ताकतवर मुगल सेना के साथ राजकुमारी चारुमती की शादी का डोला किशनगढ़ आते ही चारुमती के भाई राजा मानसिंह ने विवश होकर यह सम्बन्ध स्वीकर कर लिया।

वहीं श्रीनाथ जी की उपासक और नित्य पूजा-पाठ करने वाली राजकुमारी चारुमती मुगल बादशाह औरंगज़ेब से विवाह की कल्पना मात्र से ही बेहद दुखी थी। राजकुमारी चारुमती एक विधर्मी से विवाह नहीं करना चाहती थी इसलिए उसने अपनी मां और भाई मानसिंह सिंह से कहा कि यदि मेरा विवाह बादशाह औरंगजेब के साथ हुआ तो मैं अपने प्राण त्याग दूंगी। हांलाकि राजकुमारी चारुमती इस बात को भी भलीभांति जानती थी कि औरंगजेब की सगाई का डोला इनकार करने का मतलब किशनगढ़ रियासत की बर्बादी सुनिश्चित है।

इसलिए राजकुमारी चारुमती ने मेवाड़ के महाराणा राजसिंह के पास एक संदेश भिजवाया, उसमें लिखा था कि क्या एक राजहंसी को बगुले की सहेली होना पड़ेगा। आप एकलिंग महादेव के उपासक व महाराणा प्रताप के प्रपौत्र हैं। जिस तरह भगवान श्रीकृष्ण ने रुक्मिणी से विवाह किया, उसी प्रकार यदि आपने मुझसे विवाह कर मुगल बादशाह औरंगजेब के शिकंजे से मुक्त नहीं करवाया तो मैं आपसे निश्चय कहती हूं कि आत्मघात करके प्राणों को त्याग दूंगी

राजनीतिक सम्बन्ध : औरंगजेब और महाराणा राजसिंह  

महाराणा जगत सिंह की मृत्यु के बाद उसका पुत्र राजसिंह 10 अक्टूबर 1652 ई. को मेवाड़ का शासक बना। राजसिंह अपने पिता जगत सिंह की तर्ज पर चित्तौड़ दुर्ग की मरम्मत करवा रहा था, जब इस बात की भनक शाहजहां को लगी तो उसने सादुल्ला खां के नेतृत्व में एक मुगल फौज मेवाड़ के विरूद्ध भेजी। ऐसे में राजसिंह ने मुगल सेना का विरोध करना उचित नहीं समझा, अत: मुगल सेनापति सादुल्ला खां ने चित्तौड़ पहुंचकर किले में किए गए सभी निर्माण कार्यों को तुड़वा दिया।

इसके बाद साल 1657 में शाहजहां जैसे ही अस्वस्थ्य हुआ और उसके बेटों में उत्तराधिकार युद्ध शुरू हुआ, महाराणा राजसिंह ने इस अव्यवस्था का लाभ उठाकर टीका दौड़ उत्सव (शुभ मुहूर्त में वर्ष में पहली बार शिकार का आयोजन राज्य की सीमा से बाहर किया जाता था) का बहाना बनाकर 2 मई 1658 ई. को राज्य के बाहर कई मुगल थानों पर हमला कर उन्हें लूट लिया।

इसी क्रम में राज सिंह जब खारी नदी तट पर पहुंचा तो उसे दाराशिकोह एक पत्र मिला जिसमें उसने मदद की मांग की थी। राजसिंह इस बात को जानता था कि औरंगजेब को फतेहाबाद में विजय मिल चुकी है, ऐसे में भविष्य में मुगल बादशाह औरंगजेब ही होगा, इसलिए उसने पत्र में यह लिखकर भिजवा दिया कि उसके लिए तो सभी राजकुमार बराबर हैं। राजसिंह के इस व्यवहार से औरंगजेब बहुत प्रसन्न हुआ और मुगल बादशाह बनते ही उसने राजसिंह को 6000 का मनसब देकर उपहार में डूंगरपुर और बांसवाड़ा के परगने दे दिए।  

महाराणा राजसिंह का राजकुमारी चारुमती से विवाह

इधर राजकुमारी चारुमती का पत्र मिलते ही महाराणा राज सिंह ने सभी सामन्तों की राय से चैत्र पूर्णिमा 1659 ई. को मेवाड़ी सेना के साथ किशनगढ़ के लिए प्रस्थान किया और चारुमती से विवाह कर उसे सम्मानपूर्वक उदयपुर ले आए। राजगढ़ प्रशस्ति में इस बारे में लिखा है कि विक्रम सम्वत 1717 में महाराणा राजसिंह अपनी सेना लेकर किशनगढ़ गए और दिल्ली के बादशाह से त्रस्त कन्या जो राजा रूपसिंह की पुत्री थी, उससे विवाह करके उदयपुर लौट आए इस प्रकार महाराणा राजसिंह ने राजकुमारी चारुमती से विवाह कर उसे मुगल बादशाह औरंगजेब के पास जाने से बचा लिया।

प्रतापगढ़ रियासत के रावत हरिसिंह सिंह के जरिए औरंगज़ेब को जैसे ही यह खबर मिली कि मेवाड़ के महाराणा राजसिंह ने राजकुमारी चारुमती से विवाह कर लिया है, वह तिलमिला उठा। क्रोधित औरंगजेब ने महाराणा राजसिंह को एक पत्र लिखा कि मेरे आदेश के बिना तुमने किशनगढ़ जाकर शादी क्यों की? जवाब में महाराणा राजसिंह ने लिखा कि राजपूतों का विवाह सदा राजपूत कुल में ही होता आया है, इसके लिए कभी मनाही नहीं हुई।

मेवाड़ के महाराणा राजसिंह का यह निर्णय औरंगजेब के लिए सीधी चुनौती थी, अत: युद्ध होना तय था। इस प्रकार मुगल सेना को रोकने के लिए महाराणा राजसिंह ने सलूंबर के राव रतन सिंह को 50 हजार सैनिकों के साथ भेजा। आमेर के निकट देसूरी की नाल के युद्ध में राव रतन सिंह ने इतनी शूरवीरता से युद्ध किया कि मुगल सेना के दांत खट्टे कर दिए हांलाकि वह वीरगति को प्राप्त हो गए। आखिरकार गुस्साए औरंगजेब ने गियासपुर और बसावर मेवाड़ से छिनकर प्रतापगढ़ रियासत के रावत हरिसिंह को दे दिए।

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