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Brain Drain 25 Lakh Indians migrate abroad between 2014 and 2024

2014 - 2024 के बीच 25 लाख भारतीयों का विदेश पलायन, आखिर क्यों?

भारत आज की तारीख में दुनिया की चौथी आर्थिक महाशक्ति बन चुका है परन्तु आपको यह तथ्य जानकर हैरानी होगी कि साल 2014 से 2024 के बीच तकरीबन 25 लाख भारतीयों ने भारत छोड़ दिया। विदेश मंत्रालय के मुताबिक, सिर्फ साल 2024 में 2 लाख से अधिक भारतीयों ने अपनी नागरिकता त्याग दी, यह भारत से पलायन की निरन्तर प्रवृत्ति को दर्शाता है।

ब्रिटिश काल में भारत से धन का निष्कासन’ (Drain of wealth) जारी था, परन्तु आज की तारीख में उसकी जगह प्रतिभा पलायन ने ली है, जिसे हम सभी ब्रेन ड्रेन’ (Brain Drain)  के नाम से जानते हैं। यदि इन दोनों तथ्यों पर ध्यान दिया जाए तो धन निष्कासन की तुलना में प्रतिभा पलायन ज्यादा नुकसानदेह है। अब आप के मन में यह सवाल उठना लाजिमी है कि हमारे देश की प्रतिभाएं आखिर में विदेश क्यों पलायन कर रही हैं?  भारतीय प्रतिभाओं के विदेश पलायन से हमारे देश को कितना भारी नुकसान होता है? इन संवदेनशील प्रश्नों का उत्तर जानने के लिए यह रोचक स्टोरी जरूर पढ़ें।

पिछले 10 वर्षों में 25 लाख भारतीयों का विदेश पलायन

भारत के अत्यधिक शिक्षित अथवा कुशल नागरिक बेहतर जीवन शैली, शानदार कार्य अवसरों की तलाश में विदेश चले जा रहे हैं। साल 2000 से अबतक तकरीबन 20 लाख से अधिक आईटी पेशेवर विदेश जा चुके हैं। बतौर उदाहरण- देश का हर चौथा इंजीनियर विदेश में काम कर रहा है।

यही नहींयहां से हर साल तकरीबन 2 लाख छात्र उच्च शिक्षा के लिए विदेश जाते हैं जिनमें 85 फीसदी वहीं बस जाते हैं।  अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया जैसे विकसित देशों में भारत के 10 लाख से अधिक चिकित्सक तथा 20 लाख से अधिक नर्स कार्यरत हैं। ये सभी डॉक्टर और नर्स हमारे देश के लाखों लोगों की जान बचा सकते थे, लेकिन आज वे विदेश में हैं।

भारतीय प्रतिभाओं के विदेश पलायन से जुड़े आधिकारिक आंकड़ों पर ध्यान दिए जाए तो महज 2014 से 2024 के बीच तकरीबन 25 लाख भारतीयों ने बेहतर जीवनशैली अथवा शानदार कार्य अवसरों की तलाश में भारत छोड़ दिया। विदेश मंत्रालय के मुताबिक, सिर्फ साल 2024 में 2 लाख से अधिक भारतीयों ने अपनी नागरिकता त्याग दी, यह भारत से निरन्तर पलायन की प्रवृत्ति को दर्शाता है।

विदेश पलायन से देश को गम्भीर क्षति

यह सच है कि लाखों भारतीय बेहतर जीवन शैली, शानदार कार्य अवसरों की तलाश तथा राजनीतिक अस्थिरता के चलते विदेशों में पलायन कर रहे हैं। भारतीयों के विदेश पलायन से न केवल देश की मूल प्रतिभा का नुकसान होता है बल्कि इसका दुष्प्रभाव भारत के आर्थिक विकास, स्वास्थ्य सेवा, प्रौद्योगिकी और शोध जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों पर आसानी से महसूस किया जा सकता है।

केवल साल 2014 से 2025 के बीच भारतीयों के विदेश पलायन से होने वाले आर्थिक नुकसान की बात करें तो देश को 20 लाख करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है, जो भारत के सालाना बजट का तकरीबन 25 फीसदी है। यह आर्थिक नुकसान पाकिस्तान के पूरे वार्षिक बजट से भी अधिक है। अब आप सोच सकते हैं कि पूर्व के वर्षों में भारत कितनी आर्थिक क्षति झेल चुका है।

यदि स्वास्थ्य क्षेत्र की बात की जाए तो भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में कुशल डॉक्टरों का आभाव आसानी से देखा जा सकता है। वहीं देश की जनसंख्या के मुकाबले डॉक्टरों की संख्या का अनुपात काफी कम है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (W.H.O.) के मानकों को पूरा करने के लिए भारत में अभी 24 लाख डॉक्टरों की कमी है। साल 2020 की मानव विकास रिपोर्ट से जानकारी मिलती है कि भारत में प्रति दस हजार लोगों पर 5 हॉस्पिटल बेड्स है, जो दुनिया के सबसे कम में से एक है। 

भारतीय वैज्ञानिकों का विदेश पलायन नवाचार को बाधित करता है, तथा आईटी से जुड़ी प्रतिभाओं के पलायन से देश के उच्च-प्रौद्योगिकी उद्योगों में नेतृत्व क्षमता कम होती है। प्रतिभा पलायन से जहां देश की जीडीपी को भारी क्षति पहुंचती है वहीं आईटी तथा मेडिकल कालेजों में मिलने वाली सब्सिडी प्राप्त शिक्षा का लाभ विदेशी अर्थव्यवस्थाओं को मिलता है।

विदेश पलायन के प्रमुख कारक

वैसे तो भारतीयों के विदेश पलायन के कई कारण हैं, किन्तु हम आपको कुछ प्रमुख कारकों से अवगत कराने जा रहे हैं जो निम्नलिखित हैं।

भारत के मुकाबले विकसित देशों में स्वास्थ्य, अनुसंधान, आईटी आदि क्षेत्रों में बेहतर उच्च वेतन स्तर।

भारत में बेरोजगारी की भीड़ के चलते उच्च प्रतिस्पर्धा।

संविधान में लागू आरक्षण नीतियों से असंतोष।

भारत में प्रतिभाओं की सही पहचान नहीं, प्रतिभा के मुकाबले ग्लैमर को तरजीह।

विदेशों में बेहतर जीवन गुणवत्ता, उन्नत स्वास्थ्य सेवाएं और स्वच्छ वातावरण।

उच्च शिक्षा में सीमित सीटें, कॉलेजों में आधुनिक लैब, कार्यशालाएं और शोध सुविधाओं की कमी।

वैश्विक प्रतिस्पर्धा में भारतीय विश्वविद्यालयों का पिछड़ना।

भारत में टैक्स की अधिकतम दरों के मुकाबले विकसित देशों में टैक्स दरों का नगण्य अथवा बिल्कुल कम होना।

प्रतिभा पलायन से मिलने वाले आंशिक लाभ

वैश्विक नेतृत्व में प्रवासी भारतीय समुदाय ने पिछले कुछ दशकों से अपनी सफलता का परचम लहराया है। इससे विश्व भर में भारत की छवि मजबूत हुई है। भारतीयों के विदेश पलायन से घरेलू नौकरी बाज़ारों में प्रतिस्पर्धा कम होती है। विदेशों में प्रवासी भारतीयों की लॉबिंग से द्विपक्षीय संबंध मजबूत होते हैं। विदेशों से स्वदेश लौटने वाले प्रवासी यहां अपनी विशेषज्ञता लाते हैं, जिससे स्टार्टअप, उद्योगों,  शोध एवं विकास से जुड़े कामों को बढ़ावा मिलता है।

प्रवासी भारतीयों द्वारा देश में धन भेजने के मामले में भारत विश्व में पहले पायदान पर है। प्रवासी भारतीय समुदाय से भारत को तकरीबन 70 अरब डॉलर का धन प्राप्त होता है। यह धन भारत के जीडीपी का तकरीबन साढ़े तीन फीसदी है।

यह सच है कि पिछले दस वर्षों में भारत से तकरीबन 25 नागरिकों ने विदेश पलायन किया है। इस पलायन से तकरीबन 20 लाख करोड़ रुपए की आर्थिक क्षति हुई है। यदि इस नुकसान बात करें तो अबतक कम से कम दस हजार नए अस्पताल बन सकते थे, या फिर 50 हजार से अधिक स्कूलों को अपग्रेड किया जा सकता था। इतना नहीं,  कम से कम देश के प्रत्येक गांव को डिजिटल इंडिया का हिस्सा बनाया जा सकता है। भारतीय नागरिकों का विदेश पलायन कैसे रूकेगा, यह गहन चिन्तन का विषय है।

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