यदि खाजा की बात की जाए तो इसे ओडिसा, आन्ध्र प्रदेश तथा पश्चिम बंगाल में भी खूब पसन्द किया जाता है लेकिन बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश विशेषकर पूर्वांचल में खाजा एक प्रकार से शगुन की मिठाई है। जमाना बदला है, इसलिए लोग शादी या किसी खास मौके पर भले ही गुलाबजामुन, रसगुल्ले, रसमलाई जैसी मिठाईयां बनवाने लगे हैं, बावजूद इसके आज भी ज्यादातर घरों में विवाह के अवसर पर कन्या पक्ष के लोग अपनी बेटी के ससुराल बतौर शगुन खाजा मिठाई भेजना नहीं भूलते हैं। सगे-सम्बन्धियों को खाजा मिठाई का वितरण नाईन अथवा किसी खास व्यक्ति के द्वारा करवाया जाता है जिसे स्थानीय भाषा में ‘बायन’ कहा जाता है और जिसके घर मिठाई दी जाती है वह नाईन अथवा उस खास व्यक्ति को अनाज अथवा रूपए देता है उसे ‘आखत’ कहते हैं। इस प्रकार बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश में शादी के दौरान वर-वधू पक्ष को खाजा की टोकरी भेजना शगुन ही नहीं बल्कि एक रस्म भी है।
खाजा मिठाई जुड़ी हैं कई कहानियां- बिहार राज्य के नालंदा जिला मुख्यालय से लगभग 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित सिलाव के लोगों का ऐसा मानना है कि खाजा मिठाई का प्रचलन राजा विक्रमादित्य के समय से जारी है। एक कहानी यह भी है कि जब भगवान बुद्ध राजगीर से होते जा रहे थे तब उन्हें खाजा मिठाई दी गई। यह मिठाई बुद्ध को इतनी पसन्द आई कि उन्होंने इसे खाने के लिए अपने शिष्यों को दी। यह अवधारणा है कि इस मिठाई का नाम खाजा स्वयं भगवान बुद्ध ने ही रखा था। कुछ सूत्रों के मुताबिक ऋग्वेद और चाणक्य के अर्थशास्त्र में 'गेहूं की परतदार मिठाई' का भी उल्लेख मिलता है, इससे यह साबित होता है कि खाजा मिठाई अति प्राचीन है और इसका जन्म स्थान गंगा घाटी क्षेत्र ही है।
खाजा की भगवान बुद्ध से ही जुड़ी एक कहानी यह है कि नालंदा विश्वविद्यालय के प्राचार्य शीलभद्र ने भगवान बुद्ध का स्वागत खाजा मिठाई से किया था। भगवान बुद्ध ने शीलभद्र से पूछा कि यह क्या है? तब शीलभद्र ने जवाब दिया- खाजा। भगवान बुद्ध ने खाजा खाने के बाद इस मिठाई की खूब प्रशंसा की। तभी से इस मिठाई का नाम खाजा प्रचलित हो गया।
खाजा मिठाई से जुड़ी तीसरी कहानी ओडिसा के पुरी से है। कहा जाता है कि पुरी में भगवान जगन्नाथ को यह मिठाई बहुत पसन्द थी लेकिन पुरी में इस मिठाई को कोई भी शख्स बनाना नहीं जानता था। इसलिए भगवान जगन्नाथ एक दिन हलवाई के सपने में आए और इस मिठाई को बनाने की बात कही। उस हलवाई ने भगवान जगन्नाथ से खाजा बनाने की विधि पूछी और भगवान के बताए नुस्खे के अनुसार वह मिठाई बनाकर उन्हें भोग लगाने के लिए मंदिर लेकर गया। चूंकि वह हलवाई मुस्लिम समुदाय का था इसलिए उसे मंदिर में प्रवेश करने से रोक दिया गया। इसी दौरान एक कुत्ता आया और उसने खाजा मिठाई को भगवान जगन्नाथ के चरणों में अर्पित कर दिया। इसके बाद से भगवान जगन्नाथ को खाजा मिठाई का भोग लगाया जाने लगा। बता दें कि भगवान जगन्नाथ के छप्पन भोग या महाप्रसाद में भी खाजा का वितरण किया जाता है।
आखिर कहां से जन्मा खाजा- नि:सन्देह उड़ीसा तथा आन्ध्र प्रदेश के लोग खाजा मिठाई बनाने की कला पर गर्व करते होंगे परन्तु ऐसा माना जाता है कि तकरीबन 2000 वर्ष पूर्व खाजा मिठाई का नुस्खा बिहार स्थित गंगा के मैदानी इलाकों से देशभर में फैला। खाजा मिठाई का मूल स्थान बिहारशरीफ से लगभग 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित सिलाव नामक छोटे शहर को माना जाता है। बता दें कि सिलाव के 52 परत वाले खाजा की शुरुआत तकरीबन 200 वर्ष पूर्व यहां के स्थानीय निवासी काली साह ने की थी।
खजूरी के नाम से मशहूर मिठाई धीरे-धीरे खाजा के नाम से परिवर्तित हो गया। सिलाव में काली साह के खानदान के 31 लोग जीवित है और पूरे शहर में इनकी छह दुकानें हैं। सिलाव में 200 वर्षों पूर्व खजूरी को घर में ही गेंहू पीसकर मैदे से तैयार किया जाता था। खजूरी को शुद्ध घी में बनाया जाता था। उन दिनों एक पैसे में एक सेर खाजा मिलता था। साल 2018 में सिलाव को खाजा मिठाई के लिए जीआई टैग भी मिल चुका है। सिलाव का खाजा केवल देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी अपनी प्रसिद्धि पा चुका है। ओडिसा के पुरी की तरह सिलाव का खाजा भी बाहर से सूखे और अंदर से चाशनी वाले होते हैं और इसकी खासियत है कि यह कई दिनों तक रखने के बावजूद भी खराब नहीं होता है।
खाजा के नाम अनेक लेकिन स्वाद एक- आज की तारीख में बिहार और पूर्वी यूपी के अलावा झारखंड, ओडिसा और आन्ध प्रदेश में खाजा मिठाई घर-घर में मशहूर है। मैदा से तैयार की जाने वाली इस परतदार मिठाई को चीनी की चाशनी में डूबोकर तैयार किया जाता है। जहां बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश का खाजा अपने फूलेपन के लिए प्रसिद्ध है जब कि आंध्र प्रदेश में खाजा बाहर से सूखा और अन्दर से रसदार होता है। बिहार और झारंखड में इसे लोग बिहारी खाजा ही कहते हैं, जबकि पूर्वी प्रदेश के लोग केवल खाजा कहते हैं जबकि आन्ध्र प्रदेश में चिरोटी और ओडिसा के पुरी में इसकी दो वैरायटी है-मदतखाजा और गोट्टमखाजा।
सिलाव में बनाये गये खाजा का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन- सिलाव में तैयार किए गए खाजा का सर्वप्रथम प्रदर्शन साल 1986 में ‘अपना महोत्सव’ नई दिल्ली में हुआ। सिलाव के काली साह के वंशज संजय कुमार को 1987 में मारीशस जाने का भी मौका मिला। मारीशस के सांग महोत्सव में खाजा को सर्वश्रेष्ठ मिठाई का दर्जा मिला था। इसके अतिरिक्त दूरदर्शन के लोकप्रिय सांस्कृतिक धारावाहिक सुरभि तथा अंतरराष्ट्रीय पर्यटन व व्यापार मेला, नई दिल्ली के साथ ही कई अन्य खास मौकों पर खाजा मिठाई अपनी धूम मचा चुका है। भारत सरकार के मेक इंडिया कार्यक्रम के तहत देश के 12 पारंपरिक व्यजंनों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पेश किए जाने की योजना है जिसमें सिलाव का खाजा मिठाई भी शामिल है।