सरदार वल्लभभाई पटेल कभी नहीं चाहते थे कि दिल्ली प्रवास के दौरान उनका कोई भी रिश्तेदार उनसे सम्पर्क करे। दरअसल वह नहीं चाहते थे कि किसी भी पार्टी का नेता अथवा कोई शख्स उनके नाम का गलत दुरूपयोग करे। सरदार पटेल राजनीति में वंशवाद के घोर विरोधी थे।आपको जानकारी के लिए बता दें कि सरदार पटेल की बड़ी बेटी का नाम मणिबेन पटेल तथा छोटे बेटे का नाम दयाभाई पटेल था।
मणिबेन का जन्म 1903 ईं में हुआ था वहीं दयाभाई उम्र में मणिबेन से महज तीन साल छोटे थे।मणिबेन और दयाभाई के बीच पत्राचार अंग्रेज़ी में होता था क्योंकि, दोनों गुजराती लिख-पढ़ नहीं सकते थे, खादी के कपड़े पहने और सीधी सी दिखने वाली मणिबेन की तस्वीरों को देखकर शायद ही इसकी कल्पना की जा सकती है।
मणिबेन पटेल ने ‘असहयोग आंदोलन’ और ‘नमक सत्याग्रह’ में क्रांतिकारियों के साथ सहभागिता की इसलिए उन्हें लंबे समय तक जेल में भी रहना पड़ा था। यहां तक कि उन्होंने ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ में भाग लिया और 1942-1945 तक जेल में रहीं। मणिबेन जब तक जीवित रहीं अपने पिता के पदचिन्हों पर ही चलती रहीं। मणिबेन का देहावसान 1988 ई. में हुआ, आजीवन अविवाहित रहने वाली मणिबेन अपने पिता सरदार पटेल के जीवित रहने तक उनकी निरंतर सेवा करती रहीं। मणिबेन अपने पिता वल्लभभाई पटेल को 'बापू' और महात्मा गांधी को 'बापूजी' कहती थीं। यहां तक कि मणिबेन ने‘स्वतंत्रता संग्राम’ और अपने पिता के जीवन पर संस्मरण भी लिखे।
महात्मा गांधी का सरदार पटेल को पत्र
महात्मा गांधी ने साल 1927 में सरदार पटेल को एक पत्र लिखा, जिसमें उन्होंने उल्लेख किया कि मैंने बहुत पूछताछ की लेकिन मणिबेन का इराद विवाह करने का नहीं है। हमें उसके फैसले का सम्मान करना चाहिए तथा उसे प्रोत्साहित करना चाहिए। आप मणिबेन की चिन्ता छोड़ दें क्योंकि मैं आजीवन मणिबेन की चिंता करता रहूंगा।
सरदार पटेल के अंतिम क्षण
मणिबेन ने अपने पिता सरदार पटेल के आखिरी क्षणों का बहुत ही हृदय विदारक उल्लेख किया है। मणिबेन लिखती हैं कि “सरदार पटेल अपने मृत्यु की सुबह दोनों पैरों पर हाथ रखकर सीधे बैठे मुझे देख रहे थे। मणिबेन इस बात से संतुष्ट थी कि उनके पिता अपने अंतिम क्षणों में भी खुद में नहीं, बल्कि हैदराबाद और कश्मीर की चिंता में उलझे थे।”
मणिबेन पटेल का राजनीतिक सफर
सरदार पटेल की मौत के दो साल बाद हुए 1952 के आमचुनाव में खेड़ा (दक्षिण) सीट से मणिबेन ने बतौर कांग्रेस उम्मीदवार जीत दर्ज की। इसके बाद दूसरे लोकसभा चुनाव में वह आणंद सीट सांसद बनीं। महागुजरात आंदोलन के दौरान मणिबेन ने आणंद सीट से एक निर्दलीय उम्मीदवार के मुकाबले 22 हजार से अधिक मतों से चुनाव हार गईं। लोकसभा चुनाव हारने के बाद कांग्रेस ने मणिबेन को 1964 में राज्यसभा भेजा और वह 1970 तक सांसद बनी रहीं। 1973 में हुए लोकसभा उपचुनाव में मणिबेन ने साबरकांठा सीट से जीत हासिल की। आपातकाल के बाद 1977 के चुनाव में बतौर भारतीय लोक दल उम्मीदवार मणिबेन ने मेहसाणा सीट से जीत हासिल की थी।
इस प्रकार लगभग तीन दशकों तक मणिबेन भारतीय राजनीति में सक्रिय रहीं। हांलाकि उनके जीवन के आखिरी दिन कुछ बहुत अच्छे नहीं थे। आखिरी सालों में मणिबेन की आंख काफी कमजोर हो गई। अहमदाबाद की सड़कों पर वह पैदल अकेले चलती हुई दिख जाती थीं। आंखें कमजोर होने की वजह से एक दो बार उनके लड़खड़ाकर गिरने की भी खबरें आईं।
पं. नेहरू से मणिबेन की आखिरी मुलाकात का रोचक किस्सा
हैरानी की बात यह है कि सरदार पटेल के निधन के बाद उनकी यह बेटी भारतीय राजनीति में हाशिए पर धकेल दी गईं। आज हम आपको एक ऐसी ही घटना के बारे में बताने जा रहे हैं जिससे साबित होता है कि सरदार के निधन के बाद असहाय हो चुकी मणिबेन को कांग्रेस पार्टी ने किस प्रकार से अकेला छोड़ दिया था। अमूल के संस्थापक कूरियन वर्गीज ने अपनी किताब में लिखा है कि “यह उन दिनों की बात है जब वे आणंद में थे। ऐसे में उनकी मुलाकात अक्सर मणिबेन से हो जाया करती थी। तब मणिबेन अक्सर सामाजिक कार्यों में लगी रहती थीं।
किताब में उल्लेखित है कि मणिबेन ने कूरियन वर्गीज को बताया था कि सरदार पटेल के निधन (15 दिसम्बर 1950) के बाद वे एक खाताबुक और एक बैग लेकर पं. नेहरू से मिलने चली गईं। पं. नेहरू को इसे सौंप भी दिया। दरअसल सरदार पटेल का निर्देश था कि उनके निधन के बाद इसे केवल पं. नेहरू को सौंपा जाए। दरअसल उस बैग में 35 लाख रूपए थे और खाताबुक कांग्रेस पार्टी की थी। पं. नेहरू ने मणिबेन से इसे लिया और सिर्फ धन्यवाद कहा। इसके बाद मणिबेन इंतजार करती रहीं कि पं. नेहरू कुछ बोले लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। फिर कुछ देर के बाद मणिबेन वापस चली आईं।
कूरियन की किताब के मुताबिक पं. नेहरू से मणिबेन इस बात की उम्मीद कर रही थीं कि शायद वे उनसे पूछेंगे कि कैसे काम चला रही हूं। मुझे किसी मदद की जरूरत तो नहीं, लेकिन नेहरू ने ऐसा कुछ भी नहीं पूछा।” इस घटना से मणिबेन को बहुत हैरानी हुई थी। मणिबेन कहती हैं कि सरदार पटेल के निधन के बाद कांग्रेस के ज्यादातर दिग्गज नेता भी उनसे कन्नी काटने लगे थे जिनकी कभी उनके पिता ने मदद की थी।