
हमारा देश कई कालखण्डों से गुजरा है, ऐसे में इसके एक-दो नहीं अपितु कई नाम हैं। वैसे तो भारत का अंग्रेजी का नाम इंडिया (India) है लेकिन यह देश जम्बूदीप, भरतखण्ड, भारतवर्ष, आर्यावर्त, हिन्दुस्तान, हिन्द, अल-हिन्द, ग्यागर, फग्यूल, तियानझू, होडु आदि कई नामों से जाना जाता है।
ब्रिटिश शासनकाल में भारत के साथ-साथ हिन्दुस्तान और इंडिया नाम प्रचलन में था जो आज भी है। यद्यपि हमारे देश का सर्वप्रचलित नाम भारत है और इस नाम के पीछे बड़ा ही रोचक इतिहास छुपा है। दरअसल भारतीय इतिहास में यह दावा किया जाता है कि ‘भरत’ के नाम पर हमारे देश का नाम भारत पड़ा। परन्तु हैरानी की बात यह है कि भारतीय इतिहास में ‘भरत’ नाम के कई महान व्यक्ति हुए हैं जो भारत नाम के दावेदार दिखते हैं । अत: किस ‘भरत’ के नाम पर हमारे देश का नाम ‘भारत’ पड़ा यह जानने के लिए इस रोचक स्टोरी को अवश्य पढ़ें।
1.दुष्यन्त - शकुन्तला पुत्र भरत
ऐतरेय ब्राह्मण, महाभारत के ‘आदिपर्व’ तथा महाकवि कालीदास रचित महान नाटक ‘अभिज्ञान शाकुंतलम’ में राजा दुष्यंत की पत्नी शकुन्तला एवं उनके पुत्र भरत का वर्णन मिलता है। कथा के अनुसार, महर्षि विश्वामित्र और स्वर्ग की अप्सरा मेनका के संयोग से शकुन्तला नामक एक सुन्दर कन्या का जन्म हुआ जिसका पालन-पोषण कण्व ऋषि ने किया। शकुन्तला जब युवा हुई तो उसने राजा दुष्यन्त से गन्धर्व विवाह किया जिससे भरत का जन्म हुआ।
भरत इतने निडर थे कि वह बचपन में ही शेर के दांत गिना करते थे एवं अपने मित्रों के साथ बहुत प्रेम करते थे। इस प्रकार भरत का व्यक्तित्व शीघ्र ही एक महान योद्धा के रूप विकसित हो गया। उनके अद्वितीय गुणों एवं महान व्यक्तित्व के कारण उन्हें भारत के महान शासकों में गिना गया। कथा के मुताबिक, ऋषि कण्व ने यह आशीर्वाद दिया था कि भरत आगे चलकर चक्रवर्ती सम्राट बनेगा और उसके नाम पर इस भूखण्ड का नाम ‘भारत’ कहलाएगा।
चक्रवर्ती राजा भरत का शासनकाल न्याय, धर्म, परोपकार और शांति-समृद्धि का प्रतीक था। शक्तिशाली सैन्यबल पर आधारित उनकी शासन प्रणाली धार्मिक एवं नैतिक मूल्यों पर केन्द्रित थी जिसमें प्रत्येक व्यक्ति को समान अधिकार एवं न्याय प्राप्त था। चक्रवर्ती सम्राट भरत ने एक विशाल साम्राज्य का निर्माण कर अश्वमेध यज्ञ सम्पन्न किया, इसी कारण दुष्यन्त एवं शकुन्तला पुत्र राजा भरत के नाम पर हमारे देश का नाम ‘भारत’ पड़ा।
2. दशरथ पुत्र भरत
आदि कवि महर्षि वाल्मीकि कृत ‘रामायण’ के अनुसार, अयोध्या के चक्रवर्ती नरेश दशरथ एवं कैकयी के पुत्र भरत स्वयं में धर्म एवं नैतिकता के प्रतीक थे। भरत के दो पुत्र थे- तक्ष एवं पुष्कल। भरत की पत्नी माण्डवी मिथिला के राजा जनक के भाई कुशध्वज की पुत्री थीं।
पौराणिक ग्रन्थों में विष्णु के अवतार राम के भाई भरत को ‘सुदर्शन चक्र’ का अवतार माना गया है। राजा दशरथ के बड़े पुत्र भगवान श्रीराम के वनगमन के पश्चात भरत ने महल त्याग दिया और नन्दीग्राम से संन्यासी रूप में सिंहासन पर श्रीराम की ‘चरण पादुका’ रखकर 14 वर्षों तक अवध का शासन चलाया। राजा भरत का ‘खड़ाऊँ राज’ इतिहास प्रसिद्ध है। एक अन्य प्रसंग के अनुसार, किष्किन्धा काण्ड में वानरों के राजा बालि ने श्रीराम से पूछा कि आपने किस अधिकार से मुझ पर बाण चलाया? तब श्रीराम कहते हैं कि “इस समय समस्त पृथ्वी पर इक्ष्वाकुवंशी राजा भरत का राज्य है और उनका वंशधर होने के नाते तुम जैसे दुराचारी का वध करना मेरा परम कर्तव्य है”। इस प्रकार स्वयं श्रीराम ने भी अपने भाई भरत को समस्त पृथ्वी का राजा बताया है। ऐसे में कुछ विद्वानों का यह मानना है कि भारतवर्ष का एक नाम ‘भरतखण्ड’ दशरथ पुत्र राजा भरत के नाम पर ही पड़ा।
3. स्वयंभू मनु (भरत )
सनातन धर्म में सृष्टि का आरम्भ आदि पुरुष मनु से होता है। विष्णु पुराण के मुताबिक, संसार में सबसे पहले जन्म लेने वाला मनुष्य ‘मनु’ था। श्रीमद्भागवत में भी वैवस्वत मनु से ही मानवीय सृष्टि का प्रारंभ माना गया है। ‘मनुस्मृति’ नामक ग्रन्थ की रचना करने वाले महाराज मनु ने बहुत दिनों तक ‘सप्तद्वीपवती पृथ्वी’ पर शासन किया। महाराज मनु के राज्य में प्रजा अत्यन्त सुखी थी।
मत्स्यपुराण में इस बात का उल्लेख है कि “प्रजा को जन्म देने वाले और उसका भरण-पोषण करने वाले मुन को ‘भरत’ कहा गया और पृथ्वी के जिस खण्ड पर शासन-वास किया उसे भारतवर्ष कहा गया।
4. ऋषभदेव के पुत्र भरत
जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव का जन्म अयोध्या में एक इक्ष्वाकुवंशी क्षत्रिय राजा नाभिराज की पत्नी महारानी मरुदेवी से चैत्र कृष्ण नवमी को हुआ था। नाभिराज के नाम पर इस भूखण्ड का नाम पहले ‘अजनाभखण्ड’ था। भगवान ऋषभदेव का विवाह नन्दा और सुनन्दा से हुआ।
ऋषभदेव के 100 पुत्र और दो पुत्रियाँ थीं। ऋषभदेव ने संन्यास लेने के बाद राजपाट अपने पुत्र भरत को सौंप दिया। ऐसे में भगवान ऋषभदेव के सबसे बड़े पुत्र भरत चक्रवर्ती सम्राट हुए अत: भरत के नाम से ही लोग ‘भारतवर्ष’ कहने लगे। बता दें कि संस्कृत में वर्ष का अर्थ-इलाक़ा,बँटवारा,हिस्सा आदि होता है।
5. भरत जन के नाम पर ‘भारत’
हिन्दू धर्म के सबसे प्राचीन ग्रन्थ ‘ऋग्वेद’ के सातवें मण्डल में दशराज्ञ युद्ध में दस राजाओं के युद्ध का उल्लेख मिलता है। इस युद्ध में एक पक्ष का नेतृत्व भरत जन का स्वामी राजा सुदास कर था जिसके पुरोहित महर्षि वशिष्ठ थे। जबकि दूसरा पक्ष एक अन्य कबीला और उसका मित्रपक्ष समुदाय था।
भरतों के राजा सुदास के विरूद्ध जिन दस राजाओं का संघ था उनमें अनु (वह क़बीला जो रावी नदी क्षेत्र में बसा हुआ था), द्रुह्य (सम्भवत: गान्धार प्रदेश के निवासी), यदु, पुरू (सरस्वती नदी के किनारे बसा हुआ कबीला) एवं तुर्वस जो पंचजन कहलाते थे। इनके सहयोगी पांच लघु जनजातियों में अलिन, पक्थ, भलानस, शिव तथा विषाणित के राजा सम्मिलित थे। ऋषि विश्वामित्र इस संघ के पुरोहित थे। युद्ध का मुख्य कारण राजा सुदास द्वारा ऋर्षि विश्वामित्र के स्थान पर ऋषि वशिष्ठ की पुरोहित पद पर नियुक्ति थी।
दशराज्ञ युद्ध परुष्णी नदी (रावी नदी) के तट पर लड़ा गया था और इस युद्ध में भरत जन के राजा सुदास की जीत हुई। इस प्रकार राजा सुदास ऋग्वैदिककालीन भारत का सर्वोपरि सम्राट बन गया। अत: भरत जन के नाम पर ही हमारे देश का नाम ‘भारत’ पड़ा। भरत ‘जन’ ऋग्वैदिक काल का सर्वाधिक महत्वपूर्ण जन था जो सरस्वती तथा यमुना नदियों के बीच के प्रदेश में निवास करता था। चूंकि महाभारत युद्ध से 2500 वर्ष पूर्व दशराज्ञ युद्ध हुआ था, जिससे यह पता चलता है कि महाभारत से पहले ‘भारत’ था।
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