हिन्दुस्तान की तारीख में बलिया को लोग मंगल पाण्डेय, चित्तू पाण्डेय और चन्द्रशेखर की वजह से ज्यादा जानते हैं। भारतीय मुक्ति संग्राम के दौरान यह जिला अपने विद्रोही तेवर के कारण बागी बलिया, क्रांतिकारी बलिया और शेरे बलिया आदि कई नामों से विख्यात रहा है। मैं आप से महान स्वतंत्रता सेनानी चित्तू पाण्डेय की शौर्य गाथा की चर्चा करने से पहले बलिया जिले के बारे में थोड़ा संक्षिप्त विवरण देने का प्रयास करूंगा ताकि आपको इस जिले के अस्तित्व से जुड़ी जानकारी प्राप्त हो सके।
ब्रिटीश शासन के दौरान 1798 ई. में गाजीपुर जिले का गठन किया गया। उन दिनों बलिया को गाजीपुर की एक तहसील के रूप में पहचान मिली। जाहिर सी बात है जब मंगल पाण्डेय ने ब्रिटीश शासन के विरुद्ध विद्रोह का झण्डा बुलन्द किया था, तब वह मूलत: गाजीपुर जिले के निवासी के रूप में चिन्हिृत किए गए। कालान्तर में एक नवम्बर 1879 ई. को ब्रिटीश शासन ने बलिया को जिला घोषित कर दिया। वर्तमान में आजमगढ़ मण्डल के अन्तर्गत आने वाला बलिया यूपी का सबसे पूर्वी जिला है। इस जिले की सीमाएं बिहार राज्य को स्पर्श करती हैं। अब हम बात करते हैं, अगस्त क्रांति यानि भारत छोड़ो आन्दोलन की।
विश्व इतिहास के फलक पर कुछ ऐसी महत्वपूर्ण घटनाएं घटित हुईं जिनकी वजह से भारत छोड़ो आन्दोलन को अस्तित्व में आने का मौका मिला। बतौर उदाहरण- द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान तेजी से बढ़ती मुद्रास्फीति तथा खाद्य सामग्री की अत्यन्त कमी, ब्रिटीश सरकार की दमनकारी नीतियां, जापानियों के द्वारा दक्षिण पूर्व एशिया में अंग्रेजों को पराजित करना जिससे लोगों में यह विश्वास हो गया था कि अब युद्ध में अंग्रेजों कों पराजित करना कोई बड़ी बात नहीं है तथा क्रिप्स मिशन की असफलता आदि।
उपरोक्त परिस्थितयों को दृष्टिगत रखते हुए 14 जुलाई को वर्धा की बैठक में कांग्रेस कार्यकारिणी समिति ने गांधीजी को भारत छोड़ो आन्दोलन चलाने की स्वीकृति दे दी। इसी समय गांधीजी ने कहा था कि “यदि कांग्रेस इस प्रस्ताव को स्वीकार नहीं करेगी तो मैं देश की बालू से ही कांग्रेस से भी बड़ा आन्दोलन खड़ा कर दूंगा।” लिहाजा 8 अगस्त 1942 ई. को बम्बई के ग्वालिया टैंक मैदान में कांग्रेस का अधिवेशन हुआ जिसमें गांधीजी के नेतृत्व में भारत छोड़ो प्रस्ताव स्वीकृत हो गया। गांधीजी ने ‘आजादी से कम कुछ भी नहीं’ तथा ‘करो या मरो’ का नारा दिया। इस बयान के अगले ही दिन यानि 9 अगस्त की सुबह सभी कांग्रेसी नेताओं को कैद कर लिया गया।
महात्मा गांधी को पूना के आगा खां महल में बंद किया गया जबकि बाकी कांग्रेसी नेताओं को अहमदनगर के किले में नजरबंद कर दिया गया। कांग्रेसी नेताओं की गिरफ्तारी के बावजूद भारत छोड़ा आन्दोलन जनता के मातहत देशभर में फैल गया। लोग थाना जलाने, स्टेशन फूंकने, तार काटने जैसी हिंसक कार्यवाहियों में लिप्त् हो गए फिर भी गांधीजी ने आन्दोलन वापस नहीं लिया। कहते हैं जयप्रकाश नारायण और लोहिया जैसे समाजवादी नेताओं ने इसे जन-आन्दोलन बना दिया। जयप्रकाश नारायण हजारीबाग जेल से दीवार फांदकर भाग गए। राम मनोहर लोहिया, बी.एम.खाकर, नादिमन अब्रबाद प्रिंटर तथा उषा मेहता ने आन्दोलन के कार्यक्रमों का रेडियो से गुप्त प्रसारण किया।
अगस्त क्रांति यानि भारत छोड़ो आन्दोलन की एक महत्वपूर्ण विशेषता यह रही कि देश के कुछ हिस्सों में समानान्तर सरकारों की स्थापना देखने को मिली। देश की पहली समानान्तर सरकार बनाने का श्रेय बलिया में चित्तू पाण्डेय को जाता है।
बता दें कि भारत छोड़ो आन्दोलन के दौरान 18 अगस्त 1942 को बैरिया थाने पर स्वदेशी झंडा फहराने के विवाद को लेकर ब्रिटीश पुलिस की गोलीबारी में तकरीबन 19 लोगों की जान चली गई थी। बैरिया जैसी घृणित घटना की पुनरावृत्ति रसड़ा में गुलाब चंद के अहाते में भी देखने को मिली। ब्रिटीश पुलिस की बर्बरता ने 20 लोगों की जानें ले ली। इसके बाद अगस्त क्रांति के दीवानों ने 18 अगस्त तक 15 थानों पर हमला करके आठ थानों को खाक में मिला दिया था। इस घटना के अगली सुबह यानि 19 अगस्त 1942 को बलिया जिला कारागार के सामने जनसैलाब उमड़ पड़ा था। सभी लोग भारत माता की जय, महात्मा गांधी की जय और इन्कलाब जिन्दाबाद के नारे लगा रहे थे। बलिया जिला कारगार के समक्ष मौजूद भीड़ की मांग चित्तू पाण्डेय की रिहाई थी।
बेकाबू होती भीड़ देखकर बलिया का कलेक्टर यह समझ गया कि यदि चित्तू पाण्डेय को रिहा नहीं किया गया तो जनता जेल का फाटक तोड़कर अन्दर घुस जाएगी। ऐसे में चित्तू पाण्डेय को इस शर्त पर रिहा किया गया कि जिले में शांति व्यवस्था की समस्त जिम्मेदारी उनकी रहेगी। इस शर्त को स्वीकार करते हुए चित्तू पाण्डेय ने लोगों से अंहिसा और शांति की अपील की। फिर क्या था चित्तू पाण्डेय ने देश की पहली समानान्तर सरकार की स्थापना की। खुद को गांधीवादी कहने वाले चित्तू पाण्डेय की सरकार ने कलेक्टर के सारे अधिकार छीन लिए और सभी गिरफ्तार कांग्रेसी नेताओं (तकरीबन 150) को रिहा कर दिया।
बलिया की तरह ही बंगाल के मिदनापुर जिले के तामलुक नामक स्थान पर 17 दिसम्बर 1942 ई. को राष्ट्रीय सरकार का गठन किया गया। इस सरकार का अस्तित्व सितम्बर 1944 ई. तक रहा। वहीं सतारा महाराष्ट्र की समानान्तर सरकार सबसे ज्यादा दीर्घजीवी साबित हुई। आपको यह जानकर हैरानी होगी कि यह सरकार 1945 ई. तक कायम रही। जबकि चित्तू पाण्डेय के नेतृत्व वाली देश की पहली समानान्तर सरकार महज एक सप्ताह तक ही चल सकी।
चूंकि ब्रिटीश सरकार के आदेश पर अंग्रेज सैन्य अफसर नीदर सोल 22 अगस्त रात 2 बजकर 30 मिनट पर ही सेना की एक टुकड़ी लेकर बलिया पहुंच गया। नीदर सोल ने मिस्टर वॉकर को बलिया का नया कलेक्टर घोषित करने के बाद अपने सैन्य टुकड़ी की मदद से जनता को मौत के घाट उतारना शुरू कर दिया। एक सप्ताह बाद ब्रिटीश सैनिकों को वहां एक भी नेता नहीं मिला था। चित्तू पांडेय को गिरफ्तार करने की चाहत में ब्रिटीश सैनिकों ने गांव के गांव जला दिए। आखिरकार देश के आजाद होने से महज एक साल पहले 1946 ई.में चित्तू पाण्डेय की जीवन लीला समाप्त हो गई।
बलिया में देश की पहली समानान्तर चाहे दिन तक चली हो, यह महत्वपूर्ण नहीं है। महत्वपूर्ण यह है कि इस सरकार से प्रेरणा लेकर देश के अन्य हिस्सों में समानान्तर सरकारों का गठन हुआ। अगस्त क्रांति के दौरान सुभाषचंद्र बोस और पं. जवाहर लाल नेहरू ने चित्तू पाण्डेय को ‘शेर-ए-बलिया’ की उपाधि दी थी।