
जम्मू-कश्मीर के श्रीनगर जिले में स्थित गोपाद्रि पर्वत पर स्थित एक अति प्राचीन शिव मंदिर हैं, जो ‘शंकराचार्य मंदिर’ के नाम से विख्यात है। कश्मीर के सबसे पुराने मंदिरों में से एक यह शिव मंदिर ‘ज्येष्ठेश्वर मंदिर’ के नाम से भी लोकप्रिय है। श्रीनगर के इस प्रख्यात शिव मंदिर में आदि गुरु शंकराचार्य से लेकर श्री अरविन्दो, विनोवा भावे सहित देश की अन्य कई महान हस्तियों का आगमन हो चुका है।
पत्थरों से निर्मित शंकराचार्य मंदिर से श्रीनगर शहर और डल झील का मनोरम दृश्य दिखाई देता है, जिससे विदेशी पर्यटक इसकी तरफ आकर्षित होते हैं। मंदिर की सीढ़ियों पर मुगल शासक शाहजहां से जुड़े दो शिलालेख फारसी भाषा में उत्कीर्ण हैं। ऐसे में यह जानने के लिए कि इस अति प्राचीन शिव मंदिर में आदि गुरु शंकराचार्य क्यों ठहरे थे और मुगल शासक शाहजहां का इस मंदिर से क्या कनेक्शन है? इस रोचक स्टोरी को अवश्य पढ़ें।
शंकराचार्य मंदिर को किसने बनवाया?
कश्मीर के सबसे पुराने हिन्दू मंदिरों में से एक भगवान शिव को समर्पित यह मंदिर ‘शंकराचार्य मंदिर’ और ‘ज्येष्ठेश्वर मंदिर’ के नाम से विख्यात है। ज़बरवन पर्वत श्रृंखला (Zabarwan Range) के गोपाद्रि पहाड़ी (तख्त-ए-सुलेमान पहाड़ी) पर स्थित इस शिव मंदिर का निर्माण राजा गोपादित्य ने 368-371 ईसा पूर्व में करवाया था। कल्हण की राजतरंगिणी के मुताबिक, इस मंदिर का निर्माण 220 ईसा पूर्व सम्राट अशोक के बेटे जलोका ने करवाया था।
मुगल इतिहासकार अबुल फ़ज़ल के मुताबिक, “कार्कोट राजवंश के राजा ललितादित्य मुक्तापीड ने शंकराचार्य मंदिर की मरम्मत में काफी सहायता की थी।” इसके अतिरिक्त 15वीं शताब्दी में जब भूकम्प से मंदिर का गुम्बद क्षतिग्रस्त हो गया था, तब उसकी मरम्मत ‘कश्मीर का अकबर’ कहे जाने वाले सुल्तान ‘जैन-उल-आबेदीन’ ने करवाई।
सिख गर्वनर शेख गुलाम मोहिउद्दीन ने भी साल 1836-41 में गुम्बद का जीर्णोद्धार करवाया था। गर्भगृह में काले रंग के शिवलिंगम की स्थापना महाराजा रणबीर सिंह ने 19वीं शताब्दी के आखिर में की थी। कश्मीर के महाराजा गुलाब सिंह ने भी शंकराचार्य मंदिर तक पंहुचने के लिए सीढ़ियों का निर्माण करवाया था।
साल 1925 में मैसूर के महाराजा कश्मीर आए और उन्होंने बिजली की व्यवस्था की और मंदिर के शीर्ष पर सर्च लाइट लगवाई। यद्यपि मंदिर के बाहर लगे एक बोर्ड के मुताबिक, इस मंदिर का निर्माण पाण्डवों ने करवाया था। जानकारी के लिए बता दें कि शंकराचार्य मंदिर और उसकी समस्त भूमि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के अधीन संरक्षित है।
शंकराचार्य मंदिर की वास्तुकला .
शंकराचार्य मंदिर समुद्र तल से 1,000 फीट (300 मीटर) की ऊंचाई पर स्थित है। महाशिवरात्रि के दिन यह शिव मंदिर कश्मीरी हिंन्दुओं के लिए एक प्रमुख तीर्थस्थल है। पत्थरों से निर्मित शंकराचार्य मंदिर अष्टकोणीय ऊंचे चबूतरे पर स्थित है।
मंदिर तक पहुंचने वाली सीढ़ियां पूर्व निर्मित हैं, जो सम्भवत: पूर्व की रही होंगी जिसे राजा गोपादित्य से जोड़ा जाता है। मंदिर से जुड़ी अन्य संरचनाएं बाद की तिथि की है। मंदिर तकरीबन 30 फीट ऊंचा है, मंदिर का गर्भगृह गोलाकार है जिसमें एक विशाल शिवलिंग स्थापित है।
मंदिर में एक कक्ष है जो अंदर से गोलाकार और बाहर से चौकोर है जिसके दोनों ओर दो उभरे हुए पहलू हैं। उत्तर की ओर निचले स्तर पर एक कक्ष और दक्षिण-पूर्व की ओर एक तालाब भी है। धर्मार्थ ट्रस्ट की तरफ से साधु-संतों के निवास के लिए दो छोटे आश्रय स्थल बनाए गए हैं।
सीढ़ियों पर उत्कीर्ण है मुगल शासक शाहजहां का नाम
शंकराचार्य मंदिर के मुख्य द्वार से बाग तक पहुंचने के लिए 244 सीढ़ियां और मंदिर के गर्भगृह तक पहुंचने के लिए 30 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं। शंकराचार्य मंदिर की दो पार्श्व दीवारों से घिरी सीढ़ियों पर फारसी भाषा में दो शिलालेख उत्कीर्ण हैं।
इसमें से एक शिलालेख पर 1659 ई. उत्कीर्ण है, एक अन्य शिलालेख के मुताबिक मंदिर के छत और स्तम्भों का निर्माण 1644 ई. में शाहजहां द्वारा बनवाए गए मालूम होते हैं। गुम्बादाकर छत पत्थर की क्षैतिज पट्टियों से निर्मित है। मंदिर की वर्तमान संरचना को देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि यह सम्भवत: छठीं अथवा सातवीं शताब्दी में बना है।
इसी शिव मंदिर में ठहरे थे आदि गुरु शंकराचार्य
कश्मीर में सनातन तथा वेदों की पुर्नस्थापना के लिए आदि गुरु शंकराचार्य 8वीं सदी में यहां आए थे और इसी शिव मंदिर मंदिर के गर्भगृह के पास छोटे-छोटे पत्थरों से निर्मित एक कमरे में ठहरे थे। विद्वानों का मानना है कि आदि शंकराचार्य ने कश्मीर के इसी शिव मंदिर में अपने प्रसिद्ध संस्कृत ग्रन्थ ‘सौंदर्य लहरी’ की रचना की थी।
साल 1961 में द्वारकापीठम् के शंकराचार्य ने इस शिव मंदिर में आदि गुरू शंकराचार्य की एक मूर्ति स्थापित करवाई। यही वजह है कि इस मंदिर को शंकराचार्य मंदिर कहा जाता है। साल 1903 में महान दार्शनिक तथा संत श्री अरबिंदो तथा 1959 ई. में महान स्वतंत्रता सेनानी विनोबा भावे भी शंकराचार्य मंदिर आए। इसके अतिरिक्त भारत की कई अन्य महान हस्तियां मंदिर परिक्षेत्र का दौरा कर चुकी हैं।
शंकराचार्य मंदिर से दिखता है श्रीनगर का मनोरम दृश्य
विभिन्न प्रकार की वनस्पतितियों से युक्त गोपाद्रि पहाड़ी की चोटी से ब्रिटिश लेखक जस्टिन हार्डी ने श्रीनगर के डलझील में 1350 से अधिक नावों की गिनती की थी। शंकराचार्य मंदिर से श्रीनगर शहर सहित डल झील, झेलम तथा हरि पर्वत का मनोरम दृश्य नजर आता है।
शंकराचार्य मंदिर की कहानियां और फिलोसफी विदेशी पर्यटकों को अपनी तरफ खूब आकर्षित करती हैं, यही वजह है कि ताइवान, जापान, सिंगापुर सहित यूरोपीय देशों के पर्यटक यहां आते हैं। मंदिर की सुरक्षा की जिम्मेदारी सीआरपीएफ की एक बटालियन के जिम्मे है।
शंकराचार्य मंदिर तक पहुंचने के रास्ते
यदि आप भी शंकराचार्य मंदिर की यात्रा को सुखद बनाना चाहते हैं तो निम्नलिखित जानकारियां आपके लिए वरदान साबित हो सकती हैं। शंकराचार्य मंदिर की यात्रा के लिए मई से लेकर सितम्बर महीने तक का समय उपयुक्त माना गया है क्योंकि इन दिनों मौसम काफी सुहावना रहता है। अन्यथा श्रीनगर में बर्फबारी बहुत होती है। श्रीनगर के शेख उल आलम अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे (श्रीनगर अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा) और बस स्टैंड से शंकराचार्य मंदिर की दूरी तकरीबन 19 किमी. है।
चूंकि शंकराचार्य मंदिर तक पहुंचने के लिए कोई भी सार्वजनिक परिवहन सेवा उपलब्ध नहीं है। ऐसे में मंदिर जाने के लिए आपको कोई निजी वाहन सेवा जैसे- कैब, टैक्सी आदि बुक करनी होगी।
मंदिर परिसर तक पहुँचने के लिए तकरीबन 244 सीढ़ियाँ चढ़ने के लिए तैयार रहें। यद्यपि यह चढ़ाई थकाने वाली हो सकती है परन्तु यह एक रोमांचक अनुभव प्रदान करती है। शंकराचार्य मंदिर के अन्दर कैमरा अथवा सेलफोन ले जाना वर्जित है। शंकराचार्य मंदिर का द्वार हर रोज सुबह सात बजे से शाम आठ बजे तक खुला रहता है। हां, इस बात का विशेष ध्यान रखें कि वाहन पार्किंग की सुविधा शाम पांच बजे समाप्त हो जाती है।
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