26 जनवरी को समस्त भारतवासी 75वां गणतंत्र दिवस मनाएंगे। वैसे तो हर बुद्धिजीवी इस बात को भलीभांति जानता है कि 26 जनवरी 1950 को भारत का संविधान लागू हुआ था, तभी से प्रत्येक साल हमारा देश पूरे हर्षोल्लास और धूमधाम के साथ गणतंत्र दिवस मनाता है। परन्तु कई नागरिेकों के मन यह सवाल जरूर उठता होगा कि भारत का संविधान लागू करने के लिए आखिर में 26 जनवरी की तारीख ही क्यों चुनी गई? जी हां, ऐसा सोचना बिल्कुल लाजिमी है। आज इस स्टोरी में हम आपको भारतीय मुक्ति संग्राम के उस अध्याय की तरफ ले चलेंगे जिससे 26 जनवरी के तार जुड़े हैं।
दुनिया का सबसे बड़ा हस्तलिखित संविधान
भारत का संविधान दुनिया का सबसे बड़ा हाथ से लिखा हुआ संविधान है। भारतीय संविधान लिखने वाली सभा में 299 सदस्य थे जिसके अध्यक्ष डॉ. राजेन्द्र प्रसाद थे। संविधान सभा ने अपना काम 9 दिसंबर 1946 से शुरू किया। इसके बाद संविधान सभा ने संविधान निर्माण के समय कुल 114 दिन बैठक की। इसकी बैठकों में प्रेस और जनता को भाग लेने की आजादी थी। संविधान सभा ने 26 नवम्बर 1949 में अपना काम पूरा कर लिया यानि भारतीय संविधान को पूर्ण रूप से तैयार करने में 2 वर्ष, 11 माह, 18 दिन का समय लगा था।
26 जनवरी 1950 को लागू हुआ भारत का संविधान
संविधान सभा ने 26 नवम्बर 1949 को भारत का संविधान तैयार कर लिया था, लेकिन भारत के निर्माताओं को 26 जनवरी का इन्तजार था क्योंकि इसी तारीख को 1930 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने ‘पूर्ण स्वराज’ की मांग की थी और पूरे देश में तिरंगा झंडा लहराया गया था। इसीलिए 24 जनवरी 1950 को संविधान की दो हस्तलिखित प्रतिलिपियों पर हस्ताक्षर किए गए और इसके ठीक दो दिन बाद यानि 26 जनवरी 1950 को भारत में संविधान लागू हुआ। भारत का संविधान प्रत्येक भारतवासी को समानता, न्याय, और स्वतंत्रता के अधिकार प्रदान करने का माध्यम बन गया। आज देश के प्रत्येक नागरिक को अपनी बात पूरी स्वतंत्रता के साथ रखने का अधिकार है, यह भारतीय संविधान की ही देन है।
ऐतिहासिक लाहौर अधिवेशन (31 दिसम्बर 1929)
भारतीय मुक्ति संग्राम के दिनों में कांग्रेस का वार्षिक अधिवेशन 31 दिसम्बर 1929 को तत्कालीन पंजाब प्रांत की राजधानी लाहौर में हुआ। इस वार्षिक अधिवेशन में जवाहरलाल नेहरू को कांग्रेस अध्यक्ष बनाने में निर्णायक भूमिका गांधीजी की थी जिन्होंने जनसंघर्षों के संकटकालीन क्षणों में पं. नेहरू को यह महत्वपूर्ण दायित्व सौंपा था। दरअसल ‘पूर्ण स्वराज’ के विचार को देशभर में लोकप्रिय बनाने में पं. नेहरू की सर्वाधिक भूमिका रही थी। हांलाकि 18 प्रांतीय कांग्रेस समितियों में से सिर्फ तीन का समर्थन जवाहरलाल नेहरू को प्राप्त था लेकिन आन्दोलन में नौजवानों की शानदार सफलता को देखते हुए गांधीजी ने इसके लिए प्रयास किया तथा जवाहरलाल को अध्यक्ष बनवाने में सफल रहे।
आलोचकों का सामना करने के लिए गांधीजी ने कहा- “बुजुर्ग लोग अब अपनी पारी खेल चुके हैं। भविष्य की लड़ाई तो नौजवान स्त्री-पुरुषों को ही लड़नी होगी। इसलिए इस बैठक का नेतृत्व उन्हीं में से एक करेगा...।
जवाहरलाल में वह सबकुछ है जिसके लिए उनकी सिफारिश की जाए। कांग्रेस के सचिव के रूप में वर्षों तक उन्होंने अपनी अपूर्व योग्यता और असाधारण लगन का प्रमाण दिया है। अपनी बहादुरी, दृढ़संकल्प, व्यावहारिकता, ईमानदारी और धैर्य के कारण इस देश के नौजवानों की आंखों में वह चढ़ा है। वह मजदूरों और किसानों के संपर्क में आया है। यूरोपीय राजनीति से उसका निकट का परिचय है, इसलिए वह अपनी राजनीति का आकलन करने में सक्षम है, यह उसकी अतिरिक्त योग्यता है।”
लाहौर अधिवेशन के अपने अध्यक्षीय भाषण में जवाहरलाल नेहरू ने कहा, “विदेशी शासन से अपने देश को मुक्त कराने के लिये अब हमें खुला विद्रोह करना है और कामरेड आप लोग और देश के सभी लोग इसमें हाथ बंटाने के लिए सादर आमंत्रित हैं।” नेहरू ने यह बात भी साफ की कि मुक्ति का मतलब विदेशी शासन को उखाड़ फेंकना भर नहीं है, “मुझे साफ- साफ स्वीकार कर लेना चाहिए कि मैं एक समाजवादी हूं, रिपब्लिकन हूं। मेरा राजाओं और महाराजाओं में विश्वास नहीं है, न ही मैं उस उद्योग में विश्वास रखता हूं जो आधुनिक उद्योगपति पैदा करते हैं और जो पुराने राजों-महाराजों से भी अधिक जनता की जिन्दगी और तकदीर को नियंत्रित करते हैं और जो पुराने राजों-रजवाड़ों और सामंतों के लूटपाट का तरीका अख्तियार करते हैं।”
कांग्रेस ने अपने प्रस्ताव में यह मांग रखी कि अगर ब्रिटिश सरकार ने 26 जनवरी 1930 तक भारत को उपनिवेश (डोमीनियन स्टेट) का दर्जा नहीं दिया तो भारत को पूर्ण स्वतंत्र घोषित कर दिया जाएगा। इस प्रकार ‘पूर्ण स्वराज्य’ के मुख्य लक्ष्य के साथ 31 दिसम्बर 1929 की आधीरात को रावी नदी के तट पर प्रसन्नता और उल्लास के साथ 'इंकलाब जिंदाबाद' के नारों के बीच भारतीय स्वतंत्रता का प्रतीक तिरंगा झंडा फहराया गया।
इसके बाद 26 जनवरी 1930 को पूरे देश में जगह-जगह सभाओं का आयोजन किया गया, जिनमें सभी लोगों ने सामूहिक रूप से स्वतंत्रता प्राप्त करने की शपथ ली। इस कार्यक्रम को अभूतपूर्व सफलता मिली। गांवों तथा कस्बों में सभायें आयोजित की गयीं, जहां स्वतंत्रता की शपथ को स्थानीय भाषा में पढ़ा गया तथा तिरंगा झंडा फहराया गया।