भारत का इतिहास

Lower caste or Dalit movement in India

भारत में निम्न जातीय अथवा दलित आन्दोलन

भारतीय इतिहास में दलितशब्द का इस्तेमाल सर्वप्रथम ज्योतिबा फूले ने हिन्दूओं के बीच अछूत जातियों के उत्पीड़न के सन्दर्भ में किया था। मतलब साफ है, निम्न जाति के (पूर्व में अछूत) लोगों का समूह जिन्हें सामाजिक संरचना में शोषित, बहिष्कृत अथवा दमित किया गया, उन्हें दलित कहा जाता है।

चूंकि दलितों को समाज में कभी समतापूर्ण जीवन जीने का अधिकार नहीं प्राप्त हुआ। अत: सामाजिक असमानता की इसी अवधारणा ने भारत में दलित आन्दोलन को जन्म दिया। दूसरे शब्दों में कहें तो निम्न जातियों के सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक उत्थान के लिए किए गए संघर्ष का नाम ही दलित आन्दोलन है। दलित आन्दोलन समाज में व्याप्त भेदभाव, असमानता और शोषण के खिलाफ आवाज उठाता है।

सत्य शोधक समाज

ज्योतिबा फूले ने साल 1873 में 24 सितम्बर को सत्य शोधक समाज (सच की खोज करने वाला समाज) की स्थापना महाराष्ट्र में की। इस आन्दोलन का उद्देश्य दलित वर्गों को शिक्षित करके उन्हें जागरूक बनाना था ताकि वे पुजारी, पुरोहित, सूदखोर आदि की सामाजिक-सांस्कृतिक दासता से मुक्ति प्राप्त कर सकें। इसके लिए उन्होंने मराठी पत्रिका दीनबन्धु का प्रकाशन किया।

ज्योतिबा फूले ने सार्वजनिक सत्य धर्म तथा गुलामगिरी नामक दो आलोचनात्मक कृतियों की रचना की जिनमें सत्यशोधक समाज के विचार निहित हैं। साल 1917 में ज्योतिबा फूले ने अछूतों हितों की रक्षा के लिए जस्टिस नामक समाचार पत्र भी प्र​काशित किया।

आधुनिक भारत के पहले जाति-विरोधी विचारकों में से एक ज्योतिबा फुले ने अपनी कृति गुलामगिरी में देश के अछूतों की दुर्दशा का विस्तार से वर्णन किया है। भारतीय समाज में समता लाने के लिए ज्योतिबा फूले ने मुस्लिम राजाओं के साथ-साथ ईसाई मिश​नरियों तथा ब्रिटिश सरकार की खुलकर प्रशंसा की है। अछूतों के लिए दलित शब्द का इस्तेमाल सर्वप्रथम ज्योतिबा फूले ने ही किया। उन्होंने मनुस्मृति को देश की निचली जातियों के प्रति शोषक तथा दमनकारी ग्रन्थ बताया।

बहुजन समाज आन्दोलन

बहुजन समाज की स्थापना शंकर राव जाधव ने की थी, जो मूलत: एक दलित आन्दोलन था। इस आन्दोलन में जाति प्रथा, साहूकारों त​था ब्राह्मणों के विरूद्ध आवाज उठाई गई। साल 1920 से मुकुन्दराव पाटिल ने सत्यशोधक पत्र तथा दिन-मित्र प्रकाशित करना शुरू किया। देखते ही देखते बहुजन समाज ने दक्कन क्षेत्र में एक शक्तिशाली ग्रामीण आधार स्थापित कर लिया।

श्री नारायण धर्म परिपालन योगम आन्दोलन

मंदिरों में प्रवेश को लेकर केरल के एझवा तथा इडवा जनजातियों ने श्री नारायण धर्म परिपालन योगम आन्दोलन शुरू किया था। श्री नारायण धर्म परिपालन योगमनामक धर्मार्थ संगठन की स्थापना साल 1903 में डॉ. पद्यनाभन पलपु और नारायण गुरु ने की थी। इस संगठन का उद्देश्य एझवा समुदाय को सामाजिक समता, आर्थिक समृद्धि और शैक्षिक अवसर प्रदान करना था।

नारायण गुरु, एन. कुमारन तथा टी.के.माधवन ने 19वीं सदी में छूआछूत के विरूद्ध आवाज उठायी। नारायण गुरु ने अपना समस्त जीवन एझवा तथा इडवा जनजातियों में सामाजिक-आर्थिक असमानता, जातिवाद और अंधविश्वासों के खिलाफ काम करने के लिए समर्पित कर दिया।

वायकोम सत्याग्रह

केरल प्रान्त के वायकोम नामक गांव में मंदिर प्रवेश को लेकर यह आन्दोलन शुरू हुआ। सवर्ण लोग निम्न जाति के एझवा तथा पुलैया लोगों को अपवित्र मानते थे अत: इन जातियों को न केवल मंदिरों में प्रवेश करने पर रोक था बल्कि मंदिरों के आसपास की सड़कों पर चलने पर भी प्रतिबंध था।

इस आन्दोलन के नेता के.पी. केशव मेनन तथा ई.वी.रामास्वामी नायक (पेरियार) थे। मार्च 1925 ई. में महात्मा गांधी की मध्यस्थता में त्रावणकोर की महारानी से मंदिर में प्रवेश को लेकर आन्दोलनकारियों से समझौता हुआ।

त्रावणकोर के पुलिस आयुक्त डब्ल्यू.एच.पिट तथा गांधीजी के बीच बातचीत के बाद 30 नवम्बर 1925 ई. को वायकोम सत्याग्रह आधिकारिक तौर पर वापस ले लिया गया। इस समझौते के तहत सभी कैदियों की रिहाई कर दी गई तथा सड़कों पर स्वतंत्ररूप से चलने की अनुमति प्रदान की गई।

साल 1936 में त्रावणकोर के महाराजा ने ऐतिहासिक मंदिर प्रवेश उद्घोषणा पर हस्ताक्षर किए तत्पश्चात मंदिरों में प्रवेश पर लगे सदियों पुराने प्रतिबन्ध को हटा दिया गया।

गुरुवायूर सत्याग्रह

साल 1931-32 में दलितों तथा पिछड़ों के मंदिर प्रवेश को लेकर केरल में एक दूसरा अहिंसक आन्दोलन गुरुवायूर सत्याग्रह शुरू हुआ जिसका नेतृत्व के. केलप्पन ने किया था। गुरुवायूर सत्याग्रह के दौरान के. केलप्पन ने 12 दिनों तक भूख हड़ताल की थी परन्तु गांधीजी और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अनुरोध पर इसे वापस ले लिया।

गुरुवायूर सत्याग्रह का उद्देश्य मंदिरों में सभी जातियों के प्रवेश की मांग करना तथा छूआछूत का अंत करना था। साल 1931 में एक नवम्बर को केरल कांग्रेस कमेटी ने ​अखिल केरल मंदिर प्रवेश दिवस के रूप में मनाया।

गुरुवायूर सत्याग्रह को सी.राजगोपालाचारी तथा भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी के नेताओं में पी.कृष्ण पिल्लई, ए.के.गोपालन ने नेतृत्व प्रदान किया तत्पश्चात 1936 ई. में त्रावणकोर महाराजा से एक समझौता हुआ और राज्य के सभी मंदिरों को ​सभी हिन्दू जातियों के लिए खोल दिया गया।

हरिजन सेवक संघ

साल 1932 में 30 सितम्बर को महात्मा गांधी ने हरिजनों (दलित वर्ग) में छूआछूत को समाप्त करने तथा दलित कल्याण के लिए अखिल भारतीय अस्पृश्यता निवारण संघ की स्थापना की। हांलाकि गांधीजी के वर्णाश्रम मत से डॉ. आम्बेडकर पूरी तरह से असहमत थे। साल 1933 में अखिल भारतीय अस्पृश्यता निवारण संघ का नाम बदलकर हरिजन सेवक संघ कर दिया गया।

दरअसल गांधीजी ने ही देश के दलितों अथवा अछूतों को हरिजन’ (भगवान के जन) नाम दिया। हरिजन सेवक संघ के प्रथम अध्यक्ष घनश्यामदास बिड़ला तथा सचिव अमृतलाल विट्ठलदास ठक्कर थे।

हरिजन सेवक संघ का वास्तविक उद्देश्य दलित अधिकारों की रक्षा करना तथा उन्हें शिक्षा व रोजगार प्रदान कर उनका सामाजिक और आर्थिक उत्थान करना था।  हरिजन सेवक संघ का मुख्यालय दिल्ली स्थित गाँधी आश्रम, किंग्सवे कैम्प में है। वर्तमान में इसकी शाखाएं देश के तकरीबन सभी राज्यों में हैं।

भारतीय मुक्ति संग्राम के दौरान ब्रिटिश हुकूमत द्वारा दलित तथा वंचित वर्गों के लिए पृथक निर्वाचन क्षेत्रों की घोषणा के बाद महात्मा गांधी ने हिन्दु समुदाय के कथित विभाजन के विरोध में आमरण अनशन करने का निर्णय लिया। इसके बाद डॉ. आम्बेडकर तथा गांधीजी ने पूना पैक्ट-1932 पर हस्ताक्षर किए जिसके तहत हिन्दु समुदाय के सभी वर्गों के लिए संयुक्त निर्वाचन मंडल का प्रावधान किया गया। इसके साथ ही दलित वर्ग के लिए निर्वाचन क्षेत्र में प्राप्त सीटों के मुकाबले तकरीबन दोगुनी संख्या में आरक्षण प्रदान किया गया।

अखिल भारतीय दलित वर्ग

साल 1930 में नागपुर में आयोजित दलित वर्ग के सम्मेलन में डॉ. भीमराव आम्बेडकर ने अखिल भारतीय दलित वर्ग की स्थापना की। अखिल भारतीय दलित वर्ग के प्रथम अध्यक्ष मद्रास के एम.सी. राजा तथा उपाध्यक्ष डॉ.भीमराव आम्बेडकर थे। डॉ. आम्बेडकर का ऐसा मानना था कि वर्गविहीन समाज गढ़ने से पहले समाज को जातिविहिन करना होगा।

इस आन्दोलन को धारदार स्वरूप देने तथा व्यापक बनाने के लिए डॉ. आम्बेडकर ने 1924 ई. में मूकनायक तथा 1927 ई. में बहिष्कृत भारत प्रकाशन शुरू किया।

डॉ. आम्बेडकर ने साल 1927 में महाड़ सत्याग्रह का नेतृत्व किया क्योंकि महाराष्ट्र के महाड़ में एक सार्वजनिक तालाब से जल भरने के लिए अछूतों अथवा निचली जातियों को मना कर दिया गया था। इतना ही नहीं, वर्ष 1927 में ही आम्बेडकर ने जाति व्यवस्था तथा छूआछूत की प्रथा के विरोध में मनुस्मृति को सार्वजनिक रूप से आग के हवाले कर दिया। इसके बाद साल 1930 में उन्होंने अखिल भारतीय दलित वर्ग की स्थापना की।

ब्रिटिश शासन के दौरान डॉ. भीमराव आम्बेडकर तथा उनके अनुयायियों ने दलितों तथा वंचित वर्गों के लिए पृथक निर्वाचन क्षेत्र की मांग की थी। इतना ही नहीं,  बी.आर. अंबेडकर ने अछूतों तथा सर्वण हिन्दुओं में सामाजिक समानता लाने के लिए 1927 ई. में समाज समता संघ,’ 1936 ई. में इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी तथा साल 1942 में अनुसूचित जाति परिसंघ की स्थापना की।

डिप्रेस्ड क्लास मिशन सोसाइटी

साल 1906 में महर्षि विट्ठल रामजी शिंदे (वी.आर.शिन्दे) ने डिप्रेस्ड क्लास मिशन सोसाइटी की स्थापना की जिसके पहले अध्यक्ष चंद्रावरकर थे। डिप्रेस्ड क्लास मिशन सोसाइटी का उद्देश्य दलितों को छूआछूत से छुटकारा दिलाना तथा दलितों के लिए स्कूल, छात्रावास तथा अस्पताल आदि की व्यवस्था करना था ताकि इस समाज का चुतर्दिक उत्थान हो सके।

साल 1917 में कांग्रेस ने पहली बार अपनी कार्यसूची में दलित सुधार को शामिल किया। इसके बाद 1931 ई. के कराची अधिवेशन में कांग्रेस ने जाति विशेष पर ध्यान दिए बिना सबको सरकारी नौकरियों में समान अवसर तथा समान अधिकार दिए जाने पर बल दिया।

आपको यह बात जानकर हैरानी होगी कि विट्ठल शिंदे दलित जाति के उत्थान के लिए आजीवन संघर्ष करते रहे परन्तु उन्हें दलितों का समर्थन नहीं मिला, इसलिए उनका अंतिम समय काफी निराशापूर्ण बीता। कहते है,  इसी दुख में 2 जनवरी 1944 को वी.आर.शिन्दे का निधन हो गया।

आत्म सम्मान आन्दोलन

दक्षिण भारत में ई.वी. रामास्वामी नायकर (पेरियार) ने 1925 ई. में दलित हितों की रक्षा के लिए आत्म सम्मान आन्दोलन चलाया। आत्म सम्मान आ​न्दोलन के जरिए पेरियार साहब ने निम्न जातियों में आत्म-सम्मान विकसित करने की भरपूर कोशिश की ताकि भारत की जातिगत व्यवस्था में दमित-शोषित वर्ग सामाजिक समानता प्राप्त कर सके।

आत्म-सम्मान को लेकर पेरियार साहब की एक उक्ति बेहद प्रख्यात है- हम आत्म सम्मान के बारे में तभी सोचने के लायक हैं जब 'श्रेष्ठ' और 'निम्न' जाति की धारणा हमारी धरती से समाप्त हो जाए। आत्म सम्मान आंदोलन न केवल तमिलनाडु अपितु तमिल आबादी वाले देशों जैसे- श्रीलंका, बर्मा और सिंगापुर में भी बेहद प्रभावशाली था। तमिलनाडु के दो प्रमुख राजनीतिक दल- द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) और अखिल भारतीय अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (एआईएडीएमके) अपनी उत्पत्ति का श्रेय आत्म-सम्मान आंदोलन को देते हैं।

जस्टिस पार्टी आन्दोलन

दक्षिण में जस्टिस पार्टी की स्थापना 20 नवंबर 1916 को सी.एन.मुदालियार, टी.एम. नायर तथा पी.टी. चेन्नी ने मिलकर की। ब्रिटिश शासनकाल (1916-20 के दौरान) में मद्रास प्रेसिडेन्सी में ब्राह्मणों तथा गैर ब्राह्मणों के बीच सांप्रदायिक विभाजन का मुख्य वजह सरकारी नौकरियों में ब्राह्मणों का अनुपातहीन प्रतिनिधित्व तथा जातिगत पूर्वाग्रह था। इसी वजह से जस्टिस पार्टी की स्थापना हुई। बता दें कि साल 1944 में आयोजित सेलम सम्मेलन में जस्टिस पार्टी का नाम बदलकर द्रविड़ार कड़गम कर दिया गया।

दलित आन्दोलन से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण तथ्य

दलितशब्द का इस्तेमाल सर्वप्रथम ज्योतिबा फूले ने हिन्दूओं के बीच अछूत जातियों के उत्पीड़न के सन्दर्भ में किया था।

सत्य शोधक समाज की स्थापना महात्मा ज्योतिबा फूले ने 24 सितम्बर 1873 ई. को मुम्बई में की थी।

ज्योतिबा फूले की चर्चित पुस्तकों का नाम गुलामगिरी और सार्वजनिक सत्य धर्म

ज्योतिबा फूले ने भगवान राम की जगह राजा बलि को अपने आन्दोलन का प्रतीक चिह्न बनाया।

सत्य शोधक समाज के अन्य प्रमुख नेताओं में केशव राय जेठे तथा दिनकर राव का नाम शामिल है।

डॉ. भीमराव आम्बेडकर ने साल 1920 में अखिल भारतीय दलित वर्ग संघ की स्थापना की।

डॉ. आम्बेडकर ने 1924 ई. में बहिष्कृत हितकारिणी सभा, 1927 ई. में समाज समता संघ तथा 1942 ई. में अनुसूचित जाति परिसंघ की स्थापना की।

डॉ. आम्बेडकर ने अछूतों के मंदिरों में प्रवेश तथा सामाजिक समानता के लिए आन्दोलन चलाया।

डॉ. भीमराव आम्बेडकर ने दलित वर्ग के लिए पृथक निर्वाचन क्षेत्र की मांग की।

डॉ. आम्बेडकर ने हिन्दू धर्म त्यागकर बौद्ध धर्म ग्रहण कर लिया।

नारायण गुरु के मुताबिक,मानव के लिए एक धर्म, एक जाति और एक ईश्वर है।

मद्रास में संचालित जस्टिस आन्दोलन के प्रमुख नेताओं के नामसी.एन.मदुलियार, टी.एम.नायर, पी. तियागरापा चेट्टी।

जस्टिस आन्दोलन की मुख्य वजह- गैर ब्राह्मणों के मुकाबले ब्राह्मणों को सरकारी नौकरी, शिक्षा तथा राजनीति में ऊंची स्थिति प्राप्त होना था।

साल 1926 में तमिलनाडु में आत्म सम्मान आन्दोलन का नेतृत्व पेरियार ने किया।

आत्म सम्मान आन्दोलन की मुख्य गतिविधियां- ब्राह्मणों की मदद के बिना विवाह, मंदिरों में निम्न जातियों का जबरदस्ती प्रवेश, मनुस्मृति का तिरस्कार।

आत्म सम्मान आन्दोलन का उद्देश्य अछूतों अथवा निम्न जातियों को समाज में उचित स्थान दिलाना था

वायकोम सत्याग्रह का नेतृत्व रामास्वामी नायकर ने साल 1924 में किया था।

वायकोम सत्याग्रह की शुरूआत केरल के वायकूम गांव से हुई थी जब एक निम्न जातीय व्यक्ति को मंदिर में प्रवेश करने से रोका गया।

साल 1931 में त्रावणकोर में निम्न जातियों के मंदिरों में प्रवेश नहीं करने देने के बाद गुरुवायूर सत्याग्रह की शुरूआत हुई।

गुरुवायूर सत्याग्रह का नेतृत्व के. केलप्पन किया। के. केलप्पन जब आमरण अनशन पर बैठे तब गांधीजी के आश्वासन के बाद उन्होंने आमरण अनशन तोड़ दिया। 

गुरुवायूर सत्याग्रह के प्रमुख नेताओं में के. केलप्पन के बाद वी. सुब्रहमण्यम, के. पिल्लई और ए. के. गोपालन का नाम शामिल है।