मुगल सत्ता के संस्थापक बाबर से लेकर अंतिम मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर तक का इतिहास इतना बड़ा है कि उसे एकबारगी अध्ययन भी नहीं किया जा सकता है। आज हम आपको मुगल काल के सबसे ताकतवर बादशाह के बारे में बताने जा रहे हैं जिनकी अस्थियां कब्र से निकालकर जला दी गई थीं। इतना ही नहीं उस बादशाह का श्राद्धकर्म भी हिन्दू रीति-रिवाज से किया गया था।
बता दें कि अपने पिता शाहजहां को आगरा के किले में कैद करने के बाद औरंगजेब ने मुगल सत्ता संभाली। औरंगजेब का इस्लाम के प्रति जुनूनू किसी से छुपा नहीं था। उसके मुगल सत्ता संभालते ही राजस्थान, खानदेश, मालवा और बुन्देलखंड में विद्रोह शुरू हो गए। उन दिनों पश्चिमी उत्तर प्रदेश, पंजाब और उत्तरी राजस्थान में जाटों का दबदबा था।
असली कहानी तब शुरू होती है जब साल 1670 में मुगल सेना ने तिलपत के जंग में जाटों को करारी शिकस्त दी। तिलपत के युद्ध में मुगल फौजदार हसल अली खां ने जाटों के सर्वमान्य नेता गोकुला को कैद कर उस पर इस्लाम धर्म स्वीकार करने का दबाव डाला। जब गोकुला ने इस्लाम धर्म स्वीकार नहीं किया तो आगरा की कोतवाली के सामने उसके एक-एक अंग काटकर फिंकवा दिए। इतना ही नहीं गोकुला के परिवार का भी धर्म परिवर्तन कराया गया था। गोकुला जाट के दर्दनाक अंत से बुरी तरह आहत हुए जाट सिनसिनी गांव निवासी ब्रजराज जाट और भज्जा सिंह जाट के नेतृत्व में एकजुट होने लगे। दरअसल जाट सरदार इस बात से भी ज्यादा दुखी थे कि मुगल सेना राजस्व वसूली के नाम पर किसानों से लूटपाट कर रही थी।
साल 1682 में ब्रजराज जाट मुगलों से लड़ते हुए मारा गया। उसकी मौत के कुछ ही दिन बाद उसकी पत्नी ने एक बालक को जन्म दिया जिसका नाम बदन सिंह रखा गया। आगे चलकर बदन सिंह भी जाटों का प्रमुख नेता बना। ब्रजराज का छोटा भाई भज्जा सिंह एक साधारण किसान था। भज्जा सिंह के सात पुत्र थे- राजाराम, प्रताप सिंह, भाव सिंह, सूपा, मेढू, गुमान और चूड़ामन। भज्जा सिंह का सबसे बड़ा बेटा राजाराम अपने दादा-परदादा की तरह विद्रोही प्रवृत्ति का था।
ऐसा कहा जाता है कि मऊ के थानेदार लालबेग ने एक अहीर स्त्री का बलात शीलभंग कर दिया था, जिसके बाद राजाराम ने लालबेग की हत्या कर दी। राजाराम की इस वीरता से प्रसन्न होकर सभी जाट उसके पीछे हो लिए और वह निर्विवाद रूप से जाटों का नेता बन गया।
अब जाटों की सत्ता राजाराम जाट और उसके नजदीकी सहयोगी सोधर के रामचेहर जाट ने संभाला। एक साल के भीतर राजाराम ने न केवल मुगल सामंत मीर इब्राहिम को लूटा बल्कि मुगलों के सेनानायक मुगीर खां को पराजित भी किया। फिर क्या था, देखते ही देखते जाटों के बीच राजाराम का डंका बजने लगा। मुगलों के खिलाफ मिली जीत से उसका हौसला सातवें आसमान पर था।
जब राजाराम ने आगरा सूबे पर आक्रमण करना शुरू कर दिया तब औरंगजेब ने राजाराम को दिल्ली बुलवाया और उसे मथुरा की सरदारी और 575 गांवों की जागीरदारी प्रदान की। औरंगजेब का ऐसा सोचना था कि जागीरें प्राप्त करने के बाद राजाराम मुगलों की तरफ से हो जाएगा। लेकिन राजाराम ने मुगलों की परवाह नहीं की और आगरा-मथुरा के क्षेत्र में सरकारी खजानों, व्यापारियों और सैनिक चौकियों को लूटना जारी रखा। मुगल रिकॉर्ड के मुताबिक आगरा और दिल्ली के बीच इतनी लूटपाट मची हुई थी कि सरकारी माल और व्यापारियों का सही सलामत बच निकलना मुश्किल हो गया था।
औरंगजेब ने शफी खां को आगरा का सूबेदार बनाकर राजाराम का दमन करने के लिए भेजा। जब शफी खां ने जाटों को परेशान करना शुरू किया तब राजाराम ने आगरा पर चढ़ाई कर दी। लिहाजा शफी खां डरकर आगरा के किले में बंद हो गया। इसके बाद राजाराम और उसके साथियों ने आगरा को जीभरकर लूटा।
शफी खां के बाद औरंगजेब ने जफरजंग को जाटों के दमन के लिए भेजा लेकिन वह भी राजाराम को दबाने में असफल रहा। इसके बाद साल 1687 में औरंगजेब ने अपने पोते बेदारबख्त को राजाराम का दमन करने के लिए भेजा लेकिन बेदारबख्त के आगरा पहुंचने से पहले ही जाट सरदार राजाराम जाट ने मुगल बादशाह औरंगजेब का घमंड चूर करने के लिए मार्च 1688 के अंतिम सप्ताह में रात्रि के समय सिकंदरा में स्थित अकबर के मकबरे की कब्र खोदकर उसकी अस्थियों को जला दिया और हिन्दू रीति-रिवाज से उसका श्राद्धकर्म भी करवाया। इतना ही नहीं अकबर के मकबरे पर लगे सोने-चांदी के पतरे को भी उतार लिया था। जाटों ने अकबर के मकबरे में मुख्य द्वार पर लगे कांसे के किवाड़ों को तोड़ डाला। राजाराम ने खुर्जा परगना को भी जमकर लूटा। इसके बाद पलवल के थानेदार को जाटों ने गिरफ्तार कर लिया।
औरंगजेब के कमांडर और इटली निवासी निकोलो मनूची ने अपनी किताब 'स्टोरियो डु मोगोर' (मुगल कथायें) में लिखा है कि राजाराम जाट ने अकबर की कब्र खोदकर अस्थियों को न सिर्फ जलाया बल्कि हिंदू रीति-रिवाज से उसका श्राद्धकर्म भी किया। राजाराम जाट के इस कारनामे से औरंगजेब बौखला उठा था लिहाजा औरंगजेब ने 1688 में अपने पौत्र बेदारबख्त को जाटों का दमन करने के लिए भेजा लेकिन वह जाटों का कुछ नहीं बिगाड़ सका।
आमेर के शासक बिशन सिंह ने किया राजाराम का दमन
इसके बाद औरंगजेब ने आमेर के राजा बिशन सिंह उर्फ विष्णु सिंह कछवाहा को जाटों के विरुद्ध भेजा। इस जंग में राजाराम को हार मिली और महाराजा बिशन सिंह ने राजाराम का सिर काटकर औरंगजेब को भेज दिया। इस युद्ध में राजाराम का सबसे करीबी सहयोगी रामचेहर भी कैद कर लिया गया। इसके बाद रामचेहर का सिर काटकर आगरा किले के सामने लटका दिया गया था। कहा जाता है कि जाट सरदार राजाराम का कटा सिर देखकर औरंगजेब ने बड़ा उत्सव मनाया।
औरंगजेब इतने से भी संतुष्ट नहीं हुआ उसने बिशन सिंह को आदेश दिया कि वह जाटों का समूल नाश कर दे। बिशन सिंह भी जाटों का जन्मजात शत्रु था क्योंकि जाट उसके आमेर राज्य में लूटपाट किया करते थे। परिणामस्वरूप बिशन सिंह ने जाटों के खिलाफ भयानक अभियान चलाया जिसमें बड़ी संख्या में जाट मारे गए थे। राजाराम के बाद जाटों का नेतृत्व चूड़ामन ने किया। सिनसिनी के जमींदार चूड़ामन को भरतपुर के जाट राज्य का वास्तविक संस्थापक माना जाता है। हांलाकि औरंगज़ेब की मृत्यु के बाद चूड़ामन के लिए यह संघर्ष सरल रहा।