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Martyrs' Day 2024: mahatma gandhi death anniversary and nathuram godse killer plan

महात्मा गांधी के आग्रह पर पाकिस्तान को मिले 55 करोड़ रुपए, फिर शुरू हुई हत्या की साजिश

30 जनवरी 1948 को शाम के वक्त दिल्ली के बिड़ला भवन के बगीचे में महात्मा गांधी की प्रार्थना सभा चल रही थी। तभी नाथूराम गोडसे ने गोली मारकर बापू की हत्या कर दी। हमारे देश में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या की जब भी चर्चा होती है तब तरह-तरह की दलीलें सुनने को मिलती हैं। इन दलीलों में मुख्य रूप से भारत विभाजन और गांधीजी के आग्रह पर पाकिस्तान को मिले 55 करोड़ रुपए का जिक्र अवश्य किया जाता है। यह सच है कि भारत विभाजन के चलते आमजन को अपार कष्ट सहने पड़े और इसके लिए कांग्रेस के शीर्ष नेताओं के निर्णय काफी हद जिम्मेदार थे लेकिन राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या के लिए उपरोक्त प्रमुख दलीलें स्वीकार करना किसी भी तरह से स्वीकार नहीं की जा सकती। इतिहास गवाह है, जब 13 जनवरी, 1948 के दिन ठीक बारह बजे महात्मा गांधी भूख हड़ताल पर बैठ गए। दरअसल गांधीजी के इस भूख हड़ताल की मुख्य वजह यह थी कि पाकिस्तान को भारत की तरफ से 55 करोड़ दिया जाए तथा दिल्ली के साम्प्रदायिक हालात पर रोक लगे यानि मुसलमानों पर होने वाले हमले बंद हों।

चूंकि विभाजन के वक्त भारत और पाकिस्तान में संन्धि हुई थी कि भारत अपने पड़ोसी पाकिस्तान को बिना शर्त 75 करोड़ रुपए देगा। इनमें से पाकिस्तान को 20 करोड़ रुपए मिल चुके थे और अभी 55 करोड़ रुपए बाकी थे। जब इस बाकी रकम को पाकिस्तान ने मांगना शुरू कर दिया तब महात्मा गांधी ने कहा कि पाक से जो भी वादा किया गया है, उससे मुकरा नहीं जा सकता है। ऐसे में गांधीजी की भूख हड़ताल के ठीक दो दिन बाद 15 जनवरी 1948 को भारत सरकार ने पाकिस्तान को 55 करोड़ रुपए देने का ऐलान किया।

ऐसा माना जाता है कि भारत सरकार के इसी ऐलान के साथ उग्र हिन्दूओं के नजर में महात्मा गांधी खलनायक बन चुके थे। महात्मा गांधी के खिलाफ न केवल आपत्तिजनक शब्दों का इस्तेमाल किया गया बल्कि उनकी तुलना तानाशाह हिटलर से की गई। पुलिस रिपोर्ट के मुताबिक, मुसलमानों की रक्षा के लिए गांधीजी के द्वारा की गई भूख हड़ताल से सिख भी काफी नाराज थे। सिखों को ऐसा लग रहा था कि गांधी जी ने हिन्दू सिखों के लिए कुछ भी नहीं किया।

इन तात्कालिक घटनाओं को आधार मानकर साजिशकर्ताओं ने महात्मा गांधी की हत्या करने के लिए दिल्ली में प्रवेश किया। सबसे पहले 18 जनवरी 1948 की शाम पांच बजे कुछ साजिशकर्ता महात्मा गांधी की प्रार्थना सभा में शामिल होकर बिड़ला भवन गए जहां उन्होंने भीड़ और जगह का बारीकी से मुआयना किया। इसके ठीक अगले दिन यानि 19 जनवरी को तीन षड्यंत्रकारी नाथूराम गोडसे, विष्णु करकरे और नारायण आप्टे शाम चार बजे बिड़ला भवन गए और प्रार्थना सभा की जगह का निरीक्षण किया।

महात्मा गांधी के पौत्र तुषार गांधी के अनुसार, महात्मा गांधी के हत्या की नियत तारीख 20 जनवरी ही थी लेकिन साजिशकर्ता उस दिन नाकाम हो गए। क्योंकि 20 जनवरी को नाथूराम गोडसे की तबीयत खराब हो गई बावजूद इसके चार अन्य षडयंत्रकारियों ने शाम पौने पाँच बजे बिड़ला भवन में प्रवेश किया और इनमें से एक षडयंत्रकारी मदनलाल पाहवा ने प्रार्थना सभा में बम फेंका जिसे मौके पर गिरफ्तार कर लिया गया। इतना ही नहीं उसके पास से हैंड ग्रेनेड भी बरामद किया गया। शेष तीन षडयंत्रकारी मौके से फरार होने में कामयाब रहे।

आखिरकार इस घटना के ठीक दस दिन बाद यानि 30 जनवरी 1948 के दिन षडयंत्रकारी महात्मा गांधी की हत्या करने में सफल हो गए। 30 जनवरी को षड्यंत्रकारी नाथूराम गोडसे, विष्णु करकरे और नारायण आप्टे ने बिड़ला भवन के पीछे जंगल में इटली निर्मित काले रंग की ऑटोमैटिक बैरेटा माउज़र से शूटिंग की प्रैक्टिस की। इसके बाद शाम पांच बजे महात्मा गांधी को गोली मार दी। इस हत्याकांड के बाद नाथूराम गोडसे को मौके पर ही गिरफ्तार कर लिया गया जबकि विष्णु करकरे और नारायण आप्टे फरार हो गए। हांलाकि इन दोनों को 14 फरवरी 1948 को गिरफ्तार कर लिया।

गौरतलब है कि इस घटना के बाद शाम 6 बजे, सरकार ने ऑल इंडिया रेडियो पर घोषणा की कि "महात्मा गांधी की आज दोपहर पांच बजकर बीस मिनट पर नई दिल्ली में हत्या कर दी गई।” जहां दुनियाभर के नेताओं ने गांधीजी को श्रद्धांजलि अर्पित की वहीं गांधीजी के प्रति सम्मान प्रदर्शित करने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ ने अपना झंडा आधा झुका दिया।