जयानक ने अपने ग्रन्थ पृथ्वीराज विजय में चाहमान शब्द के प्रत्येक अक्षर की व्याख्या कुछ इस प्रकार से की है, जैसे- ‘चा’ से चाप, ‘ह’ से हरि, ‘मा’ से मान और ‘न’ से नय/नीति होता है अर्थात वह शासक जो धनुर्विद्या में निपुण, भागवत धर्म को मानने वाला, अतिथि को मान देने वाला और नीतिवान हो। ये सभी विशेषताएं चौहान वंश के सबसे प्रतापी शासक पृथ्वीराज तृतीय में बचपन से ही विद्यमान थी। पृथ्वीराज चौहान को भारतीय इतिहास में दलपूंगल (विश्वविजेता) व रायपिथौरा के नाम से भी जाना जाता है।
जानकारी के लिए बता दें कि दिल्ली के शासक अनंगपाल तोमर की पुत्री कर्पूरी देवी का विवाह अर्णोराज के पुत्र सोमेश्वर के साथ संपन्न हुआ। कर्पूरी देवी से 1166 ई. में पृथ्वीराज तृतीय का जन्म हुआ। 1177 ई. में सोमेश्वर के निधन के उपरान्त 11 वर्ष की अवस्था में पृथ्वीराज तृतीय अजमेर का शासक बना। हांलाकि पृथ्वीराज के वयस्क होने तक शासन की समस्त शक्तियां उसकी मां कर्पूरीदेवी के हाथों में केन्द्रित रहीं। डॉ. गोपीनाथ शर्मा के मुताबिक 1178 ई. में पृथ्वीराज चौहान ने शासन का कार्यभार स्वयं अपने हाथ में ले लिया था।
शासन का कार्यभार संभालते ही पृथ्वीराज चौहान को आंतरिक और बाह्य संघर्षों का सामना करना पड़ा। उसने सबसे पहले चौहान वंश के दो विद्रोहियों अपरगांग्य और नागार्जुन का दमन किया। सतलज प्रदेश से आकर गुड़गांव और हिसार के क्षेत्रों में निवास करने वाले भण्डानक भरतपुर, अलवर व मथुरा के क्षेत्र में अपना प्रभाव स्थापित करने का प्रयास कर रहे थे, ऐसे में पृथ्वीराज चौहान ने साल 1182 ई. में सैनिक कार्रवाई कर उनका कठोरता से दमन कर दिया।
1182 ई. में ही पृथ्वीराज ने महोबा विजय की तथा लंबे समय से चले आ रहे चालुक्य-चौहान संघर्ष के बाद 1184 ई. में नागौर युद्ध के दौरान जग्गदेव परिहार (भीमदेव चालुक्य का मंत्री व सेनापति) के प्रयत्न से दोनों राज्यों के बीच सन्धि हो गई। कन्नौज राज्य का शासक जयचन्द जो पृथ्वीराज का मौसेरा भाई था, वह भी अपना राज्य विस्तार कर दिल्ली का स्वामी बनना चाहता था, जिससे पृथ्वीराज और जयचन्द के बीच वैमनस्यता बढ़ चुकी थी। इसी बीच पृथ्वीराज चौहान ने जयचंद की पुत्री संयोगिता का अपहरण कर गंधर्व विवाह कर लिया, जिससे चौहानों तथा गहड़वालों के बीच कटुता और ज्यादा बढ़ गई। हांलाकि पृथ्वीराज चौहान के उपरोक्त विजयों के पश्चात दिल्ली से अजमेर तक एकछत्र शासन स्थापित हो चुका था, फलस्वरूप उसकी सैनिक तथा आर्थिक स्थिति भी सुदृढ़ हो चुकी थी।
तुर्क आक्रमणकारी मुहम्मद गोरी और पृथ्वीराज के बीच संघर्ष
पृथ्वीराज चौहान को जिस मजबूत आक्रमणकारी का सामना करना पड़ा, उसका नाम था मुहम्मद गोरी। तुर्क आक्रमणकारी मुहम्मद गोरी गजनी शासक था, जिसके द्वारा पंजाब पर आधिपत्य स्थापित करते ही उसके राज्य की सीमाएं दिल्ली और अजमेर के शासक पृथ्वीराज तृतीय की सीमाओं से मिलने लगीं। इस नवीन राजनीतिक स्थिति ने चौहान-तुर्क संघर्ष को जन्म दिया।
विभिन्न ऐतिहासिक ग्रन्थों में पृथ्वीराज चौहान और मुहम्मद गोरी के बीच हुए युद्धों की संख्या काफी बढ़ा-चढ़ाकर दी गई है। बतौर उदाहरण- पृथ्वीराज रासो में दोनों के मध्य 21 मुठभेड़ों का उल्लेख है, जबकि हम्मीर महाकाव्य में पृथ्वीराज के द्वारा गोरी को सात बार पराजित करने का उल्लेख मिलता है। वहीं सुर्जन चरित्र में 21 बार और प्रबंध चिन्तामणि में 23 बार पराजित करने का उल्लेख है। हांलाकि भारतीय इतिहास में मुहम्मद गोरी और पृथ्वीराज चौहान के बीच एक ही वर्ष के अन्तराल में दो निर्णायक युद्ध लड़े गए, जो तराइन के युद्ध के नाम से विख्यात हैं।
गोरी ने सीमावर्ती किले भटिण्डा पर विजय प्राप्त कर ली, गोरी जब वापस जाने की तैयारी कर रहा था तभी उसे सूचना मिली कि पृथ्वीराज चौहान एक बड़ी सेना लेकर भटिण्डा को जीतने के लिए आगे बढ़ रहा था। 1191 ई. में भटिण्डा के निकट तराइन का प्रथम युद्ध हुआ। तराइन के प्रथम युद्ध में मुहम्मद गोरी को अपमानजनक हार का सामना करना पड़ा। विजय के आवेश में पृथ्वीराज की सेना ने भागती हुई तुर्क सेना का पीछा नहीं किया। हांलाकि कई इतिहासकार इसे पृथ्वीराज चौहान की उदारता मानते हैं, परन्तु यह उसकी महान भूल थी।
मुहम्मद गोरी इस हार से काफी दुखी हुआ, इसलिए वह एक वर्ष तक सैनिक एकत्र करने व आक्रमण करने की तैयारी में जुटा रहा। आखिरकार लाहौर और मुल्तान होते हुए गोरी एक बार फिर से 1192 ई. में तराइन के मैदान में आ पहुंचा जहां उसे ठीक एक वर्ष पहले करारी हार मिली थी।
हसन निजामी लिखता है कि गोरी जब लाहौर पहुंचा तो उसने पृथ्वीराज के पास एक संदेश भिजवाया कि “वह इस्लाम धर्म स्वीकार कर ले या फिर गोरी की आधीनता स्वीकार कर ले।” पृथ्वीराज ने उसे यह कहलवा भेजा कि “उसे अपने देश लौट जाना चाहिए, अन्यथा उसकी भेंट युद्ध स्थल में होगी।” ऐसे में इस बार गोरी ने पृथ्वीराज के साथ छल करने का निश्चत कर लिया। मुहम्मद गोरी ने इस बार अपने दूत के जरिए संदेश भिजवाया कि “मैं तो अपने भाई का सेनापति हूं और युद्ध की अपेक्षा सन्धि को अच्छा समझता हूं। इसलिए ज्यों ही उसका आदेश प्राप्त होगा, मैं गजनी वापस लौट जाऊँगा।” अत: पृथ्वीराज चौहान ने गोरी का विश्वास कर लिया और उसकी सेना आराम करने लग गई।
एक तरफ पृथ्वीराज की सेना सन्धि के भ्रम में रातभर आराम करती रही वहीं दूसरी तरफ मुहम्मद गोरी ने 40 हजार की अश्वारोही सेना को दस-दस हजार की चार टुकड़ियों में बांटकर पृथ्वीराज पर चारो दिशाओं से आक्रमण करने का आदेश दे दिया। इतना ही नहीं मुहम्मद गोरी ने पृथ्वीराज के सैनिकों में भ्रम उत्पन्न करने के लिए कुछ पैदल सैनिकों को रातभर अपने तम्बूओं के बाहर आग जलाते रहने का आदेश दिया ताकि शत्रु यह समझे कि मुस्लिम सैनिक अपने शिविर में ही हैं।
गोरी अपनी सेना लेकर रातभर चला और पृथ्वीराज की सेना के बिल्कुल करीब पहुंच गया और सुबह होते ही चारों तरफ से आक्रमण किया। पृथ्वीराज ने हाथी पर बैठकर अपने सैनिकों की स्थिति सम्भालने तथा अनुशासन स्थापित करने की कोशिश की लेकिन स्थिति प्रतिकूल होते ही घोड़े पर सवार हो गया और शत्रु का मुकाबला करने लगा। दिन के तीसरे प्रहर तक जब चौहान की सेना थककर चूर हो गई तब गोरी ने तीव्र शक्ति के साथ राजपूतों पर आक्रमण किया। इस अन्तिम और भीषण प्रहार को राजपूत नहीं झेल पाए और पृथ्वीराज घोड़े पर बैठकर युद्ध भूमि से भागा लेकिन सिरसा हरियाणा राज्य के पास पकड़ा गया और कैद कर लिया गया। इतिहास का यही वह निर्णायक मोड़ है, जहां से पृथ्वीराज चौहान के अन्त को लेकर विभिन्न ऐतिहासिक साक्ष्य सामने आते हैं।
पृथ्वीराज चौहान के अन्त से जुड़े ऐतिहासिक साक्ष्य-
पृथ्वीराज चौहान के अन्त से जुड़ा जो सबसे अधिक चर्चित और लोकप्रिय विवरण है, उसका वर्णन पृथ्वीराज के मित्र, राजकवि और सामंत चन्दवरदाई द्वारा लिखित ग्रन्थ पृथ्वीराज रासो में मिलता है। पृथ्वीराज रासो के मुताबिक, मुहम्मद गोरी पृथ्वीराज चौहान को बन्दी बनाकर अपने साथ गजनी ले गया। पृथ्वीराज जब गोरी के दरबार में पहुंचा तब मुहम्मद गोरी ने उसको अपनी निगाहें नीचे झुकाने के लिए कहा। पृथ्वीराज चौहान ने जब ऐसा करने से इनकार कर दिया तो गोरी ने उसकी आंखें फोड़वा दी।
उसी समय पृथ्वीराज का मित्र चन्दवरदाई फकीर के वेश में उससे मिलने गजनी पहुंचा। लेकिन जब उसे यह पता चला तो वह काफी दुखी हुआ। चंदवरदाई सीधे मुहम्मद गोरी के पास पहुंचा और उसने कहा कि पृथ्वीराज चौहान शब्दभेदी बाण चलाने में निपुण है। अत: आप उसके शब्द भेदी बाण चलाने का प्रदर्शन देखें। चंदवरदाई को पृथ्वीराज से मिलवाया गया। अन्धा हो चुका पृथ्वीराज चंदवरदाई को उसकी आवाज से ही पहचान गया और शब्द भेदी बाण चलाने के लिए तैयार हो गया।
पृथ्वीराज चौहान के शब्दभेदी बाण के प्रदर्शन के लिए दरबार लगाया गया, जिसमें चन्दवरदाई ने एक दोहा बोला-
चार बांस चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण।
ता उपर सुल्तान है, मत चुको चौहान।।
अर्थात् चार बांस, चौबीस गज और आठ अंगुल जितनी दूरी के ऊपर सुल्तान बैठा है, इसलिए चौहान चूकना नहीं, अपने लक्ष्य को हासिल करो।इस प्रकार पृथ्वीराज चौहान ने शब्द भेदी बाण के द्वारा मुहम्मद गोरी को मार गिराया। इसके बाद पृथ्वीराज चौहान तथा चन्दवरदाई ने कटार से एक-दूसरे को समाप्त कर दिया।
जबकि हम्मीर महाकाव्य में पृथ्वीराज चौहान को युद्ध में कैद किए जाने के बाद मुहम्मद गोरी द्वारा उसकी हत्या करवाने का उल्लेख है। वहीं विरूद विध्वंस में तराईन के द्वितीय युद्ध में पृथ्वीराज चौहान के मारे जाने का वर्णन है।
वहीं हसन निजामी लिखता है कि “पृथ्वीराज चौहान को कैद कर लिया गया था, लेकिन जब वह सुल्तान के विरुद्ध षड्यंत्र करता हुआ पाया गया तब उसको मरवा दिया गया।”
1192 ई. के चौहान सिक्कों पर एक तरफ पृथ्वीराज चौहान तथा दूसरी तरफ मुहम्मद बिन साम का नाम उत्कीर्ण मिलता है, जो इस बात का द्योतक है कि तराइन के द्वितीय युद्ध के बाद पृथ्वीराज चौहान को गजनी नहीं ले जाया गया था। मुहम्मद गोरी द्वारा पृथ्वीराज के बेटे गोविन्दराज को आश्रित शासक बनाना भी इसी विचार का अनुमोदन करता है।
पृथ्वीराज चौहान तथा मुहम्मद गोरी के संयुक्त सिक्कों को आधार मानकर डॉ. दशरथ शर्मा औैर डॉ. गोपीनाथ शर्मा लिखते हैं कि सम्भवत: पृथ्वीराज चौहान को अजमेर लाया गया और उसे सुल्तान मुहम्मद गोरी की अधीनता में शासन करने को कहा गया,किन्तु इस असम्मानजनक स्थिति में उसने सुल्तान गोरी के विरुद्ध विद्रोह करने का षड्यंत्र रचा तो उसे मृत्यु दंड दे दिया गया।
एक महत्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि 15 मार्च 1206 ई. को सिन्धु नदी के तट पर दमयक नामक स्थान पर शाम को नमाज पढ़ते हुए मुहम्मद गोरी पर कुछ व्यक्तियों ने अचानक हमला करके उसकी हत्या कर दी थी। यह घटना पृथ्वीराज चौहान के मृत्यु के कई वर्षों बाद की है, अत: पृथ्वीराज चौहान द्वारा शब्द भेदी बाण चलाकर मुहम्मद गोरी का वध करने की घटना की पुष्टि किसी भी प्रकार से नहीं होती है।