ब्रिटीश ईस्ट इंडिया कम्पनी द्वारा बक्सर युद्ध जीतने के पश्चात इंग्लैण्ड का यह मत था कि जिस शख्स ने भारत में अंग्रेजी साम्राज्य की नींव रखी है, उसे ही साम्राज्य को सुदृढ़ बनाने के लिए दोबारा भेजा जाए। ऐसे में राबर्ट क्लाइव एक बार फिर से भारत में अंग्रेजी प्रदेशों का मुख्य सेनापति और गर्वनर बनाकर भेजा गया। मई, 1765 में क्लाइव अपना पदभार ग्रहण करने के लिए कलकत्ता पहुंचा।
क्लाइव ने भारत आकर देखा कि कम्पनी के कर्मचारी धन के लोभवश अवगुणों से जकड़ चुके थे, ईस्ट इंडिया कम्पनी का व्यापार लगभग ठप्प होने के कगार पर था और जनता पर अत्याचार हो रहे थे। इतना ही नहीं, समस्त उत्तर भारत में राजनीतिक प्रणाली अनिर्णयात्मक अवस्था में थी। बंगाल में प्रशासन नाम की चीज ही नहीं बची थी इसलिए उसने सबसे पहला कार्य यह किया कि कम्पनी से परास्त हुई शक्तियों के साथ संबंध सुनिश्चित करने की व्यवस्था की। इसके लिए उसने अवध के नवाब शुजाउद्दौला तथा मुगल बादशाह शाहआलम के साथ अलग-अलग सन्धियां की। दोनों ही सन्धियां इलाहाबाद की सन्धि के नाम से विख्यात हैं।
इलाहाबाद की सन्धि (अगस्त 1765 ई.)-
अवध के साथ सन्धि- राबर्ट क्लाइव ने अवध के नवाब शुजाउद्दौला से इलाहाबाद में मुलाकात की और एक सन्धि की जिसे इलाहाबाद की सन्धि कहा जाता है। शुजाउद्दौला के साथ सन्धि की शर्तें निम्नलिखित थीं-
— अवध के नवाब शुजाउद्दौला ने इलाहाबाद तथा कारा के जिले मुगल सम्राट शाहआलम को देने का वायदा किया।
— युद्ध क्षतिपूर्ति के रूप में अवध के नवाब ने 50 लाख रुपए देने का वचन दिया।
— चुनार के किले पर अंग्रेजों का आधिपत्य स्वीकार कर लिया गया।
— अवध में कम्पनी को बिना चुंगी दिए व्यापार करने का अधिकार मिला।
— गाजीपुर और बनारस की जागीर बलवन्त सिंह और उसके परिवार को पैतृक जागीर के रूप में मिली।
— अवध की सुरक्षा का भार अंग्रेजों ने खुद पर ले लिया, इसके लिए सेना का खर्च नवाब को देना था। इन सबके बदले अंग्रेजों ने अवध का राज्य नवाब शुजाउद्दौला को लौटा दिया।
बता दें कि यदि क्लाइव चाहता तो नवाब को अपदस्थ भी कर सकता था, ऐसा होने पर उसके मराठों के संरक्षण में चले जाने का भय था। यह बात कम्पनी के हित में नहीं होती, इसलिए क्लाइव ने अवध के नवाब को संधि में जकड़कर अपना मित्र और आश्रित दोनों ही बना लिया।
मुगल सम्राट शाहआलम के साथ सन्धि- इलाहाबाद की दूसरी सन्धि भगोड़े मुगल सम्राट शाहआलम के साथ सुनिश्चित हुई। इस सन्धि में क्लाइव ने कूटनीति और अपनी विवेक शक्ति का परिचय दिया। संधि के अनुसार, कारा और इलाहाबाद के जिले शाहआलम को मिले, इसके बदले में मुगल सम्राट ने बंगाल, बिहार और उड़ीसा की दीवानी स्थायी रूप से कम्पनी को सौंप दी। इस कार्य के एवज में कम्पनी ने मुगल सम्राट को 26 लाख रुपया वार्षिक देना स्वीकार किया। कम्पनी को हैदराबाद का उत्तरी क्षेत्र की जागीरदारी भी प्राप्त हो गई। अब शाहआलम बाध्य होकर इलाहाबाद में ही रहने को बाध्य हो गया। इस सन्धि के माध्यम से क्लाइव ने मुगल सम्राट शाहआलम को दया का पात्र और कम्पनी का आश्रित बना दिया। इसे क्लाइव की बड़ी उपलब्धियों में गिना जाता है।
महज मुखौटा बनकर रह गया बंगाल का नवाब-
फरवरी 1765 ई. में मीरजाफर की मौत हो गई, इसके पश्चात उसका नाबालिग पुत्र नजमुद्दौला बंगाल का नवाब बना। ब्रिटीश ईस्ट इंडिया कम्पनी ने नजमुद्दौला को इस शर्त पर नवाब बनाया कि वह सैनिक संरक्षण, विदेशी मामले, फौजदारी मामले कम्पनी को सौंप दे। इतना ही नहीं दीवानी संबंधी मामलों के लिए भी एक डिप्टी सूबेदार की नियुक्ति की गई जो कम्पनी के अधीनस्थ था। इस प्रकार बंगाल के प्रशासन पर कम्पनी का आधिपत्य कायम हो चुका था। क्लाइव चाहता तो नजमुद्दौला को अपदस्थ भी कर सकता था लेकिन उसने केवल मुखौटा बनाकर रखा और बंगाल के प्रबन्ध के लिए एक नई व्यवस्था लागू की।
बंगाल में द्वैध शासन व्यवस्था-
राबर्ट क्लाइव ने बंगाल में जिस नई शासन व्यवस्था की स्थापना की उसे दोहरा शासन अथवा द्वैध शासन कहा जाता है। इस व्यवस्था के मुताबिक, क्लाइव ने विदेशी व्यापार नीति तथा विदेशी व्यापार का प्रबन्ध कम्पनी के हाथों में सौंप दिया तथा लगान वसूलने और न्याय प्रणाली के लिए भारतीय पदाधिकारियों को नियुक्त किया गया। अर्थात क्लाइव ने बड़ी चालाकी से दीवानी संबंधी कार्यों का जिम्मा कम्पनी के नियंत्रण में रखा, इसके लिए दो उपदीवान, बंगाल के लिए मुहम्मद रजा खां तथा बिहार के लिए शिताब राय नियुक्त किए गए। इनके केन्द्रीय कार्यालय मुर्शिदाबाद और पटना में खोले गए। नवाब के जिम्मे केवल फौजदारी संबंधी कार्य छोड़े गए। बंगाल और बिहार से वसूल किए गए लगान से 26 लाख रुपए वार्षिक मुगल सम्राट को एवं 53 लाख रुपए निजामत कार्य के लिए नवाब को मिलना था। सेना के लिए भी बंगाल के नवाब को कम्पनी पर ही निर्भर रहना पड़ा। चूंकि नजीमुद्दौला नाबालिग था, इसलिए उस पर नियंत्रण रखने के लिए कंपनी ने मुहम्मद रजा खां को दीवान के पद पर नियुक्त किया, जो अंग्रेजों का विश्वासपात्र था। इस तरह बंगाल में दोहरी शासन व्यवस्था लागू हुई- कंपनी एवं नवाब की। इस प्रकार देखा जाए तो बंगाल प्रशासन की समस्त शक्ति कम्पनी के पास थी तथा भारतीय पदाधिकारी केवल बाहरी मुखौटा मात्र ही थे। बंगाल की द्वैध शासन व्यवस्था के अनुसार धन पर कम्पनी का पूरा अधिकार हो गया, किन्तु प्रजा के प्रति उसका कोई कर्तव्य नहीं था।
क्लाइव द्वारा बंगाल में द्वैध शासन व्यवस्था लागू करने की मुख्य वजह-
बंगाल की द्वैध शासन व्यवस्था के तहत समस्त शक्ति कंपनी के पास थी और नवाब के पास सत्ता केवल छाया मात्र ही थी। क्लाइव ने ब्रिटीश ईस्ट इंडिया कम्पनी के सलेक्ट कमेटी को पत्र में लिखा कि “यह नाम और छाया आवश्यक है तथा हमें इसे स्वीकार करना चाहिए।” इसके पक्ष में उसने निम्नलिखित कारण गिनाए-
— यदि कम्पनी प्रत्यक्ष रूप से बंगाल की राजनीतिक सत्ता अपने हाथों ले लेती है तो उसका असली चेहरा लोगों के सम्मुख आ जाएगा और संभव है सभी भारतीय इसके विरोध में एकत्र हो जाएं।
— सम्भव है फ्रांसीसी, डच, डेन तथा अन्य यूरोपीय कम्पनियां आसानी से ईस्ट इंडिया कम्पनी की सूबेदारी स्वीकार नहीं करेंगी अथवा कर आदि नहीं देंगी जो नवाब के फरमानों के अनुसार उन्हें देने होते थे।
— राजनीतिक सत्ता हाथ में लेने से इंग्लैण्ड तथा विदेशी शक्तियों के बीच कटुता आ जाती और संभव है ये सभी शक्तियां इंग्लैंड के खिलाफ एक मोर्चा खड़ा कर लें जैसा कि 1778-80 में अमेरिकी स्वतंत्रता संग्राम के दौरान हुआ था।
— क्लाइव ने इंग्लैंड में अधिकारियों को लिखा कि यदि हमारे पास तीन गुना भी प्रशासनिक अधिकारी हो तो भी वे इस कार्य के लिए पर्याप्त नहीं होंगे। शेष लोग भारतीय रीति-रिवाजों तथा भाषा से अनभिज्ञ हैं।
— कोर्ट आफ डायरेक्टर्स भी प्रदेश के स्थान पर धन में अधिक रूचि रखते थे। इनका कहना था कि समस्त प्रदेशों को हस्तगत करने से कम्पनी के व्यापार में बाधा पड़ने की संभावना थी।
— क्लाइव भी इस बात को भलीभांति जानता था कि यदि वह बंगाल की राजनीतिक सत्ता हाथ में लेता है तो अंग्रेजी संसद कम्पनी के कार्यों में हस्तक्षेप करना शुरू कर देगी।
बंगाल में द्वैध शासन व्यवस्था के दुष्परिणाम-
थोड़े समय के लिए द्वैध शासन व्यवस्था कंपनी के लिए फायदेमंद रही लेकिन कालान्तर में इसने बंगाल में अराजकता तथा भ्रान्ति फैला दी।
प्रशासनिक दुर्व्यवस्था- द्वैध शासन के कारण पूरे बंगाल में कानून और व्यवस्था ठप्प पड़ चुकी थी। ग्रामीण इलाकों में डाकूओं की लूटपाट जारी थी। बंगाल का नवाब नाममात्र का था, इसलिए पुलिस व्यवस्था भी पूर्णतया नष्ट हो चुकी थी। कम्पनी के कर्मचारी तथा नवाब के पदाधिकारी दोनों ही भ्रष्ट और अनुशासनहीन होकर जनता पर अत्याचार करने लगे थे। इस संबंध में कम्पनी के एक कर्मचारी रिचर्ड बेचर ने 24 मई 1769 को सिलेक्ट कमेटी को लिखे अपने पत्र में शिकायत की कि “जिस भी अंग्रेज के पास विवेक है, उसे यह सोचकर अवश्य दुख होगा कि कम्पनी को दीवानी मिलने के समय से इस देश के लोगों की दशा पहले से भी बुरी है और इसमें भी मुझे डर है कि बात निसन्देह ठीक है....यह सुन्दर देश जो अत्यन्त निरंकुश और स्वेच्छाचारी सरकार के अधीन भी समृद्ध था, अपने विनाश की तरफ बढ़ता चला जा रहा है।”
वहीं सन 1858 ई. में ब्रिटीश हाउस आफ कॉमन्ज में सर जार्ज कॉर्नवाल ने कहा था कि “मैं निश्चयपूर्वक यह कह सकता हूं कि 1765-84 तक ईस्ट इंडिया कम्पनी की सरकार से अधिक भ्रष्ट, झूठी और बुरी सरकार संसार के किसी भी सभ्य देश में नहीं थी।”
खेती-बारी चौपट- मुख्य रूप से चावल, जूट, तिल, तंबाकू औैर चाय का गढ़ बंगाल पूरी तरह से उजाड़ बन चुका था। प्रत्येक वर्ष किसानों को इतना अधिक लगान देना पड़ता था कि स्थायी रूप से किसानों की भूमि में अब कोई अभिरूचि नहीं रह गई थी। कम्पनी के एक कर्मचारी विलियम बोल्ट्स के मुताबिक गरीब किसानों को कभी-कभी अपने बच्चे भी बेचने पड़ जाते थे। कितने किसान अपनी भूमि छोड़कर पलायन कर गए तो कितने किसान डाकू बन गए। रिचर्ड बेयर ने कम्पनी के डायरेक्टर्स को पत्र लिखा था- “यह देश जब स्वेच्छारी शासकों के अधीन था तब हराभरा और लहलहाता प्रदेश था, लेकिन जब से कम्पनी को दीवानी मिली है, उजाड़ हो चुका है।”
बता दें कि 1770 में बंगाल में एक भीषण अकाल पड़ा जिससे जान-माल दोनों की बड़े पैमाने पर क्षति हुई। अकाल के दिनों में भी कम्पनी ने बड़ी तत्परता और निर्दयता से कर वसूले जिससे जनता को असहनीय कष्ट भोगने पड़े।
उद्योग-धन्धों का नष्ट होना- द्वैध शासन से पूर्व बंगाल में सूती और रेशमी वस्त्र, नील, जूट, शोरा, और नमक का उद्योग बेहतरीन स्थिति में था लेकिन 1765 ई. के बाद इन उद्योगों में जबरदस्त गिरावट देखने को मिली। बंगाल के कपड़ा उद्योग को कम्पनी ने जानबूझकर नष्ट कर दिया ताकि इंग्लैंड का वस्त्र व्यापार भारत में पनप सके। 1769 ई. में कम्पनी के डायरेक्टर्स ने अपने कर्मचारियों को आदेश दिए थे कि कच्चे सिल्क के उत्पादन को प्रोत्साहित करो तथा रेशमी कपड़ा बुनने को निरूत्साहित करो, रेशम का धागा लेपटने वालों को कम्पनी के लिए काम करने पर बाध्य किया जाता था।
ऐसे में कम्पनी ने देशी बुनकरों को इतना परेशान किया कि उन्होंने अपना पारम्पिरिक व्यवसाय छोड़कर कृषक, मजदूर, संन्यासी या फिर डाकू बन गए। कंपनी के संत्रास से बचने के लिए अनेक जुलाहों ने अपने अंगूठे तक कटवा लिए ताकि उन्हें कम्पनी के लिए कपड़े नहीं तैयार करने पड़े।
वाणिज्य-व्यापार का पतन- 1717 में फर्रूखसियर के शाही फरमान मिलने के बाद से ही बंगाल में अंग्रेजों को कर मुक्त व्यापार करने के अधिकार प्राप्त थे। कलकत्ता स्थित कम्पनी गर्वनर के आदेशानुसार अंग्रेजों का माल कहीं भी बिना रोकटोक के इधर-उधर जा सकता था। इस एकतरफा छूट के चलते जहां कम्पनी का व्यापार पर तकरीबन एकाधिकार हो गया वहीं भारतीय व्यापारियों से कम मूल्य पर माल खरीदकर उन्हें जबरदस्त नुकसान पहुंचाया। इस प्रकार लाखों व्यापारी निर्धन बन गए। इतना ही नहीं कम्पनी के कुछ कर्मचारी व्यक्तिगत व्यापार भी करने लगे जिससे उनकी आय में तो बढ़ोतरी हुई लेकिन ईस्ट इंडिया कम्पनी को इससे बहुत ज्यादा नुकसान झेलना पड़ा। कम्पनी की वित्तीय हालत इतनी खराब हो गई कि वह दिवालिएपन की स्थिति में पहुंच गई।
दूसरी गर्वनरी के दौरान बंगाल में क्लाइव के असैनिक तथा सैनिक सुधार
क्लाइव एक कृत संकल्प और साहसी व्यक्ति था। उसने अपने दूसरे कार्यकाल के दौरान बंगाल में कई असैनिक तथा सैनिक सुधार किए। उसने अपने इन प्रशासनिक सुधारों के जरिए कम्पनी के कर्मचारियों में व्याप्त भ्रष्टाचार और अनुशासनहीनता को दूर करने तथा सैनिक क्षमता बढ़ाने का प्रयास किया।
असैनिक सुधार-
- कम्पनी के कर्मचारी ईस्ट इंडिया कम्पनी को प्राप्त व्यापारिक सुविधाओं का दुरूपयोग करते थे। इसलिए क्लाइव ने कर्मचारियों के व्यक्तिगत व्यापार पर प्रतिबंध लगा दिया। उसने कर्मचारियों से प्रतिज्ञापत्र लिखवाए जिसमें उन्हें निजी व्यापार न करने की शपथ ली।
- ईस्ट इंडिया कम्पनी के कर्मचारी रिश्वत और उपहार लेने के अभ्यस्त हो चुके थे। इसलिए क्लाइव ने कर्मचारियों से एक प्रतिज्ञापत्र पर हस्ताक्षर करवाए कि वे किसी भी व्यक्ति से रिश्वत अथवा उपहार नहीं लेंगे। ऐसा करने से कम्पनी में रिश्वतखोरी की परम्परा बहुत हद तक कम हो गई।
- क्लाइव इस बात को अच्छी तरह से समझता था कि चूंकि कम्पनी के कर्मचारियों को कम वेतन मिलता था, इसलिए वे अपनी पर्याप्त आय के लिए रिश्वत और उपहार का सहारा लेते थे। इसके लिए क्लाइव ने कर्मचारियों के वेतन बढ़ोतरी का प्रस्ताव रखा जिसे संचालकों ने अस्वीकार कर दिया। परिणामस्वरूप कर्मचारियों की आय में बढ़ोतरी के लिए क्लाइव को दूसरा उपाय करना पड़ा।
- जो कर्मचारी काफी दिनों से बंगाल में नियुक्त थे, उन्हें उच्च पद दिए जाते थे। काफी दिनों से एक ही जगह काम करने के कारण उनके निहित स्वार्थ भी उत्पन्न हो चुके थे ऐसे में क्लाइव ने बंगाल के बहुत से कर्मचारियों को मद्रास भेज दिया और बंगाल में नए कर्मचारियों की नियुक्ति की। इससे बंगाल के प्रशासन में काफी हद तक सुधार देखने को मिला। हांलाकि क्लाइव को इस कार्य के लिए कर्मचारियों का गतिरोध झेलना पड़ा लेकिन उसने स्थिति पर नियंत्रण प्राप्त कर लिया।
- कम्पनी कर्मचारियों के निजी व्यापार पर प्रतिबंध लगाने के बाद क्षतिपूर्तिस्वरूप क्लाइव ने एक व्यापार समिति गठित की। इस समिति को नमक, सुपारी तथा तम्बाकू के व्यापार का एकाधिकार दिया गया। इस समिति को होने वाली आय को बतौर लाभांश कम्पनी के कर्मचारियों में उनके पद के अनुसार बांट देने का प्रावधान किया गया। हांलाकि कम्पनी संचालकों के विरोध के कारण 1768 में इस व्यापार समिति को भंग कर दिया गया।
सैनिक सुधार-
सैन्य संख्या में इजाफा-
क्लाइव ने एक तरफ जहां नवाब की सेना में कटौती की थी वहीं दूसरी तरफ कम्पनी की सेना में बढ़ोतरी की। कंपनी की सैनिक संख्या में बढ़ोतरी के बाद क्रमश: मुंगेर, पटना और इलाहाबाद में अंग्रेजी सेना की तैनाती की गई।
भत्ता व्यवस्था पर प्रतिबंध-
शुरूआत में बंगाल तथा बिहार की सीमा में तैनात कंपनी के सैनिकों को दोहरा भत्ता मिलता था। लेकिन कम्पनी के संचालकों के आदेश के बाद जनवरी 1766 ई. से केवल बंगाल और बिहार से बाहर काम करने वाले सैनिकों को छोड़कर अन्य सभी सैनिकों के दोहरे भत्ते बंद कर दिए गए। इससे झुब्ध होकर अनेक अधिकारियों ने त्यागपत्र दे दिया तथा कुछ ने क्लाइव के हत्या की योजना भी बनाई लेकिन इससे तनिक भी विचलित नहीं हुआ। आधुनिक भारत के इतिहास में इस श्वेत विद्रोह (White Mutiny ) कहा जाता है।
क्लाइव ने कुछ पदाधिकारियों का त्यागपत्र मंजूर कर उन्हें स्वदेश भेज दिया तथा कुछ को मद्रास भेज दिया गया। बहुत से अधिकारियों ने क्षमा याचना कर ली। इस प्रकार क्लाइव ने श्वेत विद्रोह विद्रोह को दबा दिया।
पेन्शन की व्यवस्था-
ईस्ट इंडिया कम्पनी से अवकाश प्राप्त कर्मचारियों तथा मृतकाश्रितों जैसे विधवाओं, बच्चों आदि को बहुत ही कष्ट उठाने पड़ते थे। इस वित्तिय कठिनाई से निजात दिलाने के लिए क्लाइव ने अपने नाम से एक फंड की स्थापना की। क्लाइव को मीरजाफर से जो 5 लाख रुपए मिले थे, उसी से उसने फंड की स्थापना की। इसी कोष से जरूरतमंद कर्मचारियों तथा उनके आश्रितों को वित्तीय सहायता प्रदान की जाती थी। इस नेक कार्य से क्लाइव को कम्पनी के कर्मचारियों की सहानुभूति भी प्राप्त हुई।
राबर्ट क्लाइव का मूल्यांकन-
भारत में ब्रिटीश साम्राज्य का वास्तविक संस्थापक क्लाइव को ही माना जाता है। उसने फ्रांसीसी गर्वनर डूप्ले को मात देने के साथ ही अकार्ट पर विजय प्राप्त की जिससे कर्नाटक में फ्रांसीसियों की पराजय सुनिश्चित हो सकी। प्लासी युद्ध में विजय के पश्चात उसने बंगाल में मीरजाफर के रूप में कठपुतली नवाब नियुक्त कर कम्पनी को पूरे उत्तरी भारत का स्वामी बना दिया। बंगाल विजय से न केवल कंपनी को पर्याप्त धन मिलना शुरू हो गया बल्कि इसी से दक्कन विजय भी सम्भव हो सका।
1765 में जब वह वापस दूसरी बार गर्वनर बनकर भारत आया तब उसने अवध के नवाब शुजाउद्दौला तथा मुगल सम्राट शाहआलम द्वितीय के साथ इलाहाबाद की सन्धि करके उन्हें कंपनी का आश्रित बनने पर मजबूर कर दिया। इलाहाबाद की सन्धि के जरिए कम्पनी का शासन बंगाल से लेकर इलाहाबाद तक हो गया।
हांलाकि ब्रिटीश संसद में क्लाइव पर अवैध ढंग से उपहार लेने के दोष लगे थे, इससे साबित होता है कि कुछ लोग क्लाइव की धन-लोलुपता और कुटिलता के भी आलोचक थे। इस संबंध में इतिहासकार के. एम. पन्निकर लिखते हैं कि 1765 से 1772 के बीच बंगाल में इतनी अव्यवस्था थी जैसे डाकूओं का राज्य हो, बंगाल को अविवेक रूप से लूटा गया। इस काल में अंग्रेजी साम्राज्य का सबसे भोंडा रूप देखने को मिला, इस दौर में बंगाल की जनता ने असहनीय कष्ट उठाए।
गौरतलब है कि क्लाइव के विरोधियों द्वारा उस पर जिस प्रकार से रिश्वत, भ्रष्टाचार आदि को लेकर अभियोग लगाया था, ठीक इसके विपरीत ब्रिटीश संसद ने क्लाइव के कार्यों की प्रशंसा करते हुए उसे इन सभी आरोपों से बरी कर दिया था। बावजूद इसके क्लाइव को भारत के लोगों की सहानुभूति कभी नहीं प्राप्त हो सकती क्योंकि इस देश में अंग्रेजी साम्राज्य की स्थापना में उसने छल-प्रपंच का जमकर इस्तेमाल किया था।
सम्भावित प्रश्न-
— बंगाल में दूसरी गर्वनरी के दौरान क्लाइव की प्रमुख उपलब्धियों का वर्णन कीजिए?
— क्लाइव द्वारा स्थापित बंगाल की द्वैध शासन व्यवस्था की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए?
— बंगाल में द्वैध शासन व्यवस्था के दुष्परिणामों पर प्रकाश डालिए?
— लार्ड क्लाइव के असैनिक तथा सैनिक सुधारों की विस्तार से चर्चा कीजिए?
— लार्ड क्लाइव के कार्यों का मूल्यांकन प्रस्तुत कीजिए?
— बंगाल के श्वेत विद्रोह पर टिप्पणी लिखिए?