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Dr. Bhimrao Ambedkar never won the Lok Sabha elections

डॉ. भीमराव आम्बेडकर कभी नहीं जीत पाए लोकसभा चुनाव, क्या थे नतीजे?

साल 2012 में सीएनएन, आईबीएन व हिस्ट्री चैनल के साथ साझेदारी में आउटलुक पत्रिका द्वारा आयोजित एक जनमत सर्वेक्षण कार्यक्रम में डॉ. भीमराव आम्बेडकर को 2 करोड़ मत प्राप्त हुए थे और डॉ. आम्बेडकर भारतवर्ष में सबसे महानतम भारतीय के रूप में चुने गए।

आज की तारीख में हिन्दुस्तान की तकरीबन सभी राजनीतिक पार्टियां बाबा साहेब डॉ. भीमराव आम्बेडकर के नाम पर सियासी रोटियां सेंकती नजर आ रही हैं। देश की जनता भी इस बात को बखूबी जानती है कि दलितों के मसीहा, भारत के पहले कानून मंत्री और संविधान निर्माता बाबा साहेब आम्बेडकर को आगे करके सिर्फ दलित वोट प्राप्त करना ही राजनीति पार्टियों का असली मकसद है।

अन्यथा देश की इन्हीं राजनीतिक पार्टियों ने मिलकर डॉ. भीमराव आम्बेडकर के विरूद्ध चुनाव मैदान में अपने प्रत्याशी उतारे और उन्हें कभी लोकसभा चुनाव नहीं जीतने दिया, ऐसे में लोकसभा के जरिए संसद पहुंचने का उनका सपना आजीवन अधूरा ही रह गया। हैरानी का बात यह है कि डॉ. भीमराव आम्बेडकर अपने प्रत्येक चुनाव परिणामों चौथे और तीसरे स्थान पर रहे। बतौर लोकसभा उम्मीदवार बाबा साहेब डॉ. भीमराव आम्बेडकर की सियासी कहानी जानने के लिए इस रोचक स्टोरी को जरूर पढ़ें।

डॉ. भीमराव आम्बेडकर का पहला लोकसभा चुनाव (1952 ई.)

आजादी के बाद पं. जवाहरलाल नेहरू की अगुवाई में जब देश की पहली अंतरिम सरकार बनी थी तब बाबा साहेब डॉ. भीमराव आम्बेडकर कानून मंत्री बनाए गए थे। परन्तु हिंदू कोड बिल के मुद्दे पर बाबा साहेब ने 27 सितंबर, 1951 को अंतरिम सरकार से इस्तीफा दे दिया।

इसके बाद भारत के पहले मुख्य चुनाव आयुक्त सुकुमार सेन के नेतृत्व में 25 अक्टूबर 1951 से 21 फरवरी 1952 के बीच देश का पहला आम चुनाव सम्पन्न हुआ जिसमें जनता ने 489 लोकसभा सदस्यों को चुना। परन्तु दुर्भाग्य की बात यह है कि भारत का संविधान निर्माता ही अपना पहला सियासी चुनाव बुरी तरह हार गया।

अनुसूचित जातियों को संगठित करने हेतु डॉ. भीमराव आम्बेडकर ने शेड्यूल्ड कास्ट्स फेडरेशन नामक एक संगठन बनाया था। अत:  साल 1952 के पहले आम चुनाव में डॉ. भीमराव आम्बेडकर अपनी ही राजनीतिक पार्टी शेड्यूल्ड कास्ट फेडरेशन’ (SCF) से चुनावी मैदान में उतरे।

बाबा साहेब आम्बेडकर ने अपनी कर्मभूमि महाराष्ट्र के बॉम्बे नॉर्थ सेन्ट्रल सीट से बतौर लोकसभा उम्मीदवार चुनावी पर्चा भरा। अशोक मेहता की नेतृत्व वाली सोशलिस्ट पार्टी ने उनका समर्थन किया था। कांग्रेस पार्टी ने डॉ. भीमराव आम्बेडकर को हराने के लिए नारायण सदोबा काजरोलकर को अपना प्रत्याशी बनाया। नारायण सदोबा काजरोलकर को जीताने के लिए पं. जवाहरलाल नेहरू लोकसभा क्षेत्र बॉम्बे नॉर्थ सेन्ट्रल में दो बार प्रचार करने पहुंचे। उन दिनों पूरे देश में कांग्रेस की लहर थी लिहाजा बॉम्बे नॉर्थ सेन्ट्रल का चुनाव परिणाम जानकर पूरा देश स्तब्ध रह गया।

साल 1952 के लोकसभा चुनाव में डॉ. भीमराव आम्बेडकर को 1,23,576 वोट मिले जबकि कांग्रेस के प्रत्याशी नारायण सदोबा काजरोलकर को 1,37,950 वोट हासिल हुए। ऐसे में डॉ.आम्बेडकर को  14374 वोटों से करारी हार का सामना करना पड़ा। हैरानी की बात यह है कि चुनाव परिणाम में डॉ. आम्बेडकर चौथे स्थान पर रहे थे। कांग्रेस प्रत्याशी पीए नारायण एस काजरोलकर तथा एससीएफ प्रत्याशी डॉ भीमराव आम्बेडकर के अतिरिक्त कम्युनिस्ट पार्टी और हिंदू महासभा ने अपने प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतारे थे।

यदि हम कांग्रेस प्रत्याशी नारायण एस काजरोलकर की बात करें तो वह भी बैकवर्ड क्लास से आते थे और दूध का कारोबार करने वाले एक नौसिखिए नेता थे। हांलाकि नारायण एस काजरोलकर को बतौर निजी सहायक डॉ. भीमराव आम्बेडकर के साथ काम करने का अनुभव था। इसी के साथ कांग्रेस के देशव्यापी लहर और पं. जवाहर लाल नेहरू के करिश्माई व्यक्तित्व के आगे भीमराव आम्बेडकर को अपने पहले ही चुनाव में करारी हार का सामना करना पड़ा।

क्या  डॉ. आम्बेडकर के साथ धांधली हुई थी?

पीटीआई की एक रिपोर्ट के मुताबिक, अपनी हार के बाद डॉ. भीमराव आम्बेडकर ने 5 जनवरी 1952 को एक बयान दिया, उन्होंने कहा कि बॉम्बे की जनता के भारी समर्थन को इतना बुरी तरह से कैसे झुठलाया जा सकता है, यह चुनाव आयुक्त द्वारा जांच का विषय है।

इसके बाद डॉ. भीमराव आम्बेडकर और अशोक मेहता ने बॉम्बे चुनाव परिणाम रद्द करने तथा चुनाव अमान्य घोषित करने के लिए चुनाव आयुक्त के समक्ष एक संयुक्त चुनाव याचिका दायर की। इन तथ्यों के अलावा, उन्होंने दावा किया कि 74,333 मतपत्रों को खारिज कर दिया गया, उनकी गिनती ही नहीं की गई थी। ऐसे में यह सवाल आज भी अनुत्तरित है, कि क्या डॉ. भीमराव आम्बेडकर को जानबूझकर चुनाव में हराया गया था।

डॉ. भीमराव आम्बेडकर का भंडारा लोकसभा उपचुनाव (1954 ई.)

पहले से ही कई बीमारियों से जूझ रहे डॉ. आम्बेडकर को अपनी पहली चुनावी हार से गहरा सदमा लगा और उनकी तबियत खराब हो गई। यद्यपि डॉ. भीमराव आम्बेडकर बम्बई प्रांत से राज्यसभा में चले गए हांलाकि उनकी दिली इच्छा लोकसभा में जाने की थी। यही वजह है कि उन्होंने पहले आमचुनाव के ठीक दो साल बाद यानि 1954 ई. में भंडारा लोकसभा उपचुनाव जीतकर लोकसभा में पहुंचने की कोशिश की।

साल 1954 के भंडारा लोकसभा चुनाव में डॉ. भीमराव आम्बेडकर ​के खिलाफ कांग्रेस पार्टी ने एक बार फिर से अपने प्रत्याशी को चुनावी मैदान में उतारा। इस उपचुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार भाऊराव बोरकर ने डॉ. आम्बेडकर को 8500 वोटों से हराया। भंडारा लोकसभा उपचुनाव में भी डॉ. भीमराव आम्बेडकर तीसरे स्थान पर रहे। धनंजय कील अपनी किताब डॉ. आम्बेडकर : लाइफ एण्ड मिशन में लिखते हैं कि इस चुनाव अभियान में डॉ. भीमराव आम्बेडकर ने पं. जवाहर लाल नेहरू की विदेश नीति पर जमकर हमला बोला था।

भंडारा उपचुनाव में डॉ. आम्बेडकर को जनसंघ ने अपना समर्थन दिया था। जबकि कांग्रेस का यह कहना था कि चूंकि डॉ. आम्बेडकर सोशलिस्ट पार्टी के साथ थे इसलिए उनका विरोध करने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं था।

डॉ. भीमराव आम्बेडकर का निधन

जानकारी के लिए बता दें कि डॉ. भीमराव आम्बेडकर अपनी जीत को लेकर इतने आश्वस्त थे कि उन्होंने पहले से ही सूची तैयार कर ली थी कि संसद पहुंचने के बाद उन्हें कौन-कौन से काम निबटाने हैं। परन्तु 1952 का पहला लोकसभा चुनाव हारने के बाद बाबा साहेब भीमराव आम्बेडकर को गहरा सदमा लगा था क्योंकि महाराष्ट्र उनकी कर्मभूमि थी।

इतना ही नहीं, 1954 के भंडारा लोकसभा उपचुनाव में भी उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा जिससे वह बुरी तरह टूट गए।  ऐसे में पहले से ही कई बीमारियों से जूझ रहे बाबा साहेब अब बीमार रहने लगे और ठीक दो साल बाद  6 दिसम्बर 1956 ई. को उनका निधन हो गया।

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