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Khudiram Bose attempted to assassinate Douglas Kingsford by using a bomb

मजिस्ट्रेट किंग्सफ़ोर्ड को मारकर मां काली को बलि चढ़ाना चाहता था यह युवा क्रांतिकारी

1905 ई. में लॉर्ड कर्जन द्वारा बंगाल विभाजन की घोषणा किए जाने के बाद केवल बंगाल ही नहीं पूरे देश में इसके विरूद्ध कठोर प्रतिक्रिया देखने को मिली। प्रशासनिक सुविधा का बहाना बनाकर बंगाल विभाजन किया गया लेकिन इसका वास्तविक उद्देश्य हिन्दू और मुसलमानों को आपस में लड़ाना था व मुसलमानों के लिए एक पृथक राज्य का निर्माण करना था।

​दरअसल ब्रिटीश हुकूमत के बंगाल विभाजन से बंगालवासी जितने क्रोधित और झुब्ध हुए, वह अप्रत्याशित था। 16 अक्तूबर 1905 का दिन (जिस दिन विभाजन प्रभावी हुआ) पूरे बंगाल में शोक दिवस के रूप में मनाया गया। घरों में चूल्हा नहीं जला, लोगों ने उपवास रखा और कलकत्ता में हड़ताल घोषित की गई। जनता ने जुलूस निकाला। सवेरे जत्थे के जत्थे लोगों ने गंगा ​स्नान किया और फिर सड़कों पर वंदे मातरम गाते हुए प्रदर्शन करने लगे। यह वंदे मातरम समूचे आन्दोलन की ओर से युद्ध की दुंदुभी था।

बंगाल विभाजन के विरूद्ध स्वदेशी आन्दोलन के साथ ही आतंकवादी घटनाएं भी शुरू हुई। 1907 ई. में बारीन्द्र कुमार घोष और भूपेन्द्र दत्त के द्वारा बंगाल की पहली क्रांतिकारी संस्था ‘अनुशीलन समिति’ की स्थापना की गई, इस संस्था का उद्देश्य क्रांतिकारी आतंकवाद के द्वारा पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्त करना था। देखते ही देखते कई समान विचार वाले शिक्षित युवा उनसे आ मिले। जहां ‘भवानी मंदिर’ नामक पुस्तक में क्रांतिकारी संस्था स्थापित करने की योजना के विषय में विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया वहीं पुस्तिका ‘वर्तमान रणनीति’ में युवकों से सैनिक शिक्षा लेने की अपील की गई। ‘युगांतर’ और ‘संध्या’ जैसी ​पत्रिकाओं में सशस्त्र विद्रोह करने का प्रचार किया गया। इस प्रकार 1907 से 1909 के बीच बंगाल में कई क्रांतिकारी गतिविधियां देखने को मिली।

6 दिसंबर 1907 को मिदनापुर के पास नारायणगढ़ रेलवे स्टेशन पर बंगाल के लेफ्टिनेंट गर्वनर एंड्र्यू फ़्रेज़र की गाड़ी को बम से उड़ाने की कोशिश की गई परन्तु वह बच गया। इसी तरह ढाका के पहले मजिस्ट्रेट एलन को भी कत्ल करने का प्रयत्न किया गया जो असफल रहा। इसके बाद बंगाल के ‘युगान्तर’ समिति कि एक गुप्त बैठक में मजिस्ट्रेट डगलस हाँलिन्सहेड किंग्सफोर्ड को मारने का फैसला किया गया, जिसने कई युवकों को छोटे-छोटे अपराधों के लिए कोड़े लगवाए थे।

क्रांतिकारियों को अपमानित करने और उन्हें दण्ड देने के लिए बदनाम डगलस हाँलिन्सहेड किंग्सफोर्ड की हत्या करने के लिए 8 अप्रैल, 1908 को प्रफुल्ल चाकी और खुदीराम बोस को तैयार किया गया। इससे पहले क्रांतिकारियों ने किंग्सफोर्ड को एक पार्सल बम भेजकर मारने की कोशिश की थी लेकिन इस पार्सल बम को किंग्सफोर्ड ने नहीं खोला लिहाजा पार्सल खोलते हुए एक अन्य कर्मचारी घायल हो गया। अत: ब्रिटिश सरकार ने किंग्सफोर्ड के प्रति जनता के आक्रोश को भाँपकर उसकी सुरक्षा की दृष्टि से उसे सेशन जज बनाकर मुजफ्फरपुर भेज दिया।

बावजूद इसके खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चाकी किंग्सफ़ोर्ड को मारने के लिए 18 अप्रैल, 1908 को मुज़फ़्फ़रपुर पहुंच गए। ‘युगान्तर’ समिति ने खुदीराम को दो पिस्तौल और प्रफुल्ल चाकी को एक पिस्तौल और कारतूस मुहैया कराया था जबकि हेमचंद कानूनगो ने उन्हें कुछ हैंडग्रेनेड भी दिए थे। इस प्रकार ये दोनों युवा क्रांतिकारी मोती झील क्षेत्र स्थित एक धर्मशाला में ठहरे और किंग्सफोर्ड के आवास से लेकर उसकी दैनिक गतिविधियों का बारीकी से अध्ययन करने लगे। इतना ही नहीं खुदीराम बोस तो किंग्जफोर्ड को उसके कार्यालय में जाकर ठीक से देख भी आए थे। हांलाकि इसी बीच पुलिस को इस योजना की कुछ भनक मिल गई इसलिए उन्होंने किंग्सफोर्ड की सुरक्षा बढ़ा दी।

चूंकि किंग्सफोर्ड रात को प्रति​दिन बग्घी में बैठकर अपनी पत्नी के साथ स्टेशन क्लब आता था, इसलिए खुदीराम और प्रफुल्ल चाकी ने यह योजना बनाई कि किंग्सफोर्ड के क्लब से वापस लौटते समय बग्घी पर बम फेंककर उसकी हत्या कर दी जाए। 30 अप्रैल 1908 को रात साढ़े आठ बजे मुज़फ़्फ़रपुर के स्टेशन क्लब में रोजाना होने वाला इनडोर गेम खत्म हुआ तो दो अंग्रेज महिलाएं मिसेज कैनेडी और उनकी बेटी ग्रेस कैनेडी घोड़े की एक बग्घी में सवार हुईं। यह  बग्घी किंग्सफोर्ड की बग्घी से मिलती-जुलती थी। ऐसे में जब यह बग्घी किंग्सफ़ोर्ड के घर के अहाते के पूर्वी गेट पर पहुंची तो खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चाकी ने किंग्सफोर्ड की उस गाड़ी पर बम फेंका। इस हमले में ग्रेस कैनेडी की घंटेभर में मौत हो गई जबकि मिसेज कैनेडी ने 24 घंटे के बाद दम तोड़ दिया। बग्घी चालक संगत दुसाध घायल होने की वजह से बेहोश होकर नीच गिर पड़ा।

बता दें कि मजिस्ट्रेट किंग्सफोर्ड की हत्या करके खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चाकी अमावस्या की रात्रि के शुभ अवसर पर मां काली को बलि चढ़ाना चाहते थे। हांलाकि ये दोनों क्रांतिकारी घटनास्थल से भाग निकले लेकिन जल्दबाजी में खुदीराम बोस के जूते वहीं छूट गए। मुज़फ़्फ़रपुर पुलिस अधीक्षक ने इन दोनों को गिरफ्तार करने के लिए कई पुलिसकर्मियों को रवाना कर दिया। जिला प्रशासन ने यह ऐलान करवा दिया कि जो भी शख्स इन दोनों क्रांतिकारियों के बारे में सूचना देगा उसे 5000 रुपए का पुरस्कार दिया जाएगा।

1 मई, 1908 की सुबह समस्तीपुर के वैनी रेलवे स्टेशन के पास 17 वर्षीय खुदीराम बोस को गिरफ्तार कर लिया गया, उनके पास से एक रिवाल्वर,37 कारतूस तथा 30 रुपए बरामद हुए। घटनास्थल पर पाए गए जूतों को खुदीराम बोस को पहना कर देखा गया। जूते उनको बिल्कुल सही आए। खुदीराम ने खुद स्वीकार किया कि ये उनके ही जूते हैं। खुदीराम बोस को जब पुलिस कस्टडी में मुज़फ़्फ़रपुर लाया गया तब उन्हें देखने के लिए लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा था। ब्रिटीश सरकार ने खुदीराम बोस पर हत्या का मुक़दमा चलाया और 13 जून, 1908 को अपर सत्र न्यायाधीश एच डब्सू कॉर्नडफ़ की अदालत उन्हें फांसी की सजा सुनाई। 11 अगस्त 1908 को 18 वर्षीय खुदीराम बोस ने हाथ में भगवदगीता लेकर हँसते-हँसते फाँसी के फन्दे पर चढ़कर इतिहास रच दिया। जब प्रफुल्ल चाकी को कैद ​किया गया तो उन्होंने गोली मारकर आत्महत्या कर ली।

इस प्रकार शहीद खुदीराम बोस बंगाल के युवकों की नजरों में एक बहादुर देशभक्त साबित हुए। खुदीराम बोस के चित्र बंगाल के घर-घर में लगाए गए और युवकों ने अपनी धोतियों के किनारों पर खुदीराम बोस का नाम छपवाया।